Ashwini Nakshatra swami ketu auspicious and inauspicious effect in life

Ketu in Kundali: ज्योतिष शास्त्र में 27 नक्षत्रों का विशेष महत्व है. जिस तरह राशि और दिन का व्यक्ति के जीवन पर प्रभाव देखने को मिलता है, ठीक उसी तरह हम जिस नक्षत्र में जन्म लेते हैं, उसका भी प्रभाव हमारे स्वभाव और व्यक्तित्व पर पड़ता है. आज हम बात करेंगे अश्विनी नक्षत्र के स्वामी की, क्योंकि इस नक्षत्र का स्वामी व्यक्ति को राजा से साधु भी बना देता है साथ ही मोक्ष भी प्रदान करता है.

अश्विनी नक्षत्र का स्वामी है रहस्यमयी

ज्योतिष में केतु को अश्विनी नक्षत्र का स्वामी माना गया है. खगोलीय दृष्टि से ग्रह का कोई अस्तित्व नहीं हैं, क्योंकि ये यह एक छाया ग्रह है. वैदिक शास्त्रो के अनुसार केतु ग्रह स्वरभानु राक्षस का धड़ है.ज्योतिष में राहु को किसी भी राशि का स्वामित्व प्राप्त नहीं है. लेकिन धनु केतु की उच्च राशि है, जबकि मिथनु में यह नीच भाव में होता है.

केतु का ज्योतिषीय महत्व

केतु आध्यात्म, वैराग्य, मोक्ष, तांत्रिक आदि का कारक होता है. जातक में केतु अग्नि तत्व का प्रतिनिधित्व करता है. केतु के कारण ही जातक का स्वभाव कठोर होता है. जातक त्वरीत आक्रोशित हो जाता है.

राजा से बना देता है साधू

कुछ ज्योतिषियों का मानना है कि लग्न का केतु जातक को स्वाभाव से साधू बनाता है और आध्यात्म की ओर ले जाता है. जातक सांसारिक सुखों से दूर हो जाता है.

केतु कब देता शुभ फल

  • कुंडली में केतु का शुभ प्रभाव तब पड़ता है जब तृतीय, पंचम, नवम, या द्वादश भाव में केतु स्थिति हो. इन भावों में केतु भाग्य, बुद्धि, और ज्ञान के रूप में जातकों को शुभता प्रदान करता है.
  • कुंडली में केतु गुरु ग्रह के साथ युति बनाता है तो जातक इसके प्रभाव से राजा के सामान जीवनयापन करने में सक्षम बनता है. वहीं मंगल के साथ केतु की युति हो तो जातक को यह साहस प्रदान करती है.
  • जब केतु की युति बुध, शुक्र, और शनि के साथ उच्च स्थान पर होती है तब भी केतु शुभ फल प्राप्त होने लग जाते हैं.

केतु के अशुभ प्रभाव

  • केतु कुंडली में अशुभ हो तो व्यक्ति अपमान, दुर्घटना, पदच्युति, घबडाहट, उलझन, आर्थिक तंगी और उत्साहहीन से गुजरना पड़ता है. राहु और केतु दोनों जन्म कुण्डली में काल सर्प दोष का निर्माण करते हैं. काल सर्प दोष के बारण मनुष्य को लगभग 42 सालों तक संघर्ष करना पड़ता है.
  • कुंडली में केतु तीसरे, पांचवें, छठवें, नवें एवं दसवें भाव में विराजमान हो तो जातक को इसके शुभ परिणाम प्राप्त होते हैं.
  • केतु के कमज़ोर होने पर जातकों को पैर, कान, रीढ़ की हड्डी, घुटने, लिंग, किडनी, जोड़ों के दर्द आदि रोग परेशान करता है.

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