लखनऊ। भाजपा सरकार की महत्वाकांक्षी योजना ‘जल जीवन मिशन’ यूपी में पूरी तरह से भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ चुकी है। सरकार की मंशा थी कि इस योजना के तहत हर घर शुद्ध जल पहुंचे,इसके बाद यूपी की जनता को उम्मीद जगी थी कि पानी की समस्या से निजात मिलेगा, लेकिन आए दिन जिलों में धड़ाधड़ा गिर रही टंकियों के साथ ही इन उम्मीदों को धराशायी कर दिया है।
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अभी सीतापुर जिले में तीन दिन पहले अचानक ढाई लाख लीटर की पानी टंकी तेज धमाके के साथ धराशाई हो गई। इसके बाद घरों में 1 फीट तक पानी भर गया। यह पहली बार नहीं हुआ है, 40 दिनों में यूपी में गिरने वाली यह तीसरी टंकी है। इससे पहले लखीमपुर और कानपुर जिले में इसी तरह से पानी की टंकियां धड़ाम हो गईं। तीनों टंकियों में सबसे कामन बात यह है कि सभी जिंक एलम की बनी हैं।
लखमीपुर और कानपुर की टंकियों से तो लोगों को एक बूंद पानी नहीं मिला। लेकिन, कंपनियों की लाखों रुपए की कमाई हो गई। वो भी बिना कोई काम किए। यह सब जल जीवन मिशन के अफसर, इंजीनियर और कंपनियों की मिलीभगत से हुआ है। इन जगहों पर जल जीवन मिशन में आरसीसी टंकियां बनाने का टेंडर हुआ था, लेकिन, काम जल्दी पूरा करने और कमाई के लिए जिंक एलम की टंकियां खड़ी कर दी गईं। यही स्थिति पूरे यूपी की है। आने वाले समय में इन टंकियां का भी यही हश्र होना तय है।
RCC और जिंक एलम की टंकियों की लागत में तकरीबन 30 फीसदी का अंतर
अब सवाल उठता है कि आरसीसी टंकी से 15 साल कम चलने वाली इन जिंक एलम की टंकियां क्यों बनवाई जा रही हैं? एक्सपर्ट का कहना है कि आरसीसी और जिंक एलम की टंकियों की लाइफ में 15 साल का अंतर है। जहां जिंक एलम की टंकियां 10 साल से 15 साल की गारंटी देती हैं तो आरसीसी की टंकियों की लाइफ 30 साल तक होती है। जल जीवन मिशन से जुड़े अधिकारियों के मुताबिक, आज भी जल निगम से जुड़े अधिकारी आरसीसी की टंकियों की ही वकालत करते हैं। अब लागत की बात करते हैं। जानकारों की मानें, तो आरसीसी और जिंक एलम की टंकियों की लागत में तकरीबन 30 फीसदी का अंतर है।
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36 लाख की टंकी का कंपनी वसूल रही है 46 लाख रुपए
कानपुर में गाजा इंजीनियरिंग प्राइवेट लिमिटेड और लखीमपुर में मेसर्स विंध्य टेलीलिंक्स लिमिटेड ने काम किया है। दोनों जगहों पर मेसर्स मैनिफोल्ड कम्यूनिकेशंस इंडिया एलएलपी कंपनी से जिंक एलम टंकी लगवाया था। जल जीवन मिशन में काम करने वाली पीएनसी इंफ्राटेक लिमिटेड कंपनी के पत्र के मुताबिक, 250KL/12M की जिंक एलम की टंकी बॉटम से टॉप स्लैब तक 15 लाख में सब कांट्रैक्टर से तैयार कराया जा रहा है। कंपनी फ्री सीमेंट और सरिया देती है, जिसकी कास्ट 10 से 12 लाख रुपए पड़ती है। मुख्य कंपनी दूसरी कंपनी से टंकी लगवाती है। ऐसे में जिंक एलम की टंकी की लागत देखी जाए तो सब मिलाकर 36 लाख आ रही है। जबकि, कंपनी टंकी के लिए जल जीवन मिशन से 46 लाख रुपए ले रही है। यानी बिना किसी काम के ही कंपनियां एक टंकी पर 10 लाख रुपए कमा रही हैं।
दरअसल, 2019 में शुरू हुआ जल जीवन मिशन का टारगेट टाइम पूरा हो रहा है, लेकिन काम नहीं खत्म हो रहा। आरसीसी टंकी बनाने में 1 साल का समय लग जाता है। इसमें पिलर खड़ा करने में 7-8 महीने और टंकी बनाने में 4 महीने का समय लगता है। जिंक एलम की टंकी बनाने में पिलर खड़ा करने में 7-8 महीने में लगते हैं, लेकिन टंकी एक या दो दिन में फिट हो जाती है। यही वजह है, जल जीवन मिशन के अधिकारी चाहते हैं कि जिंक एलम की टंकियां लगाकर काम को जल्दी खत्म कर दिया जाए। इन लेटर्स से साफ है कि विभाग ने यूपी में काम कर रही अलग-अलग कंपनियों से आरसीसी की टंकी का टेंडर किया था। लेकिन, काम जल्दी खत्म करने के लिए जिंक एलम की टंकी बनाने का आदेश दे दिया। लखीमपुर में एक AE ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि जब जिंक एलम की टंकियां बनाने का प्रस्ताव आया तो सभी इंजीनियर्स ने इसका विरोध किया था। लेकिन, काम जल्द खत्म करने का काेई दूसरा ऑप्शन नहीं था। जिसकी वजह से जिंक एलम की टंकियां लगनी शुरू हो गईं।
लखीमपुर सदर से भाजपा विधायक योगेश वर्मा ने बताया कि मैं और विधायकों ने एक्सईएन योगेंद्र कुमार नीरज के खिलाफ पत्र लिखा था कि वह भ्रष्टाचार कर रहे हैं, लेकिन, उस पर कोई कार्रवाई नहीं हुई। जिसका खामियाजा यह हुआ कि टंकी फट गई।
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