क्या प्राचीन भारत में परमाणु हथियार जैसे कोई उदाहरण मिलते हैं? इसका उत्तर जानने के लिए पौराणिक ग्रंथों को खंगालना होगा. महाभारत एक ऐसा ग्रंथ जो केवल एक धार्मिक ग्रंथ नहीं है बल्कि एक रहस्यमय वैज्ञानिक दस्तावेज भी है.
इसमें वर्णित ब्रह्मास्त्र और ब्रह्मशिरोऽस्त्र जैसे अस्त्रों की शक्ति और प्रभाव इतने प्रचंड बताए गए हैं कि वे आधुनिक परमाणु बम जैसी विध्वंसक शक्ति से मेल खाते प्रतीत होते हैं. अब प्रश्न उठता है कि क्या यह केवल कल्पना थी, या कोई प्राचीन तकनीक का संकेत?
ब्रह्मास्त्र: दिव्य अस्त्र या परमाणु बम?
महाभारत में ब्रह्मास्त्र का उपयोग अर्जुन, कर्ण और अश्वत्थामा जैसे महायोद्धाओं ने किया था. ग्रंथों में इसका वर्णन कुछ इस प्रकार मिलता है-
- आकाश में सहस्त्र सूर्य के समान प्रकाश फैल गया
- तीव्र गर्मी से नदियों का जल खौलने लगा
- तेज हवाएं विषैली हो गईं
- पक्षी आसमान से गिरने लगे
- मनुष्यों को त्वचा पर जलन और बाल झड़ने जैसी समस्याएं होने लगीं
ये कुछ वैसा ही लगता है जैसा हिरोशिमा-नागासाकी में हुआ था.
ब्रह्मास्त्र, अस्त्रों में सबसे शक्तिशाली अस्त्र
पौराणिक कथाओं में मिलने वाले सभी अस्त्रों में सबसे शक्तिशाली अस्त्र ब्रह्मास्त्र (Brahmastra) है. इसे ‘ब्रह्म शिरोस्त्र’ भी कहा जाता है. ऐसी मान्यात है कि भगवान शिव ने इस अस्त्र को अगस्त्य ऋषि को दिया था. अगस्त्य ऋषि बाद में इसे अग्निवेश को दिया, जिन्होंने इसे आचार्य द्रोण को दे दिया.
महाभारत का युद्ध 18 दिनों तक चला था. जब महाभारत युद्ध अपने अंतिम चरण में था, तब अश्वत्थामा ने ब्रह्मशिरोऽस्त्र का प्रयोग किया. बताते हैं कि यह अस्त्र इतना घातक था कि यदि यह अपने लक्ष्य से टकरा जाता, तो संपूर्ण पृथ्वी का विनाश हो सकता था. तब भगवान श्रीकृष्ण और वेदव्यास ने इस स्थिति को समझते हुए दोनों योद्धाओं को रोकने का प्रयास किया.
महाभारत के सौप्तिक पर्व के अध्याय 13 से 15 तक में ब्रह्मास्त्र के परिणामों का जिक्र मिलता है. ब्रह्मास्त्र, भगवान ब्रह्मा ने बनाया था, जो अत्यंत शक्तिशाली हथियार है. जिसका इस्तेमाल युद्ध और विनाशकारी शक्तियों के लिए किया जाता है.
आज के परिदृश्य में देखें तो ये ठीक आधुनिक परमाणु युद्ध (Mutual Assured Destruction) का प्रतीक लगता है. जैसे दो शक्तियां एक-दूसरे को नष्ट करने के लिए आतुर रहती हैं.
लिंग पुराण और विष्णु पुराण जैसे ग्रंथों में प्रलय की बात कही गई है, जो विस्फोट जैसी स्थिति को दर्शाती हैं. जैसे-
- आकाश से अग्नि की वर्षा
- जलाशयों का सूखना और खौलना
- हवाओं का विषाक्त होना
- जीवन का समाप्त हो जाना
यह सब किसी भारी विस्फोट या ऊर्जा के विनाशकारी परिणामों जैसा प्रतीत होता है.
हालांकि शास्त्रों में किसी भी स्थान पर ‘परमाणु’, ‘यूरेनियम’, या ‘आइसोटोप’ जैसे वैज्ञानिक शब्द नहीं आते हैं, इसलिए इसे आधुनिक तकनीक से सीधे जोड़ना वैज्ञानिक रूप से गलत होगा. लेकिन इससे भी इनकार नहीं किया जा सकता कि उन श्लोकों में एक ऐसी शक्ति का संकेत है, जो आज के विज्ञान के बहुत करीब है.
महाभारत के ब्रह्मास्त्र और ब्रह्मशिरोऽस्त्र कोई सामान्य अस्त्र नहीं थे. ब्लकि ये एक चेतावनी भी थे कि शक्ति का दुरुपयोग सर्वनाश भी ला सकता है. महाभारत और पुराणों में मिलने वाले ये दिव्य अस्त्र यह भी सोचने पर मजबूर करते हैं कि शायद प्राचीन भारत में कोई ऐसी तकनीक या ज्ञान मौजूद था, जिसकी व्याख्या आधुनिक भाषा में नहीं हो सकी. कह सकते हैं कि शास्त्रों की कल्पना और विज्ञान की खोज के बीच की यह कड़ी आज भी शोध और अध्ययन का विषय है.
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