Stock Market During War: इस समय जब भारत और पाकिस्तान (India Vs Pakistan War) के बीच सीमा पर तनाव चरम पर है और युद्ध जैसे हालात बने हुए हैं, तो आम आदमी से लेकर निवेशकों तक, सबके मन में एक ही सवाल है- इसका अर्थव्यवस्था और खासकर शेयर बाजार (Stock Market) पर क्या असर पड़ेगा? क्या बाजार क्रैश हो जाएगा? या फिर यह निवेश का एक मौका साबित हो सकता है? इन सवालों का जवाब ढूंढने के लिए हमें इतिहास के पन्नों को पलटना होगा, खासकर 1999 के कारगिल युद्ध (Kargil War) के समय को. आज हम आपको बताएंगे कि जब 1999 में भारत और पाकिस्तान के बीच कारगिल में भीषण युद्ध छिड़ा था, तब भारतीय शेयर बाजार ने कैसा प्रदर्शन किया था. आंकड़े जानकर आप हैरान रह जाएंगे, क्योंकि युद्ध की आशंकाओं के विपरीत, बाजार ने उस दौरान एकतरफा ‘तेजी की उड़ान’ भरी थी. Sensex ने ‘रॉकेट’ जैसी दौड़ लगाई थी.
कारगिल युद्ध: 84 दिनों का संघर्ष और बाजार का जोश
3 मई 1999 से 26 जुलाई 1999 तक, यानी कुल 84 दिनों तक चले कारगिल युद्ध ने पूरे देश को झकझोर दिया था. सीमा पर हमारे जवान अपनी जान की बाजी लगा रहे थे, और देश में हर तरफ चिंता और अनिश्चितता का माहौल था. ऐसे में आम तौर पर यही माना जाता है कि शेयर बाजार में भारी गिरावट आएगी, क्योंकि निवेशक ऐसे समय में अपना पैसा सुरक्षित जगहों पर लगाना पसंद करते हैं. लेकिन, हुआ ठीक इसके उलट! युद्ध की शुरुआत से ही भारतीय शेयर बाजार ने एक मजबूत तेजी का रुख दिखाया.
- सेंसेक्स की रॉकेट उड़ान: युद्ध के इन 84 दिनों के दौरान बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज का प्रमुख सूचकांक सेंसेक्स 3378 के स्तर से बढ़कर 4687 के स्तर तक पहुंच गया. यानी, सेंसेक्स में कुल 37% की अविश्वसनीय तेजी दर्ज की गई!
- निफ्टी 500 और नेक्स्ट 50 भी पीछे नहीं: सिर्फ सेंसेक्स ही नहीं, बल्कि व्यापक बाजार का प्रतिनिधित्व करने वाले निफ्टी 500 में 34% और निफ्टी नेक्स्ट 50 में 25% की शानदार बढ़त देखने को मिली.
- अमेरिकी बाजार भी पड़े फीके: दिलचस्प बात यह है कि इसी दौरान अमेरिकी शेयर बाजार (S&P 500) में सिर्फ 2% की मामूली बढ़त हुई थी.
- गोल्ड ने दिया धोखा: युद्ध के समय सुरक्षित निवेश माने जाने वाले सोने ने भी निवेशकों को निराश किया. इस दौरान गोल्ड फ्यूचर्स में 11% की गिरावट आई थी.
किन शेयरों और सेक्टर्स ने मचाई थी धूम?
1999 के युद्ध के दौरान यह तेजी कुछ खास शेयरों और सेक्टर्स में केंद्रित थी.
1. लार्जकैप का दबदबा: ज्यादातर मजबूत फंडामेंटल वाली बड़ी कंपनियों (लार्जकैप) के शेयरों ने शानदार प्रदर्शन किया.
2. ऑटो और इंजीनियरिंग के सितारे: मिड और स्मॉलकैप शेयरों के साथ-साथ ऑटो और इंजीनियरिंग सेक्टर के शेयरों ने बाजार को आउटपरफॉर्म किया. टाटा मोटर्स का शेयर तो 92% तक उछल गया था.
3. बैंकिंग सेक्टर की मजबूती: बैंकिंग सेक्टर भी इस तेजी में मजबूती से खड़ा रहा और निवेशकों को अच्छा रिटर्न दिया.
क्या तेजी एकतरफा थी या झटके भी लगे?
