Satyanarayan Aarti: पूर्णिमा का दिन विशेष रूप से भगवान सत्यनारायण की पूजा के लिए अत्यंत शुभ माना जाता है, विशेषकर जब यह दिन वैशाख पूर्णिमा पर आता है. सत्यनारायण भगवान को सत्य, धर्म और कल्याण के प्रतीक रूप में पूजा जाता है. ऐसा माना जाता है कि जो व्यक्ति पूर्ण श्रद्धा और विधिपूर्वक सत्यनारायण व्रत एवं कथा करता है, उसके जीवन से दुख-दरिद्रता का नाश होता है, परिवार में सुख-समृद्धि आती है और कार्यों में सफलता प्राप्त होती है.
इस दिन की पूजा की विशेष विधि है. प्रातःकाल स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें, फिर घर के पवित्र स्थान या मंदिर में पीले वस्त्र से वेदी बनाएं. भगवान विष्णु के सत्यनारायण रूप की मूर्ति या चित्र स्थापित करें. पंचामृत से अभिषेक कर उन्हें पीले पुष्प, तुलसी पत्र, चावल, धूप-दीप आदि अर्पित करें. पूजन में केले, नारियल, गेहूं का आटा, दूध, चीनी, घी और सूखे मेवों से बने पंचामृत या प्रसाद का विशेष महत्व होता है.
पूजन के बाद श्रद्धा से “सत्यनारायण व्रत कथा” के पांच अध्यायों का पाठ करें. कथा सुनने-सुनाने से समस्त मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं. इसके पश्चात आरती करें और सभी उपस्थित जनों में प्रसाद वितरित करें. इस दिन व्रत रखने वाले व्यक्ति को सात्विक आहार ग्रहण करना चाहिए, जिसमें लहसुन-प्याज, मसालेदार व तामसिक भोजन से परहेज करें.
जरूरतमंदों को अन्न, वस्त्र और दक्षिणा दान करना भी पुण्यकारी होता है. भगवान सत्यनारायण की कृपा से घर-परिवार में खुशहाली, सौभाग्य और संतोष का वास होता है. विशेष रूप से सोमवार के दिन सत्यनारायण भगवान की पूजा करने से चंद्र दोष शांत होता है और मानसिक शांति प्राप्त होती है.
पूजा के अंत में “ॐ नमो भगवते वासुदेवाय” मंत्र का जाप करें. भगवान की कथा और नामस्मरण से जीवन में सकारात्मक ऊर्जा, शांति और आध्यात्मिक उन्नति का अनुभव होता है.
श्री सत्यनारायण भगवान की आरती
ॐ जय लक्ष्मी रमणा, स्वामी जय लक्ष्मी रमणा ।
सत्यनारायण स्वामी, जन-पातक-हरणा ॥
रत्न जड़ित सिंहासन, अद्भुत छवि राजे ।
नारद करत नीराजन, घंटा वन बाजे ॥
प्रकट भए कलिकारन, द्विज को दरस दियो ।
बूढ़ो ब्राह्मण बनकर, कंचन महल कियो ॥
दुर्बल भील कठारो, जिन पर कृपा करी ।
चंद्रचूड़ एक राजा, तिनकी विपति हरी ॥
वैश्य मनोरथ पायो, श्रद्धा तज दीन्ही ।
सो फल भोग्यो प्रभुजी, फिर स्तुति किन्ही ॥
भाव-भक्ति के कारण, छिन-छिन रूप धारा
श्रद्धा धारण किन्ही, तिनको काज सरो ॥
ग्वाल-बाल संग राजा, बन में भक्ति करी ।
मनवांछित फल दीन्हों, दीन दयालु हरि ॥
चढ़त प्रसाद सवायो, कदली फल मेवा ।
धूप-दीप-तुलसी से, राजी सत्यदेवा ॥
सत्यनारायणजी की आरती जो कोई नर गावे ।
कहत शिवानंद स्वामी, वांछित फल पावे ॥
ॐ जय लक्ष्मी रमणा, स्वामी जय लक्ष्मी रमणा ।
सत्यनारायण स्वामी, जन-पातक-हरणा ॥
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