पटना: बिहार विधानसभा चुनाव (Bihar Assembly Election) में चिराग पासवान (Chirag Paswan) की डायरेक्ट एंट्री होने जा रही है। पासवान ने चुनाव लड़ने का ऐलान कर सूबे की राजनीति का पारा चढ़ा दिया है। लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) ने फैसला किया है कि चिराग पासवान (Chirag Paswan) किसी सामान्य सीट से चुनाव लड़ेंगे। एलजेपी आर (LJP R) की बैठक में इस बाबत एक प्रस्ताव पारित हुआ था। अब ऐलान भी हो गया कि चिराग पासवान (Chirag Paswan) बिहार का विधानसभा चुनाव लड़ेंगे। यह पहली बार होगा, जब चिराग पासवान (Chirag Paswan) विधानसभा चुनाव लड़ेंगे। अब सवाल है कि आखिर चिराग पासवान (Chirag Paswan) ने बिहार के रण में खुद उतरने का फैसला क्यों लिया?
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बता दें कि चिराग पासवान (Chirag Paswan) को लेकर चर्चा है कि वह दिल्ली यानी केंद्र के नेता हैं। हालांकि, अब वह खुद केंद्र की राजनीति से बिहार की सियासत में शिफ्ट होना चाहते हैं। चिराग पासवान (Chirag Paswan) अब बिहार की जमीन पर उतरने और खुद को एक बड़ा नेता साबित करने की रणनीति पर काम कर रहे हैं। उनका बिहार चुनाव में सक्रियता से उतरने का फैसला सिर्फ रणनीतिक नहीं, बल्कि उनके राजनीतिक भविष्य की मजबूती की दिशा में बड़ा कदम माना जा रहा है। उनके इस कदम के पीछे नीतीश के विकल्प के रूप में उभरना और तेजस्वी यादव के मुकाबले खुद को स्थापित करना है। साथ ही अपनी पार्टी को मजबूत करने की कोशिश है। तो चलिए विस्तार से उनके फैसले के पीछे की रणनीति को समझते हैं।
एनडीए में नीतीश का विकल्प बनने की कोशिश
नीतीश कुमार का यह चुनाव लास्ट ही माना जा रहा है। एनडीए को कब से बिहार में एक युवा फेस की तलाश है। ऐसे में चिराग की नजर उस बात पर जरूर होगी। वह नीतीश की सियासी जमीन पर अपनी फसल काटने की रणनीति पर काम कर रहे हैं। वह खुद को स्थापित करके एनडीए के सामने एक मजबूत चेहरा पेश करना चाहते हैं।
चिराग पासवान (Chirag Paswan) के सामने सबसे बड़ी चुनौती है तेजस्वी के सामने स्थापित करना। तेजस्वी बिहार के नेता के रूप में स्थापित हो चुके हैं। चिराग को अब भी लोग केंद्र का नेता मानते हैं। ऐसे में चिराग पासवान (Chirag Paswan) खुद को तेजस्वी के मुकाबले खुद को स्थापित करना चाहते हैं। वैसे भी चिराग ने ‘बिहार फर्स्ट, बिहारी फर्स्ट’ के नारे के साथ युवा और दलित मतदाताओं को लुभाने की कोशिश की है। हालांकि, उनकी इस बात पर तब यकीन लोग करेंगे, जब वह खुद बिहार के मैदान-ए-जंग में उतरेंगे।
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एलजेपी को जमीन पर मजबूत करना
यह हकीकत है कि रामविलास पासवान के निधन के बाद एलजेपी कमजोर हुई है। चाचा-भतीजे की लड़ाई में तो पार्टी का और नुकसान हुआ है। हालांकि, चिराग ने उसे पाटने की कोशिश की है। चिराग पासान (Chirag Paswan) की लोजपा (रामविलास) ने 2024 के लोकसभा चुनाव में पांचों सीटें जीतकर 100% स्ट्राइक रेट हासिल किया। अब वह विधानसभा चुनाव में इस प्रदर्शन को दोहराकर पार्टी को बूथ स्तर तक मजबूत करना चाहते हैं। उनकी रणनीति दलित वोटों, खासकर पासवान समुदाय को एकजुट करने की है, जिसमें उनके चाचा सेंधमारी में लगे हैं।
चाचा पशुपति पारस को चित करने की चाल
चिराग और उनके चाचा पशुपति पारस के बीच रामविलास पासवान की विरासत को लेकर लंबे समय से टकराव है। साल 2024 में बीजेपी ने चिराग को समर्थन दिया था। इससे पारस की राष्ट्रीय लोक जनशक्ति पार्टी हाशिए पर चली गई। उनके चुनाव में उतरने की चाल से ऐसा लग रहा है कि चिराग इस चुनाव में चाचा को सियासी रूप से पूरी तरह खत्म करने की रणनीति पर काम कर रहे हैं।
जमीनी नेता बनने की कोशिश और 2030 के विधानसभा चुनाव पर नजर
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अब तक दिल्ली की सियासत करने वाले चिराग पासवान (Chirag Paswan) अब बिहार के रण में कूदने जा रहे हैं। इसके माध्यम से बताने की कोशिश करेंगे कि वह बिहार की मिट्टी से जुड़कर रहने वाले जमीनी नेता हैं। इतना ही नहीं, चिराग खुद को बिहार में नीतीश और तेजस्वी जैसे नेताओं के समकक्ष स्थापित करना चाहते हैं। उनकी नजर 2030 के विधानसभा चुनाव पर भी है, जहां वह एनडीए में मुख्यमंत्री पद के दावेदार के रूप में खुद को पेश कर सकते हैं। बहरहाल, आने वाले दिनों में चिराग के इस फैसले से बिहार की सियासत में बहुत बड़ा फर्क पड़ सकता है।
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