यह सोचना गलत होगा कि बाजार में सिर्फ एकतरफा तेजी ही रही. युद्ध के 84 दिनों के दौरान 1-2% के छोटे-मोटे उतार-चढ़ाव तो आम बात थे. लेकिन, एक दौर ऐसा भी आया जब बाजार में बड़ी गिरावट देखने को मिली.
1. 20 से 28 मई 1999 के बीच: इन 8 दिनों में सेंसेक्स में 12.5% की तेज गिरावट आई थी. यह वह समय था जब युद्ध की स्थिति थोड़ी गंभीर हो गई थी और अनिश्चितता बढ़ गई थी.
2. शानदार रिकवरी: हालांकि, युद्ध खत्म होने तक बाजार ने न सिर्फ इस गिरावट से पूरी तरह रिकवरी की, बल्कि नेट-नेट 37% की जोरदार तेजी भी दिखाई. इससे पता चलता है कि बाजार ने भारतीय सेना की क्षमताओं और देश की जीत पर भरोसा दिखाया.
युद्ध खत्म होने के बाद बाजार का हाल?
युद्ध खत्म होने के तुरंत बाद बाजार में थोड़ी मुनाफावसूली देखने को मिली, लेकिन लंबी अवधि में सकारात्मक रुझान बना रहा.
1 हफ्ते बाद: -2.4%
1 महीने बाद: +4.43%
3 महीने बाद: +5.32%
युद्ध में किन सेक्टर्स को होता है फायदा-नुकसान?
ऐतिहासिक रूप से और आम तौर पर युद्ध या तनाव की स्थिति में कुछ खास सेक्टर्स पर असर पड़ता है:
फायदा
– डिफेंस (रक्षा) शेयर: जाहिर सी बात है, युद्ध के समय रक्षा उपकरण बनाने वाली कंपनियों के शेयरों में अच्छी तेजी देखने को मिलती है क्योंकि उनकी मांग बढ़ जाती है.
नुकसान/दबाव
– एविएशन (विमानन) शेयर: हवाई क्षेत्र बंद होने या यात्राओं पर प्रतिबंध लगने से विमानन कंपनियों पर भारी दबाव बनता है.
– बैंक और आईटी शेयर: युद्ध की स्थिति में आर्थिक अनिश्चितता बढ़ने से बैंकिंग और आईटी जैसे सेक्टर्स पर भी दबाव देखा जा सकता है, हालांकि 1999 में बैंकिंग मजबूत रहा था.
टूरिज्म और हॉस्पिटैलिटी: ये सेक्टर भी बुरी तरह प्रभावित होते हैं.
आज के संदर्भ में क्या सीख?
1999 के कारगिल युद्ध के दौरान शेयर बाजार का प्रदर्शन हमें कुछ महत्वपूर्ण बातें सिखाता है.
- घबराएं नहीं: युद्ध या तनाव की स्थिति में तुरंत घबराकर अपने निवेश को बेचने का फैसला अक्सर गलत साबित होता है.
- देश की क्षमताओं पर भरोसा: बाजार अक्सर देश की आंतरिक शक्ति और जीत की संभावनाओं को डिस्काउंट करता है.
- क्वालिटी पर फोकस: मुश्किल समय में भी मजबूत फंडामेंटल वाली अच्छी कंपनियां बेहतर प्रदर्शन करती हैं.
- विविधता (Diversification): अपने पोर्टफोलियो को विभिन्न सेक्टर्स में बांटकर रखना जोखिम कम करता है.
ध्यान रखें…
हालांकि, यह याद रखना जरूरी है कि हर युद्ध और हर आर्थिक स्थिति अलग होती है. 1999 की परिस्थितियां आज से भिन्न थीं. आज वैश्विक अर्थव्यवस्था ज़्यादा जुड़ी हुई है और किसी भी संघर्ष का असर व्यापक हो सकता है. इसलिए, निवेशकों को मौजूदा भारत-पाकिस्तान तनाव के बीच सतर्क रहना चाहिए, अपनी जोखिम क्षमता का आकलन करना चाहिए और किसी भी निवेश निर्णय से पहले अपने वित्तीय सलाहकार से सलाह ज़रूर लेनी चाहिए. इतिहास हमें मार्गदर्शन दे सकता है, लेकिन भविष्य हमेशा अनिश्चित होता है.
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