Shiv ji ki Aarti: सोमवार का दिन भगवान शिव की पूजा-अर्चना के लिए अत्यंत पुण्यदायी और कल्याणकारी माना जाता है. इस दिन भगवान शिव को त्रिलोकेश्वर, भोलेनाथ, आशुतोष, और कल्याण के देवता के रूप में श्रद्धापूर्वक पूजा जाता है. मान्यता है कि जो भक्त सोमवार को शिवजी का व्रत रखते हैं, विधिपूर्वक रुद्राभिषेक करते हैं और शिव पुराण या शिव व्रत कथा का पाठ करते हैं, उनके जीवन से दुख, बाधाएं, रोग और दरिद्रता समाप्त हो जाती है और उन्हें मानसिक शांति, पारिवारिक सुख और आध्यात्मिक बल की प्राप्ति होती है.
यह दिन विशेष रूप से स्त्रियों द्वारा अखंड सौभाग्य,उत्तम वर,संतान सुख और परिवार की मंगलकामना के लिए श्रेष्ठ माना जाता है, वहीं पुरुष भी इस दिन व्रत और उपासना करके अपने जीवन में सफलता, आत्मबल और आर्थिक उन्नति प्राप्त करते हैं.
सोमवार की पूजा विधि इस प्रकार है: प्रातःकाल स्नान कर स्वच्छ या सफेद अथवा हल्के नीले वस्त्र धारण करें. घर के पूजास्थल में या किसी शिव मंदिर में शिवलिंग का दर्शन-पूजन करें. पूजा के लिए बेलपत्र, दूध, दही, घी, शहद, गंगाजल, भस्म, चंदन, धतूरा, भांग, सफेद पुष्प और धूप-दीप की व्यवस्था करें. शिवलिंग पर इन पवित्र वस्तुओं से रुद्राभिषेक करें और ऊँ नमः शिवाय मंत्र का जाप करें.
इसके बाद ‘सोमवार व्रत कथा’ पढ़ें या सुनें और भगवान शिव से जीवन में शांति,सौभाग्य और संतुलन की प्रार्थना करें. पूजा के अंत में शिव आरती करें “ॐ जय शिव ओंकारा” और उपस्थित भक्तों को प्रसाद वितरित करें. व्रत करने वाले इस दिन एक समय फलाहार करें या निर्जल व्रत रखें. इस दिन तामसिक भोजन जैसे मांसाहार, प्याज, लहसुन और शराब आदि का त्याग अवश्य करें. मन, वचन और कर्म से शुद्ध रहते हुए भगवान शिव का स्मरण पूरे दिन करें.
सोमवार का व्रत विशेष रूप से उन लोगों के लिए अत्यंत फलदायी माना जाता है जो पारिवारिक क्लेश, विवाह में विलंब, आर्थिक कष्ट या मानसिक अशांति से जूझ रहे हों. शिवजी की आराधना जीवन में आशा, संतुलन और दिव्य ऊर्जा का संचार करती है. शिव ही आदि हैं, शिव ही अनंत हैं ,उनके चरणों में ही सम्पूर्ण सृष्टि का कल्याण समाहित है. पूजा के बाद शिवजी की आरती जरूर करें, क्योंकि आरती के बिना पूजा अधूरी मानी जाती है.
शिव जी की आरती
ॐ जय शिव ओंकारा,
स्वामी जय शिव ओंकारा।
ब्रह्मा, विष्णु, सदाशिव,
अर्द्धांगी धारा ॥
ॐ जय शिव ओंकारा…॥
एकानन चतुरानन
पंचानन राजे ।
हंसासन गरूड़ासन
वृषवाहन साजे ॥
ॐ जय शिव ओंकारा…॥
दो भुज चार चतुर्भुज
दसभुज अति सोहे ।
त्रिगुण रूप निरखते
त्रिभुवन जन मोहे ॥
ॐ जय शिव ओंकारा…॥
अक्षमाला वनमाला,
मुण्डमाला धारी ।
चंदन मृगमद सोहै,
भाले शशिधारी ॥
ॐ जय शिव ओंकारा…॥
श्वेताम्बर पीताम्बर
बाघम्बर अंगे ।
सनकादिक गरुणादिक
भूतादिक संगे ॥
ॐ जय शिव ओंकारा…॥
कर के मध्य कमंडल
चक्र त्रिशूलधारी ।
सुखकारी दुखहारी
जगपालन कारी ॥
ॐ जय शिव ओंकारा…॥
ब्रह्मा विष्णु सदाशिव
जानत अविवेका ।
प्रणवाक्षर में शोभित
ये तीनों एका ॥
ॐ जय शिव ओंकारा…॥
त्रिगुणस्वामी जी की आरति
जो कोइ नर गावे ।
कहत शिवानंद स्वामी
सुख संपति पावे ॥
ॐ जय शिव ओंकारा…॥
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