Option Trading Tips: ऑप्शन ट्रेडिंग इंस्ट्रूमेंट अपनी कई खासियतों के कारण अधिक लोकप्रिय है। एक ही स्टॉक के लिए कई इंस्ट्रूमेंट का होना इसे ज्यादा दिलचस्प बनाता है। ट्रेडिंग का मतलब पूर्वानुमान लगाना है। भले ही पूर्वानुमान सही हो, लेकिन यह उम्मीद के मुताबिक नहीं भी हो सकता है। यहीं पर हमें ऑप्शन में ट्रेड एडजस्टमेंट करने की जरूरत होती है। ट्रेड एडजस्टमेंट का मतलब है ट्रेड किए जाने के बाद होने वाले बदलाव को एडजस्ट करने के लिए मूल स्थिति में बदलाव करना। ट्रेड एडजस्टमेंट का सबसे शुरुआती स्वरूप ट्रेड के मुनाफे में जाने के बाद लगाया जाने वाला ट्रेलिंग स्टॉप लॉस है। यहां पर आगे Quantsapp Pvt. Ltd के CEO & हेड ऑफ रिसर्च शुभम अग्रवाल ने ऑप्शन ट्रेड की तीन बारीकियां बताई जिनको जानने से ट्रेडर्स के लिए घाट से बचना आसान हो सकता है।
हम ऑप्शन ट्रेड में 3 ऐसे ट्रेड एडजस्टमेंट के बारे में बात करेंगे जो मुनाफा, घाटा और जोखिम से संबंधित हैं।
1. प्रॉफिट लॉकिंग एडजस्टमेंट
इसके लिए प्रॉफिट से शुरू करते हैं। स्टॉप लॉस और लक्ष्य की मदद से अपनी पोजीशन को एडजस्ट करने के कई तरीके हैं। हालांकि, ऑप्शंस के साथ ऐसा करने का सबसे आसान तरीका प्रॉफिट लॉकिंग है। आइए हम उन ट्रेडों के 2 उदाहरण लेते हैं जिन्हें हम लेंगे और जानेंगे कि उसमें प्रॉफिट को कैसे लॉक किया जा सकता है।
सिंगल ऑप्शन खरीदें: मान लें कि हमारे पास 100 के लेवल पर एक स्टॉक है, जिसके 105 के लेवल तक जाने की उम्मीद है। हम बुलिश व्यू पर ट्रेड करने के लिए 100 की स्ट्राइक वाली कॉल खरीदते हैं। अब स्टॉक सिर्फ एक दिन में 102.5 तक चला जाता है। यहां, ट्रेलिंग स्टॉप लॉस अच्छा काम कर सकता है लेकिन इसके बजाय, इसमें एडजस्टमेंट करें।
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100 की कॉल में मुनाफा बुक करें और 102.5 की कॉल खरीदें।
अब 2 में से 1 चीज हो सकती है। अगर 105 का लेवल हासिल हो जाता है तो 102.5 की कॉल में होने वाला मुनाफा + 100 की कॉल में होने वाला मुनाफा, उतना ही होगा जितना 100 के कॉल ऑप्शन के 105 के लेवल तक जाने पर होगा।
हालांकि, अगर भाव उम्मीद से नीचे जाता है तो भी कोई ट्रेलिंग स्टॉप लॉस की आवश्यकता नहीं है। पहले लगाये गेय मूल स्टॉप लॉस को बनाये रखें और दोनों ट्रेडों को एक साथ रखने पर भी इसमें नो प्रॉफिट नो लॉस हो सकता है, भले ही स्टॉक स्टॉपलॉस स्तर पर पहुंच गया हो।
2. लॉस रिस्ट्रिक्शन एडजस्टमेंट्स
यह उन स्थितियों के लिए अधिक उपयोगी है जहां सेल ऑप्शन शामिल है। उदाहरण के लिए आपके पास 102.5 की कॉल में सेल पोजीशन है।
यदि स्टॉक 102.5 पर आता है और आपको लगता है कि सेल ऑप्शन की पोजीशन भारी नुकसान में जा सकती है। याद रखें कि सेल ऑप्शन की पोजीशन में असीमित जोखिम की आशंका होती है। इसके साथ 105 का सस्ता ऑप्शन खरीदकर जोखिम कम करें।
यह ऑप्शन 102.5 के सेल प्राइस से सस्ता होना चाहिए। इससे मुनाफे के नुकसान की कीमत पर ट्रेड को सुरक्षित रखने में मदद मिलेगी। लेकिन ये सुरक्षा, मार्जिन को कम करेगी जिससे यह ट्रेड किफायती हो जाएगा।
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3. डिस्फंक्शनल रिस्क कट
यह चर्चा का एक अलग विषय है। लेकिन ट्रेड एडजस्टमेंट के नजरिए से, जब हमारे पास एक ही ट्रेड में कई ऑप्शन होते हैं, तो उनमें से कुछ ने उम्मीद के मुताबिक प्रदर्शन कर सकते हैं, लेकिन फिर भी जोखिम बढ़ जाता है।
उदाहरण के लिए, हमारे पास 105 की स्ट्राइक के कॉल में फ्यूचर में बाय और सेल दोनों पोजीशन है। यह एक बुलिश ट्रेड है जिसमें प्रीमियम हासिल करने के लिए 105 की कॉल बेची जाती है। अब, अगर एक्सपायरी के करीब 105 की स्ट्राइक के कॉल प्रीमियम हमारे सेल प्राइस से 80% कम हो जाता है, तो इसे होल्ड करना बेकार होगा।
यह अपना काम कर चुका है। बस अब आप उन सेल ऑप्शन से छुटकारा पा लें जिन्होंने हमारे प्राइस से 80% की गिरावट दिखाई है क्योंकि इस ट्रेड का रिस्क रिवार्ड खराब नजर आ रहा है।
ये उदाहरण 3 अलग-अलग दिशाओं की ओर संकेत करते हैं जिनमें जरूरत के मुताबिक फेरबदल किया जा सकता है लेकिन इनका लक्ष्य एक ही होगा।
(डिस्क्लेमरः Moneycontrol.com पर दिए जाने वाले विचार और निवेश सलाह निवेश विशेषज्ञों के अपने निजी विचार और राय होते हैं। Moneycontrol यूजर्स को सलाह देता है कि वह कोई निवेश निर्णय लेने के पहले सर्टिफाइड एक्सपर्ट से सलाह लें।)
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