
इस व्रत में बरगद के पेड़ की पूजा का महत्व है. कहते हैं कि ज्येष्ठ अमावस्या के दिन यमराज ने देवी सावित्री के पति सत्यवार को बरगद के पेड़ के नीचे ही पुन: जीवित किया था. इस पेड़ को अक्षय वट माना जाता है, क्योंकि इसका कभी क्षय नहीं होता. यही वजह है कि इस व्रत में वट वृक्ष की पूजा की जाती है.

वट सावित्री व्रत के समय सुहागिन महिलाएं पूजा के दौरान बरगद के पेड़ के तने के चारों ओर 7 बार कच्चा सूत लपेटती हैं. इसे पति-पत्नी के सात जन्मों के अटूट बंधन का संकेत माना जाता है इसलिए बरगद पर सात बार कच्चा सूत लपेटा जाता है ताकि वैवाहिक जीवन में सात जन्मों का साथ बना रहे.

वट वृक्ष की पूजा करने के बाद सावित्री-सत्यवान कथा का पाठ भी करना चाहिए और पति की लंबी उम्र की कामना करें. इस प्रकार वट सावित्री व्रत के दिन पूजा करने से महिलाओं को सौभाग्य प्राप्त होता है.

अगर दिन वट का पेड़ न मिले तो पूजन से एक दिन पहले बरगद के पेड़ की डाली लाकर एक गमले में लगा लें और फिर घर पर भी इसकी पूजा कर सकते हैं.

बरगद के पेड़ की जड़ में ब्रह्मा, तने में भगवान विष्णु और डालियों पर भगवान शिव निवास करते हैं. इसकी शाखाओं को मां सावित्री का प्रतीक माना जाता है. इसकी पूजा से त्रिदेव का आशीर्वाद मिलता है.

26 मई को सोमवार होने से ज्येष्ठ अमावस्या पर सौभाग्यदायक सोमवती अमावस्या का भी संयोग बनेगा. ऐसे में इस दिन वट सावित्री व्रत का संयोग स्त्रियों के लिए लाभदायी होगा.
Published at : 25 May 2025 09:15 AM (IST)
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