परिवार में बगावत या कुछ और… कविता के दौरे से BRS में क्यों मची हलचल? KCR की चुप्पी पर उठे सवाल

तेलंगाना में भारत राष्ट्र समिति (BRS) पार्टी में इन दिनों सब कुछ ठीक नहीं चल रहा है। पार्टी की वरिष्ठ नेता और पूर्व सांसद के कविता के दौरों ने सियासी हलचल बढ़ा दी है। बीते दिनों मेडक जिले के शमीरपेट दौरे के बाद के कविता शुक्रवार को मंचिर्याला पहुंचीं। उनके दौरों को लेकर पार्टी में चर्चा का बाजार गरम है।

दरअसल, बीआरएस में के कविता के बढ़ते विरोध के बीच उनके जिलावार दौरे को लेकर कई सवाल खड़े हो रहे हैं। पार्टी के अंदरूनी हलकों में चर्चा है कि कविता धीरे-धीरे एक-एक करके सभी जिलों का दौरा करने की रणनीति पर काम कर रही हैं। उनका मकसद साफ नजर आ रहा है- जमीनी कार्यकर्ताओं और जनता के बीच अपनी पकड़ मजबूत करना।

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कविता के दौरे से क्यों मची हलचल?

पार्टी सूत्रों के अनुसार, कविता के दौरों को पार्टी नेतृत्व (गुलाबी अधिष्ठान) खास नजरों से देख रहा है। खासकर तब, जब कविता ने हाल ही में पार्टी नेतृत्व के खिलाफ बगावती तेवर अपनाए थे। उनके इस तेवर के बाद से ही उनके दौरे राजनीतिक हलकों में खास अहमियत पा रहे हैं। मंचिर्याला के दौरे के बाद पार्टी नेताओं और कार्यकर्ताओं में यह चर्चा तेज है कि पार्टी में कविता को धीरे-धीरे अलग-थलग करने की कोशिशें हो रही हैं। स्थानीय नेताओं ने भी उनके कार्यक्रमों में दूरी बनाए रखी, जिससे यह संकेत और मजबूत हुआ कि पार्टी के अंदर खींचतान अपने चरम पर है।

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भाई-बहन के बीच गहरता जा रहा मतभेद

दरअसल, तेलंगाना में भारत राष्ट्र समिति (BRS) के भीतर एक गंभीर राजनीतिक संकट उभरकर सामने आया है, जिसमें पार्टी प्रमुख के. चंद्रशेखर राव (KCR) की बेटी के कविता और उनके बेटे केटी रामाराव (KTR) के बीच गहरा मतभेद देखा जा रहा है। के. कविता ने आरोप लगाया कि जब वह दिल्ली शराब नीति मामले में जेल में थीं, तब पार्टी के कुछ वरिष्ठ नेताओं ने BRS को भारतीय जनता पार्टी (BJP) में विलय करने की योजना बनाई थी। उन्होंने इस प्रस्ताव को सख्ती से खारिज कर दिया और इसे तेलंगाना के हितों के खिलाफ बताया।

कविता ने अप्रत्यक्ष रूप से KTR पर साधा निशाना

कविता ने अपने भाई और पार्टी के कार्यकारी अध्यक्ष KTR पर अप्रत्यक्ष रूप से निशाना साधते हुए कहा कि पार्टी को केवल सोशल मीडिया के माध्यम से नहीं चलाया जा सकता है। उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि पार्टी के कुछ नेता उन्हें पार्टी से बाहर करने की साजिश रच रहे हैं। उन्होंने यह भी कहा कि कार्यकारी अध्यक्ष के रूप में उनकी दावेदारी को उनके भाई के दबाव के कारण ही नजरअंदाज किया गया था।

के कविता का पत्र लीक

उन्होंने अपने पिता KCR को 6 पन्नों का पत्र लिखा था, जिसमें उन्होंने पार्टी की कार्यप्रणाली और संगठनात्मक मुद्दों पर चिंता व्यक्त की थी। यह पत्र लीक हो गया, जिससे उन्होंने पार्टी के अंदरूनी लोगों पर विश्वासघात का आरोप लगाया। कविता का कहना है कि वह अक्सर अपने पिता को पत्र के जरिए ही अपनी और कार्यकर्ताओं की भावनाओं से अवगत कराती थीं, ऐसे में उनके घर पर ही मौजूद किसी शख्स ने पिता से पत्र लेकर लीक कर दिया।

क्या नई राजनीतिक पार्टी बना सकती हैं के कविता?

कविता ने संकेत दिया है कि यदि पार्टी के भीतर की समस्याओं का समाधान नहीं हुआ तो वह अपनी नई राजनीतिक पार्टी बना सकती हैं। हालांकि, उन्होंने यह भी स्पष्ट किया है कि उनकी निष्ठा अभी भी BRS और उनके लिए भगवान स्वरूप पिता KCR के प्रति है। कविता के संगीन आरोप और उसके बाद उपजे विवाद ने तेलंगाना की राजनीति में हलचल मचा दी है और आगामी चुनावों में इसके प्रभाव को लेकर अटकलें लगाई जा रही हैं।

जानें परिवार में क्यों खड़ा हुआ बखेड़ा?

दरअसल, चंद्रशेखर राव ने अलग तेलंगाना राज्य के लिए हुए आंदोलन के दौरान अपनी अलग राजनीतिक पार्टी बना ली थी। साल 2014 में अलग तेलंगाना राज्य बना तो वे राज्य के पहले मुख्यमंत्री भी बन गए, लेकिन ज्यादा वक्त अपने निजी फार्म हाउस में ही रहने के चलते पार्टी और सरकार की बागडोर उन्होंने अपने मंत्री बेटे केटीआर को सौंप दी थी। जब तक कविता दिल्ली की राजनीति में सक्रिय थीं तब तक सब कुछ ठीक-ठाक चलता रहा। लेकिन तेलंगाना में चंद्रशेखर राव की सरकार जाने के बाद कविता को भी वापस हैदराबाद लौटना पड़ा और यहीं से परिवार में राजनीतिक वर्चस्व के लिए बखेड़ा भी शुरू हो गया।

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उधर, कविता के समर्थकों में भी इस बात को लेकर असंतोष देखा जा रहा है कि पार्टी नेतृत्व उनकी गतिविधियों पर नजर रख रहा है। अब बड़ा सवाल यह है कि कविता इन हालातों में आगे कौन सा कदम उठाएंगी? क्या वह अपनी अलग राजनीतिक राह बनाएंगी या पार्टी के भीतर ही अपनी सियासी ताकत को साबित करने की कोशिश करेंगी? फिलहाल, कविता के तेलंगाना के जिलों के दौरों ने गुलाबी पार्टी के अंदर उठ रही हलचलों को और तेज कर दिया है। पार्टी नेतृत्व के लिए यह एक बड़ी चुनौती बनती जा रही है कि वे इस असंतोष को कैसे संभालते हैं? लेकिन इस पूरे मामले में अब तक पार्टी के संस्थापक के चंद्रशेखर राव की चुप्पी भी सबको चौंका रही है।

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