<p style="text-align: justify;">ग्लूकोमा आंखों की इतनी खतरनाक बीमारी है, जो धीरे-धीरे देखने की क्षमता छीन लेती है और अंधेपन का कारण बन सकती है. डब्ल्यूएचओ के मुताबिक, ग्लूकोमा दुनियाभर में अंधेपन का दूसरा सबसे बड़ा कारण है और भारत में लगभग 12 मिलियन लोग इससे प्रभावित हैं. आज हम आपको सात ऐसी आई केयर हैबिट बताने जा रहे हैं, जो न सिर्फ ग्लूकोमा से बचाव में मदद करेंगी, बल्कि आंखों को भी हेल्दी रखेंगी.</p>
<p style="text-align: justify;"><strong>ग्लूकोमा क्या है और यह क्यों खतरनाक?</strong></p>
<p style="text-align: justify;">ग्लूकोमा आंखों की एक ऐसी कंडीशन है, जिसमें दिमाग को विजुअल मैसेज पहुंचाने वाली ऑप्टिक नर्व को नुकसान पहुंचता है. यह नुकसान आमतौर पर आंखों में दबाव (इंट्राओकुलर प्रेशर) बढ़ने के कारण होता है. ग्लूकोमा को चुपके से आंखों की रोशनी चुराने वाली बीमारी कहा जाता है, क्योंकि इसके शुरुआती लक्षण अक्सर नजर नहीं आते हैं. जब तक मरीज को इसका पता चलता है, तब तक आंखों की रोशनी को काफी नुकसान हो जाता है. एक रिसर्च के अनुसार, नियमित जांच और हेल्दी हैबिट्स अपनाकर ग्लूकोमा के खतरे को 50 पर्सेंट तक कम किया जा सकता है.</p>
<p style="text-align: justify;"><strong>ये हैं ग्लूकोमा के लक्षण</strong></p>
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<li style="text-align: justify;"><strong>पेरीफेरल विजन का नुकसान:</strong> शुरुआती स्टेज में ग्लूकोमा पेरीफेरल विजन को प्रभावित करता है, जिसे मरीज अक्सर नजरअंदाज कर देते हैं.</li>
<li style="text-align: justify;"><strong>आंखों में दर्द या दबाव:</strong> तीव्र ग्लूकोमा में आंखों में तेज दर्द या दबाव महसूस हो सकता है.</li>
<li style="text-align: justify;"><strong>धुंधली दृष्टि:</strong> रात में देखने में कठिनाई या धुंधलापन.</li>
<li style="text-align: justify;"><strong>हलो प्रभाव:</strong> रोशनी के चारों ओर रंगीन छल्ले दिखना.</li>
<li style="text-align: justify;"><strong>सिरदर्द और जी मिचलाना:</strong> गंभीर मामलों में यह लक्षण दिखाई दे सकते हैं.</li>
</ul>
<p style="text-align: justify;"><strong>ये हाई केयर हैबिट्स करेंगी आपकी मदद</strong></p>
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<li style="text-align: justify;"><strong>नियमित आंखों की जांच:</strong> आंखों की नियमित जांच ग्लूकोमा का जल्दी पता लगाने में सबसे अहम है. 40 वर्ष से अधिक उम्र के लोगों और जिनका पारिवारिक इतिहास ग्लूकोमा से जुड़ा हो, उन्हें हर एक-दो साल में आंखों का टेस्ट जैसे टोनोमेट्री, ऑप्टिक नर्व इमेजिंग करवाने चाहिए. शुरुआती जांच से ग्लूकोमा को प्रारंभिक स्टेज में पकड़ा जा सकता है, जिससे इलाज आसान हो जाता है.</li>
<li style="text-align: justify;"><strong>हेल्दी डाइट:</strong> आंखों की सेहत के लिए एंटीऑक्सीडेंट्स, विटामिन्स और मिनरल्स से भरपूर डाइट जरूरी है. रिसर्च में पाया गया कि हरी पत्तेदार सब्जियां जैसे पालक, केला, मछली और फल जैसे संतरा, जामुन) ग्लूकोमा के खतरे को कम करते हैं. विटामिन A, C, और E आंखों की कोशिकाओं को ऑक्सीडेटिव तनाव से बचाते हैं.</li>
<li style="text-align: justify;"><strong>नियमित एक्सरसाइज:</strong> नई रिसर्च के अनुसार, मीडियम लेवल की एक्सरसाइज जैसे तेज चलना, योग या साइकिलिंग आंखों में ब्लड फ्लो को बेहतर बनाती हैं और इंट्राओकुलर प्रेशर को कम करती हैं. हफ्ते में 150 मिनट की मीडियम फिजिकल एक्टिविटी से ग्लूकोमा का खतरा 30 पर्सेंट तक कम हो सकता है. हालांकि, भारी वजन उठाने वाली एक्सरसाइज से बचना चाहिए, क्योंकि इससे आंखों पर प्रेशर बढ़ सकता है. </li>
<li style="text-align: justify;"><strong>स्क्रीन टाइम का मैनेजमेंट:</strong> लंबे समय तक स्क्रीन पर काम करने से आंखों पर तनाव पड़ता है, जिससे ग्लूकोमा के लक्षण बढ़ सकते हैं. रिसर्च में 20-20-20 नियम की सलाह दी गई है. इसके लिए हर 20 मिनट में 20 सेकंड के लिए 20 फीट दूर की वस्तु को देखें. इसके अलावा ब्लू लाइट से बचने के लिए स्क्रीन पर ब्लू लाइट फिल्टर इस्तेमाल करें.</li>
<li style="text-align: justify;"><strong>धूम्रपान और शराब से परहेज:</strong> स्मोकिंग और ज्यादा शराब पीने से ऑप्टिक नर्व को नुकसान पहुंच सकता है. रिसर्च में पाया गया कि स्मोकिंग करने वालों को ग्लूकोमा का खतरा 20 पर्सेंट ज्यादा होता है.</li>
<li style="text-align: justify;"><strong>पर्याप्त नींद:</strong> रात में 7-8 घंटे की अच्छी नींद आंखों के प्रेशर को नियंत्रित करने में मदद करती है. रिसर्च के अनुसार, अनियमित नींद या नींद की कमी ग्लूकोमा के जोखिम को बढ़ा सकती है. सोते समय सिर को थोड़ा ऊंचा रखने से आंखों पर दबाव कम होता है.</li>
<li style="text-align: justify;"><strong>टेंशन मैनेजमेंट:</strong> लंबे समय तक तनाव और चिंता आंखों के दबाव को बढ़ा सकती है. योग, मेडिटेशन और गहरी सांस लेने की तकनीक तनाव को कम करने में मदद करती हैं. रिसर्च में पाया गया कि नियमित मेडिटेशन करने वालों में इंट्राओकुलर प्रेशर 10-15% तक कम हो सकता है.</li>
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<p><strong>Disclaimer: खबर में दी गई कुछ जानकारी मीडिया रिपोर्ट्स पर आधारित है. आप किसी भी सुझाव को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह जरूर लें. </strong></p>
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