Tej Pratap Yadav News: राउज एवेन्यू कोर्ट से आरजेडी सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव के बड़े बेटे और बिहार के पूर्व मंत्री तेज प्रताप यादव को राहत मिली है. विदेश यात्रा की अनुमति दे दी गई है. तेज प्रताप यादव ‘भूमि के बदले नौकरी’ घोटाले में आरोपी हैं और फिलहाल वे जमानत पर हैं. अदालत ने शर्त के साथ उन्हें 17 मई से 23 मई तक मालदीव जाने की इजाजत दी है. स्पेशल जज विशाल गोगने ने कहा कि एक आरोपी का विदेश जाना केवल इस आधार पर नहीं रोका जा सकता कि उस पर गंभीर आरोप है. किसी व्यक्ति का विदेश यात्रा करना उसका मौलिक अधिकार है, चाहे वह आरोपी ही क्यों न हो. न्याय की प्रक्रिया में बाधा न डाली जाए, यही सर्वोपरि है.
क्या है मामला?
यह मामला उस कथित घोटाले से जुड़ा है, जिसमें लालू प्रसाद यादव पर रेल मंत्री रहते हुए 2004 से 2009 के बीच भारतीय रेलवे में नौकरियों के बदले जमीनें अपने परिवार या करीबी सहयोगियों के नाम कराने का आरोप है. सीबीआई द्वारा दर्ज एफआईआर के मुताबिक, पश्चिम मध्य रेलवे, जबलपुर (मध्य प्रदेश) जोन में ग्रुप डी की नियुक्तियों में भारी अनियमितताएं हुईं.
आरोप है कि कई उम्मीदवारों से नौकरियों के बदले पटना और अन्य स्थानों पर स्थित जमीनें बेहद सस्ती कीमत पर या निशुल्क ली गईं, जो बाद में लालू परिवार से जुड़े लोगों के नाम पर पाई गईं. 18 मई 2022 को इस मामले में सीबीआई ने लालू यादव, उनकी पत्नी राबड़ी देवी, बेटियों, तेज प्रताप यादव सहित कई अज्ञात अधिकारियों और निजी व्यक्तियों के खिलाफ केस दर्ज किया था. तेज प्रताप यादव को अदालत ने 11 मार्च 2025 को जमानत दी थी, जब वह समन के जवाब में अदालत में पेश हुए थे.
कोर्ट की शर्तें क्या हैं?
- 25 लाख रुपये की जमानत राशि जमा करनी होगी.
- मालदीव में उनका ठहरने का स्थान, होटल का पता, यात्रा की पूरी योजना और उस दौरान प्रयोग में आने वाला मोबाइल नंबर अदालत में पेश करना होगा.
- यात्रा अवधि किसी भी परिस्थिति में बढ़ाई नहीं जा सकेगी.
- वह न तो साक्ष्यों से छेड़छाड़ कर सकते हैं, न ही गवाहों को प्रभावित कर सकते हैं.
- अगर इन शर्तों का उल्लंघन होता है तो जमानत रद्द की जा सकती है.
तेज प्रताप यादव को यह राहत ऐसे समय में मिली है जब बिहार की राजनीति उथल-पुथल के दौर से गुजर रही है. एक ओर लालू परिवार पर लगे आरोपों को लेकर बीजेपी और एनडीए हमलावर है, वहीं आरजेडी इसे राजनीतिक बदले की कार्रवाई बता रही है. हालांकि अदालत का यह फैसला दिखाता है कि न्यायिक प्रक्रिया राजनीतिक प्रभाव से परे चल रही है और हर आरोपी को कानून के दायरे में रहकर अपने अधिकारों का प्रयोग करने का पूरा हक है.
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