Ayurvedic Remedies: भारतीय पारंपरिक चिकित्सा प्रणाली आयुर्वेद को एक समय तक सिर्फ घरेलू नुस्खों और दादी-नानी की कहानियों तक सीमित माना जाता था, लेकिन अब स्थितियां बदल रही हैं. पतंजलि, डाबर, हिमालया और सन हर्बल्स जैसी भारत की बड़ी आयुर्वेदिक कंपनियां अब वैज्ञानिक आधार और प्रमाणों के साथ अपने उत्पादों को पेश कर रही हैं, जिससे जनता का विश्वास प्राकृतिक उपचारों में फिर से गहराता जा रहा है.
वैज्ञानिक परीक्षण सार्वजनिक करती हैं कंपनियां
पतंजलि आयुर्वेद ने अपने रिसर्च इंस्टीट्यूट की मदद से कई जड़ी-बूटियों की प्रभावशीलता पर शोध कर अंतरराष्ट्रीय जर्नलों में पेपर प्रकाशित किए हैं. कोरोना काल में पतंजलि का ‘कोरोनिल’ किट इसी रिसर्च पर आधारित था. हाल ही में फेफड़ों की बीमारियों पर पतंजलि का शोध विश्व प्रसिद्ध जर्नल ‘Biomedicine & Pharmacotherapy’ में प्रकाशित हुआ है., कंपनी का दावा है कि माइक्रोप्लास्टिक के कारण होने वाले फेफड़ों की कार्यक्षमता में कमी को आयुर्वेदिक औषधि ‘ब्रोंकोम’ से काफी हद तक रोका जा सकता है.
वहीं डाबर ने अपने ‘च्यवनप्राश’ और ‘हनी’ उत्पादों के वैज्ञानिक परीक्षण कराए और परिणामों को सार्वजनिक किया, जिससे उपभोक्ताओं का भरोसा बढ़ा है. हिमालया वेलनेस कंपनी ने भी एलोपैथ और आयुर्वेद के सम्मिलन की नीति अपनाई है. उनके कई उत्पाद जैसे ‘लिव 52’ और ‘सेप्टिलिन’ डॉक्टरों द्वारा भी सुझाए जा रहे हैं, क्योंकि इन पर क्लीनिकल ट्रायल किए गए हैं.
पतंजलि, हिमालया, सन हर्बल्स और डाबर ने अपनी वेबसाइट और उत्पाद पैकिंग पर वैज्ञानिक अनुसंधान का हवाला देना शुरू किया है, जिससे नए और शिक्षित उपभोक्ताओं का ध्यान खींचा जा सके.
बदलती उपभोक्ता मानसिकता
शहरी युवाओं से लेकर ग्रामीण परिवारों तक, अब लोग केमिकल युक्त उत्पादों के बजाय आयुर्वेदिक विकल्पों की ओर झुकाव दिखा रहे हैं. सोशल मीडिया, यूट्यूब चैनलों और हेल्थ इन्फ्लुएंसर्स के माध्यम से लोगों तक वैज्ञानिक तथ्यों के साथ इन उत्पादों की जानकारी पहुंच रही है.
आज जब लोग स्वास्थ्य के प्रति अधिक जागरूक हो रहे हैं, ऐसे में अगर आयुर्वेद वैज्ञानिक प्रमाणों के साथ सामने आता है तो यह सिर्फ परंपरा नहीं, बल्कि भविष्य का चिकित्सा मार्ग भी बन सकता है. वैज्ञानिक दृष्टिकोण ने आयुर्वेद को नए युग में प्रवेश दिलाया है.
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