<p style="text-align: justify;">हीमोफीलिया बेहद गंभीर और दुर्लभ जेनेटिक बीमारी है. इस बीमारी में खून के थक्के बनने की प्रक्रिया पर असर पड़ता है. गौर करने वाली बात यह है कि बच्चों के लिए यह बीमारी काफी खतरनाक हो सकती है, क्योंकि उनके शरीर में चोट लगने, खून बहने और इंटरनल ब्लीडिंग को रोकने की प्राकृतिक क्षमता कम होती है. विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के मुताबिक, दुनियाभर में करीब चार लाख लोग हीमोफीलिया से पीड़ित हैं. वहीं, भारत में हर साल 20,000 से ज्यादा मामले सामने आते हैं. यह बीमारी ज्यादातर मामलों में लड़कों में देखी जाती है, क्योंकि इसका सीधा कनेक्शन X क्रोमोसोम से है. आइए जानते हैं कि हीमोफीलिया क्या है? इसके लक्षण कैसे होते हैं और बच्चों के लिए यह क्यों खतरनाक है?</p>
<p style="text-align: justify;"><strong>कितनी खतरनाक बीमारी है हीमोफीलिया?</strong></p>
<p style="text-align: justify;">हीमोफीलिया एक जेनेटिक बीमारी है. इस रोग की चपेट में आने पर शरीर में खून का थक्का बनने की प्रक्रिया ठीक से काम नहीं करती है. आमतौर पर जब हमें चोट लगती है तो खून में मौजूद प्रोटीन (क्लॉटिंग फैक्टर्स) ब्लीडिंग को रोकने के लिए थक्का बनाते हैं, लेकिन हीमोफीलिया से पीड़ित लोगों में क्लॉटिंग फैक्टर्स (खासकर फैक्टर VIII या IX) की कमी होती है. इसकी वजह से खून बहना बंद नहीं होता है. यह बीमारी दो तरह की होती है. पहली हीमोफीलिया A, जो फैक्टर VIII की कमी के कारण होती है. यह हीमोफीलिया होने की सबसे आम वजह है. दूसरी हीमोफीलिया B, जो फैक्टर IX की कमी के कारण होती है. इसे क्रिसमस डिजीज भी कहते हैं. यह बीमारी ज्यादातर लड़कों में होती है, क्योंकि यह X क्रोमोसोम से जुड़ी होती है. इस बीमारी के लिए लड़कियां ज्यादातर कैरियर होती हैं, लेकिन उनमें लक्षण हल्के हो सकते हैं.</p>
<p style="text-align: justify;"><strong>बच्चों के लिए हीमोफीलिया कितनी खतरनाक?</strong></p>
<p style="text-align: justify;">दौड़ना-खेलना और गिरना बच्चों की रोजमर्रा की जिंदगी का हिस्सा होता है. इस दौरान बच्चों को चोटें भी लगती हैं. अगर बच्चा हीमोफीलिया से पीड़ित है तो उसके लिए छोटी-सी चोट भी बेहद खतरनाक साबित हो सकती है. हीमोफीलिया से जूझ रहे बच्चों के जोड़ों जैसे घुटने और कोहनी के अलावा मांसपेशियों में इंटरनल ब्लीडिंग हो सकती है. वहीं, सिर में चोट लगने पर दिमाग में ब्लीडिंग का खतरा बढ़ जाता है. इससे बच्चों को बेहोशी, दौरे जैसी दिक्कतें हो सकती हैं. इसके अलावा कई मामलों में मौत भी हो जाती है. हीमोफीलिया से पीड़ित बच्चों के लिए छोटी-सी खरोंच, दांत निकलना या नाक से खून बहना भी खतरनाक हो सकता है, क्योंकि ब्लीडिंग रोकने में परेशानी होती है. साथ ही, बार-बार ब्लीडिंग और इलाज के लिए इंजेक्शन लगवाने से इंफेक्शन का खतरा भी बढ़ता है. </p>
<p style="text-align: justify;"><strong>ऐसे होते हैं हीमोफीलिया के लक्षण</strong></p>
<p style="text-align: justify;">हीमोफीलिया के लक्षण बच्चों में जन्म के कुछ समय बाद या एक से दो साल की उम्र में नजर आने लगते हैं. अगर छोटी-सी चोट के बाद भी बच्चे की ब्लीडिंग नहीं रुक रही है तो यह हीमोफीलिया का लक्षण हो सकता है. इस बीमारी में हल्के दबाव या टक्कर से भी स्किन पर बड़े नीले-बैंगनी निशान (ब्रूइज) बन जाते हैं. जोड़ों में इंटरनल ब्लीडिंग की वजह से बार-बार सूजन आना भी इसी बीमारी का लक्षण है. हीमोफीलिया से जूझ रहे बच्चों में नाक से खून बहना बेहद आम समस्या है. इस बीमारी में मसूड़ों से खून बहने लगता है. </p>
<p style="text-align: justify;"><strong>कैसे कराएं इस खतरनाक बीमारी का इलाज?</strong></p>
<p style="text-align: justify;">हीमोफीलिया जेनेटिक बीमारी है. अगर इस बीमारी की फैमिली हिस्ट्री है तो समय-समय पर जांच जरूर करानी चाहिए. वहीं, ब्लड का क्लॉटिंग फैक्टर टेस्ट (फैक्टर VIII और IX का स्तर) कराने से बीमारी का पता लगाया जा सकता है. आमतौर पर हीमोफीलिया का कोई स्थायी इलाज नहीं है, लेकिन सही मैनेजमेंट से बच्चों को सामान्य जीवन जीने में मदद की जा सकती है. इसके लिए सबसे पहले रिप्लेसमेंट थैरेपी होती है, जिसमें कमी वाले क्लॉटिंग फैक्टर (VIII या IX) को इंजेक्शन की मदद से शरीर में डाला जाता है. जोड़ों में होने वाली ब्लीडिंग को रोकने के लिए फिजियोथेरेपी जरूरी होती है. यह जोड़ों को लचीला रखती है और दर्द से राहत दिलाती है. वैज्ञानिक जीन थैरेपी पर काम कर रहे हैं, जिसमें खराब जीन को ठीक करके हीमोफीलिया का इलाज किया जा सकेगा.</p>
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<p><strong>Disclaimer: खबर में दी गई कुछ जानकारी मीडिया रिपोर्ट्स पर आधारित है. आप किसी भी सुझाव को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह जरूर लें.</strong></p>
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