अचानक हुई सीजफायर की घटना ने सरकार पर कई सवाल खड़े कर दिए, मैंने कभी नहीं सुना सीजफायर कभी अस्थाई रूप से हुआ हो: अशोक गहलोत

नई दिल्ली। कांग्रेस नेता और पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने मंगलवार को कांग्रेस कार्यालय में प्रेस कॉफ्रेंस की। इस दौरान उन्होंने कहा कि, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कल राष्ट्र के नाम संबोधन दिया, लेकिन उन्होंने निराश किया। अचानक हुए सीजफायर को देश समझ नहीं पा रहा है, क्योंकि ये पूरी तरह से गोपनीय रहा। हमारी सेना ने बहुत अच्छा काम किया, हम उन्हें सलाम करते हैं। सेना ने आतंकी ठिकानों को निशाना बनाया, जिसकी पूरी दुनिया में तारीफ हुई। पहलगाम में जो घटना हुई, उससे देश के हर परिवार में दुख था। देश में ऐसे हालात के बीच सेना ने हमला किया, जिसमें 100 आतंकी मारे गए।

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उन्होंने आगे कहा, अमेरिका ने पहले भी हिंदुस्तान पर दबाव बनाया था, लेकिन हम कभी झुके नहीं और पाकिस्तान के दो टुकड़े कर दिए। शिमला समझौते के वक्त भी हमने किसी दूसरे देश को बीच में आने नहीं दिया। लेकिन अब जिस तरह से डोनाल्ड ट्रंप बीच में आ रहे हैं, उस पर प्रधानमंत्री मोदी और सरकार को जवाब देना चाहिए। आख़िर ट्रंप के बयानों पर सरकार स्पष्टीकरण क्यों नहीं दे रही है?

साथ ही कहा, डोनाल्ड ट्रंप ने कौन सी ठेकेदारी ले रखी है? ट्रंप या तो ख़ुद ठेकेदार बन गए या हमारी चुप्पी ने उनके हौसले को बढ़ा दिया है, जिस कारण वो सीजफायर की घोषणा कर रहे हैं। अब ट्रंप कह रहे हैं कि कश्मीर मुद्दे को भी वे सुलझाएंगे, जबकि इससे पहले तक भारत की नीति सिर्फ द्विपक्षीय ही रही है। कश्मीर मसले को सुलझाने को लेकर ट्रंप जो बात कह रहे हैं, वह बहुत ही गंभीर है। इधर PM मोदी का संबोधन होने वाला था, लेकिन उससे पहले ही ट्रंप ने ऐलान कर दिया कि हमने भारत-पाकिस्तान से कहा कि व्यापार करना है तो युद्धविराम करना होगा। इन तमाम बातों का जवाब प्रधानमंत्री मोदी को देना चाहिए। हमें पाकिस्तान की ऐसी स्थिति कर देनी चाहिए थी कि वो आतंकी घटना करने के काबिल न रहें, लेकिन अचानक सीजफायर हो गया। ट्रंप के ऐलान के बाद पूरा देश सकते में है कि आख़िर हो क्या रहा है? क्योंकि सीजफायर के बाद भी पाकिस्तान का हमारे देश के ऊपर हमला जारी रहा।

अशोक गहलोत ने आगे कहा, इससे जुड़ी अलग-अलग बातें मीडिया में चल रही हैं, इसलिए इसके बारे में जब तक सरकार खुद नहीं बोलेगी, तब तक मीडिया के लोग सूत्रों के आधार पर लिखते रहेंगे। देश जानना चाहता है कि प्रधानमंत्री मोदी पर किस प्रकार का दबाव है कि वे कोई स्पष्टीकरण नहीं दे पा रहे हैं। कल प्रधानमंत्री मोदी ने जब संबोधन दिया तो उम्मीद थी कि वे इन बातों पर जवाब देंगे, लेकिन वे बोले ही नहीं। इस कारण सरकार और देश को बहुत भारी नुकसान हुआ है, क्योंकि सेना बहुत अच्छा काम कर रही थी, लेकिन अचानक सीजफायर कर दिया गया।

उन्होंने आगे कहा, मैंने 11 साल में पहली बार अनुभव किया कि देश का पक्ष और विपक्ष एक साथ है। ऐसी मुश्किल घड़ी में हम सभी एकजुट थे, इससे पूरी दुनिया में एक संदेश गया कि हम एक हैं। नरेंद्र मोदी के आने के बाद देश से ये माहौल चला ही गया था, यहां इनकम टैक्स, ED और CBI का राज चल रहा था। ED ने पक्ष-विपक्ष के बीच दूरियां बढ़ा दी थी। राहुल गांधी जी ने कहा कि इस मुश्किल घड़ी में पूरा विपक्ष सरकार के साथ खड़ा है। उन्होंने न सिर्फ कहा बल्कि निभाया। देश की एकजुटता ने सेना का हौसला बढ़ाया। लेकिन फिर ऐसी क्या वजह थी कि सारी चीजें बदल गई, सब पलट गया? जहां हमें हमारी सेना के शौर्य और पराक्रम पर बहुत गर्व है, वहीं अचानक हुई सीजफायर की घटना ने सरकार पर कई सवाल खड़े कर दिए हैं।

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पूर्व मुख्यमंत्री ने आगे कहा, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि ‘ऑपरेशन सिंदूर’ अस्थाई रूप से स्थगित हुआ है। मैंने तो पहले कभी नहीं सुना कि सीजफायर कभी अस्थाई रूप से हुआ हो। अगर अस्थाई है तो फिर पता नहीं पाकिस्तान कब बदल जाएगा। क्या ‘ऑपरेशन सिंदूर’ अमेरिका के दबाव में स्थगित किया गया? ये बातें साफ होनी चाहिए। पूरा विपक्ष आतंकवाद के ख़िलाफ़ कार्रवाई में सरकार के साथ है, फिर PM मोदी सर्वदलीय बैठक में क्यों शामिल नहीं हो रहे हैं। दो ऑल पार्टी मीटिंग हो चुकी हैं, लेकिन वे किसी में शामिल नहीं हुए। सरकार को इस मामले पर संसद का एक सत्र भी बुलाना चाहिए, ताकि इस मुद्दे पर चर्चा हो, बातें रिकॉर्ड में रहे और पूरे देश को जानकारी हो कि सरकार की क्या नीति है?

साथ ही कहा, राहुल गांधी जी ने देश को कई बार चेताया। चाहे फिर वो कोरोना काल हो या फिर चीन से दोस्ती की बात हो। अज़रबैजान और तुर्की खुलकर पाकिस्तान के साथ आए, लेकिन पहगलाम में हुए अन्याय के बाद भी हमारे साथ कोई देश खुलकर खड़ा नहीं हुआ। सरकार को इसका जवाब देना होगा। ये सरकार नैतिक अधिकार और साहस दोनों खो चुकी है। हमारे पास पाकिस्तान के आतंकवाद को हमेशा के लिए नेस्तनाबूद करने का एक मौका था। अगर सीजफायर करना ही था तो प्रधानमंत्री स्तर पर या विदेश मंत्री स्तर पर बात होनी चाहिए थी, जिसमें साफ कहा जाता कि पाकिस्तान की सरकार अपनी धरती पर आतंकवादियों के अड्डे नहीं पनपने देगी।

 

 

 

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