रॉयटर्स की रिपोर्ट के मुताबिक, यह मुकदमा मिशिगन की पेंशन फंड्स की तरफ से फाइल किया गया था और इसमें किसी फाइनेंशियल मुआवजे की डिमांड नहीं थी, सिर्फ कंपनी के गवर्नेंस सिस्टम में बदलाव की मांग थी। अब कंपनी ने इसे कोर्ट में लंबी लड़ाई की जगह सेटलमेंट के जरिए सुलझाने का रास्ता चुना है। इस सेटलमेंट को अभी अमेरिकी जज रीटा लिन की मंजूरी मिलनी बाकी है।
Google इस फैसले के तहत कई इंटरनल स्ट्रक्चरल चेंज करने वाला है। रिपोर्ट बताती है कि सबसे पहले, कंपनी एक स्पेशल बोर्ड कमेटी बनाएगी जो सिर्फ कंप्लायंस और रिस्क पर फोकस करेगी, ये फाइनेंस या ऑडिट से पूरी तरह अलग होगी। इसके अलावा एक सीनियर वाइस प्रेजिडेंट लेवल की टीम बनाई जाएगी, जो डायरेक्टली CEO सुंदर पिचाई को रिपोर्ट करेगी और रेगुलेटरी इश्यूज को हैंडल करेगी। साथ ही, प्रोडक्ट मैनेजर्स और इंटरनल एक्सपर्ट्स की एक खास टीम बनाई जाएगी जो प्रोडक्ट्स को रेगुलेटरी स्टैंडर्ड्स के हिसाब से ऑपरेट करेगी।
Alphabet ने भले ही इस केस में किसी भी तरह की गड़बड़ी स्वीकार नहीं की है, लेकिन DOJ (U.S. Justice Dept) की चल रही जांच और ट्रायल्स को देखते हुए यह कदम कंपनी की ओर से डैमेज कंट्रोल का हिस्सा माना जा रहा है। रिपोर्ट आगे बताती है कि जस्टिस डिपार्टमेंट की रिपोर्ट्स के मुताबिक, अगर Google दोषी पाया गया तो उससे Chrome ब्राउजर तक को अलग करने को कहा जा सकता है, साथ ही कंपनी को सर्च डेटा शेयर करने जैसी पेनल्टी का सामना करना पड़ सकता है।
यह पूरा बदलाव Google के लिए सिर्फ एक लीगल रिस्पॉन्स नहीं है, बल्कि एक बड़े स्ट्रैटजिक शिफ्ट का संकेत भी है, जहां कंपनी अब कंप्लायंस और ट्रांसपेरेंसी पर उतनी ही गंभीरता से फोकस कर रही है, जितना वह अपने AI या प्रोडक्ट इनोवेशन पर करती है।
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