कैसे बनाई जाती है प्लेन की Nose Cone, टूटने पर कितना खतरा?

Plane Nose Cone: 21 मई 2025 को दिल्ली से श्रीनगर जा रही इंडिगो की फ्लाइट 6E2142 को खराब मौसम और ओलावृष्टि का सामना करना पड़ा। इस कारण विमान के नोज कोन को नुकसान पहुंचा। पायलट ने सूझबूझ दिखाते हुए श्रीनगर हवाई अड्डे पर आपातकालीन लैंडिंग की, और सभी 227 यात्री सुरक्षित रहे। विमान को तकनीकी खराबी के कारण ‘एयरक्राफ्ट ऑन ग्राउंड’ (AOG) घोषित किया गया, और अब इसकी मरम्मत की जाएगी।

नोज कोन विमान का सबसे आगे वाला हिस्सा है, जो दिखने में नाक की तरह होता है। इसका काम है विमान को हवा में आसानी से उड़ने में मदद करना, क्योंकि यह हवा के दबाव को कम करता है। इसके अंदर रडार, मौसम सेंसर जैसे जरूरी उपकरण होते हैं, जो विमान को सही रास्ता दिखाने और मौसम की जानकारी देने में मदद करते हैं। हर तरह के विमान, जैसे यात्री विमान, लड़ाकू विमान, या मालवाहक विमान, में नोस कोन का आकार और डिजाइन अलग हो सकता है।

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कैसे बनाई जाती है नोज कोन?

नोज कोन बनाना एक सावधानी भरा और तकनीकी काम है। इसे बनाने के लिए कई आसान लेकिन जरूरी कदम उठाए जाते हैं, ताकि यह मजबूत और काम करने लायक हो। नोज कोन को हल्का लेकिन बहुत मजबूत बनाया जाता है। इसके लिए खास सामग्री जैसे कार्बन फाइबर, फाइबरग्लास, या विशेष प्लास्टिक का इस्तेमाल होता है। ये सामग्री हल्की होती हैं और इनमें जंग नहीं लगती है। पुराने विमानों में कभी-कभी एल्यूमिनियम भी इस्तेमाल होता है। रडार के सिग्नल को पास करने के लिए ऐसी सामग्री चुनी जाती है, जो सिग्नल को न रोके।

नोज कोन का डिजाइन कंप्यूटर पर बनाया जाता है। इंजीनियर यह देखते हैं कि यह हवा में कम से कम रुकावट पैदा करे और उपकरणों को सुरक्षित रखे। इसे बनाने से पहले इसे कंप्यूटर पर टेस्ट किया जाता है और हवा की सुरंग (विंड टनल) में भी जांचा जाता है, ताकि यह सुनिश्चित हो कि डिजाइन सही है। नोज कोन को एक खास सांचे में डालकर बनाया जाता है। इसमें सामग्री को कई परतों में जोड़ा जाता है, ताकि यह और मजबूत हो। इसके बाद इसे चिकना करने के लिए पॉलिश किया जाता है, जिससे हवा का दबाव कम रहे और यह बारिश या धूल से खराब न हो।

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लगाई जाती हैं ये चीजें

नोज कोन के अंदर रडार, मौसम सेंसर, और अन्य जरूरी उपकरण लगाए जाते हैं। ये उपकरण विमान को सही दिशा में ले जाने और मौसम की जानकारी देने में मदद करते हैं। इन्हें बहुत सावधानी से फिट किया जाता है। नोज कोन बनने के बाद इसे कई तरह के टेस्ट से गुजरना पड़ता है। इसमें यह जांचा जाता है कि यह तेज हवा, दबाव, और मौसम की स्थिति में टिक सकता है या नहीं। ये टेस्ट यह पक्का करते हैं कि नोज कोन उड़ान के दौरान सुरक्षित रहेगा।

कितनी मजबूत होती है नोज कोन?

नोज कोन को बहुत मजबूत बनाया जाता है, ताकि यह मुश्किल हालात में भी काम कर सके। विमान 800-900 किमी/घंटा की रफ्तार से उड़ता है। नोज कोन को इस तेज गति और हवा के दबाव को झेलने के लिए बनाया जाता है।

नहीं होता मौसम की मार का असर

बारिश, बर्फ, ओलावृष्टि, और तेज हवाओं का सामना करने के लिए नोज कोन को खास सामग्री से बनाया जाता है। उड़ान के दौरान पक्षियों से टकराव हो सकता है। नोज कोन को इतना मजबूत बनाया जाता है कि यह ऐसे टकराव को सह सके। नोज कोन रडार के सिग्नल को पास होने देता है, लेकिन साथ ही उपकरणों को बाहरी नुकसान से बचाता है। हालांकि नोज कोन बहुत मजबूत होता है, लेकिन बहुत तेज ओलावृष्टि या भारी टकराव से इसे नुकसान हो सकता है, जैसा कि इंडिगो फ्लाइट की घटना में हुआ है।

क्यों खास होता है इसका डिजाइन?

नोज कोन का डिजाइन कई कारणों से खास होती है। इसका नुकीला और चिकना आकार हवा के दबाव को कम करता है, जिससे विमान तेज और कम ईंधन में उड़ सकता है। यह रडार और सेंसर जैसे नाजुक उपकरणों को बारिश, धूल, और टकराव से बचाता है। नोज कोन को हल्की सामग्री से बनाया जाता है ताकि विमान का वजन कम रहे, जिससे ईंधन की बचत होती है। इसका डिजाइन इसे हर तरह के मौसम में काम करने लायक बनाता है। नोज कोन विमान को आकर्षक बनाता है और साथ ही जरूरी काम भी करता है।

क्या हो सकता है खतरा?

अगर नोज कोन टूट जाता है, तो कई तरह के खतरे हो सकते हैं, जो विमान और यात्रियों की सुरक्षा को प्रभावित कर सकते हैं। नोज कोन के अंदर रडार और सेंसर जैसे जरूरी उपकरण होते हैं। अगर यह टूट जाए, तो ये उपकरण खराब हो सकते हैं। इससे पायलट को सही दिशा या मौसम की जानकारी मिलना बंद हो सकता है, जिससे उड़ान में खतरा बढ़ सकता है।

नोज कोन का चिकना आकार हवा के दबाव को कम करता है। अगर यह टूट जाए, तो विमान को हवा में उड़ने में ज्यादा मुश्किल होगी, जिससे ईंधन ज्यादा खर्च हो सकता है या विमान का नियंत्रण कम हो सकता है। टूटा हुआ नोज कोन बारिश, धूल, या छोटे-मोटे कणों को अंदर आने दे सकता है, जो उपकरणों को और नुकसान पहुंचा सकता है। अगर नोज कोन पूरी तरह टूट जाए, तो विमान की संरचना कमजोर हो सकती है। इससे आपात स्थिति में लैंडिंग या उड़ान में दिक्कत हो सकती है। नोज कोन के टूटने पर पायलट को जल्दी से विमान को जमीन पर उतारना पड़ सकता है, जैसा कि इंडिगो की घटना में हुआ। इससे उड़ान में देरी और यात्रियों को असुविधा हो सकती है।

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