<p style="text-align: justify;"><strong>Drones:</strong> एक दौर था जब तुर्की को यूरोप का "बीमार आदमी" कहा जाता था लेकिन आज वही देश दुनिया में सबसे बड़ा सैन्य ड्रोन निर्यातक बन चुका है. अमेरिका, चीन और इज़राइल जैसे देशों को पीछे छोड़ते हुए तुर्की ने ड्रोन टेक्नोलॉजी में अपनी अलग पहचान बनाई है. यह सफलता अचानक नहीं मिली बल्कि यह तुर्की की वर्षों की मेहनत, आत्मनिर्भरता और रणनीतिक निवेशों का परिणाम है.</p>
<h2 style="text-align: justify;"><strong>शुरुआती दौर की चुनौतियां</strong></h2>
<p style="text-align: justify;">90 के दशक में जब तुर्की ने इज़राइल से हेरोन UAV खरीदने की कोशिश की तो एक शर्त रखी गई कि उन्हें इज़राइली पायलट ही उड़ाएंगे. तुर्की को यह बात नागवार गुजरी, और उसने तय कर लिया कि अब वह विदेशी हथियारों पर निर्भर नहीं रहेगा. इसके बाद, कई बार उसे अपने पारंपरिक सहयोगियों से प्रतिबंध और अस्वीकार झेलने पड़े जिससे तुर्की और भी ज्यादा आत्मनिर्भर ड्रोन तकनीक विकसित करने के लिए प्रेरित हुआ.</p>
<h2 style="text-align: justify;"><strong>कैसे बना तुर्की का स्वदेशी ड्रोन उद्योग</strong></h2>
<p style="text-align: justify;">शुरुआत में तुर्की के इंजीनियरों ने निगरानी और बचाव जैसे छोटे उद्देश्यों के लिए बेसिक ड्रोन बनाए. धीरे-धीरे उन्होंने ऐसी तकनीक विकसित की जो लड़ाई के मैदान में भी कारगर साबित हो सके. Baykar, Roketsan और Aselsan जैसे घरेलू कंपनियों ने इस बदलाव में अहम भूमिका निभाई. इन कंपनियों ने उन ड्रोन तकनीकों को जन्म दिया जो न सिर्फ आधुनिक हैं बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मुकाबले में भी खरी उतरती हैं. 2014 में Baykar द्वारा विकसित Bayraktar TB2 ने इस बदलाव को नया मोड़ दिया. यह ड्रोन अब तक 7.5 लाख घंटे से भी ज्यादा उड़ान भर चुका है, जो इसकी मजबूती और विश्वसनीयता को दर्शाता है.</p>
<h2 style="text-align: justify;"><strong>दुनिया के ड्रोन बाजार में तुर्की की बढ़त</strong></h2>
<p style="text-align: justify;">आज तुर्की उन देशों में शामिल है जो सबसे ज्यादा ड्रोन निर्यात करते हैं. अमेरिका, चीन और इज़राइल जैसे देशों को पीछे छोड़ते हुए तुर्की का ग्लोबल ड्रोन बाजार में 65% हिस्सा हो चुका है, जबकि चीन का 26% और अमेरिका का सिर्फ 8% है. इस सफलता का राज है तुर्की की आत्मनिर्भर रक्षा नीति और किफायती लेकिन हाई-टेक ड्रोनों का निर्माण. इससे वो देशों को आकर्षित करता है जो अमेरिकी या चीनी विकल्पों से बचना चाहते हैं. यूक्रेन, लीबिया, सीरिया और अजरबैजान जैसे क्षेत्रों में तुर्की के ड्रोन काफी प्रभावशाली साबित हुए हैं. यूक्रेन-रूस संघर्ष में TB2 ड्रोन ने रूसी सेना के खिलाफ कारगर हमला करके अपनी ताकत दिखाई है.</p>
<h2 style="text-align: justify;"><strong>Bayraktar TB2 और Akinci की ताकत</strong></h2>
<p style="text-align: justify;">Bayraktar TB2 अब सिर्फ एक ड्रोन नहीं, बल्कि तुर्की की तकनीकी पहचान बन चुका है. इसकी कम लागत और उच्च क्षमता ने कई देशों के लिए इसे आदर्श विकल्प बना दिया है. इसके बाद Baykar ने Akinci ड्रोन बनाया – जो ज्यादा ऊंचाई तक उड़ सकता है, ज्यादा हथियार ले जा सकता है और जटिल मिशनों को अंजाम दे सकता है. यह तुर्की को कॉम्बैट ड्रोन क्षेत्र में और भी आगे ले जाता है.</p>
<p style="text-align: justify;">इसके अलावा, Kızılelma और TB3 जैसे मॉडलों को खासतौर पर आत्मघाती मिशनों और संवेदनशील सैन्य ठिकानों पर हमला करने के लिए तैयार किया गया है.</p>
<h2 style="text-align: justify;"><strong>एक नया सैन्य संतुलन बनता हुआ</strong></h2>
<p style="text-align: justify;">2021 में चीन को पीछे छोड़ने के बाद तुर्की के ड्रोन निर्यात में भारी उछाल आया. 2022 में उसने $1.8 बिलियन से ज्यादा के ड्रोन बेचे, जिनमें से 83% Baykar ने निर्यात किए. अब ऐसा लग रहा है कि अमेरिका और इज़राइल की UAV में जो दशकों से पकड़ थी, वह कमजोर हो रही है. तुर्की ने दिखा दिया कि वह कम लागत में बेहतरीन, भरोसेमंद और प्रभावशाली ड्रोन बना सकता है. यह बदलाव छोटे देशों को भी सैन्य रूप से सशक्त बना रहा है, जिससे वैश्विक सैन्य संतुलन में एक नया अध्याय शुरू हो चुका है.</p>
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