War and Attack: भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव चल रहा है. पहलगाम की घटना के बाद देशवासियों में गुस्सा चरम पर है. दोनों देशों के बीच युद्ध जैसी स्थितियों का निर्माण हो रहा है, लेकिन क्या आपको मालूम है कि युद्ध और शत्रु पर हमला करने को लेकर ज्योतिष शास्त्र क्या कहता है?
राजा-महाराजाओं में बड़े अभियान और युद्ध से पहले पुरोहितों से शुभ मुहूर्त के बारे में पूछा जाता था. कई शास्त्रों में युद्ध मुहूर्त और विजय मंत्र के बारे में जानकारी दी गई है. महाभारत, बृहत संहिता, युद्ध तत्व और ज्योतिष ग्रंथों में शत्रु पर विजय के सिद्धांत और मुहूर्त का वर्णन मिलता है.
पुरातन काल से ही सनातन धर्म में इस तरह की परिस्थितियों के लिए पंचांग और मुहूर्त देखने की परंपरा रही है, भगवान राम स्वयं पंचांग का गहन अध्ययन किया करते थे.
युद्ध की स्थिति का निर्माण कैसे होता है?
‘धर्मो रक्षति रक्षितः’ यह नीति शास्त्र का मूल सिद्धांत है. जब धर्म की हानि होती है और अधर्म बढ़ता है, तब युद्ध होना हो जाता है. शास्त्र अनुसार इसके लिए अन्य कारणों के बारे में भी बताया गया है, जो इस प्रकार हैं-
राजधर्म का उल्लंघन (मनुस्मृति अध्याय 7)
अधिकार का अतिक्रमण
राजाओं का अहंकार और विस्तारवाद
धार्मिक और सांस्कृतिक संघर्ष
महाभारत में युद्ध का मूल कारण अधर्म पर धर्म की विजय था. भगवान श्रीकृष्ण ने कूटनीति के हर स्तर के बाद युद्ध को अंतिम उपाय के रूप में चुना.
ज्योतिष में युद्ध की दशा और शत्रु को परास्त करने के संकेतों के बारे में बताया गया है, बृहत संहिता (वराहमिहिर), अध्याय 44 ‘युद्धाधिकार’ में
कौन से संकेत युद्ध या आक्रमण के लिए अनुकूल माने जाते हैं? इसके बारे में चर्चा की गई है. ज्योतिष के अनुसार इन स्थितियों में युद्ध के हालात बनते हैं.
चंद्रमा जब कमजोर है, तो शत्रु दुर्बल होता है. वहीं कुंडली में जब राहु और केतु 6, 8, 12 भाव में हो तो शत्रु पर मानसिक और गुप्त प्रभाव पड़ता है. मंगल 3 या 6 भाव में हो तो ये वीरता को दर्शाता है और साहस में वृद्धि करता है, इससे शत्रु को पराजित करने में आसानी होती है. इसके साथ ही दशा व अंतर्दशा में शत्रुहंता ग्रहों की दशा हो तो युद्ध में सफलता मिलने से कोई नहीं रोक सकता है.
युद्ध और आक्रमण का शुभ मुहूर्त
युद्ध के लिए उत्तम तिथि और योग के बारे में नीति शास्त्र में बताया गया है. शुक्ल पक्ष की सप्तमी, दशमी, त्रयोदशी विजय की तिथि मानी गई है.
विशाखा, उत्तराभाद्रपद, पुनर्वसु, अनुराधा नक्षत्र को राजकार्य और आक्रमण के लिए शुभ माना गया है.
Tuesday (मंगलवार) का दिन युद्ध के लिए अच्छा माना गया है. चंद्रमा दशम या एकादश भाव में हो तो शत्रु पर विजय प्राप्त होती है. शास्त्रों में युद्ध के लिए पंचांग अनुसार शुभ योग के बारे में भी बताया गया है. सिद्ध योग, अमृत योग, शोभन योग, युद्ध के लिए सबसे उत्तम माने गए हैं. वहीं शास्त्रों की मानें तो भद्र, मृत्यु, वज्र योग में युद्ध व हमाल को टालना चाहिए.
युद्ध से पूर्व तिथि, योग, और ग्रहों की दशाओं का अध्ययन आज से नहीं महाभारत काल से चला आ रहा है. महाभारत में युद्ध मुहूर्त का निर्धारण
भगवान श्रीकृष्ण ने युद्ध का प्रारंभ पंचांग की गणना को देखकर कराया था.
यही वजह है कि महाभारत का युद्ध मार्गशीर्ष मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को हुआ. भगवान ने अर्जुन को गीता का उपदेश सूर्योदय से पूर्व दिया गया.
युद्ध से पहले ग्रहों की स्थिति की बात करें तो श्रीमद्भगवद्गीता, भीष्म पर्व, बृहत संहिता स्पष्ट कहा गया है कि पहले चंद्रमा और मंगल ग्रह को बलवान होना चाहिए, राहु-केतु शत्रु पक्ष के लग्न में हो.
ज्योतिष में विजय रणनीति को लेकर कालविवेक तंत्र कहता है कि ‘युद्ध के पहले समय को जानो, शत्रु की कुंडली देखो, अपने सैनिकों की दशा देखो, और फिर आक्रमण करो.
शत्रु को हराने के लिए शत्रु की कुंडली में नीच ग्रहों की दशा का अध्ययन करना चाहिए, इसके बाद स्वयं की कुंडली में मंगल, शनि, सूर्य बलवान तथा 6वें भाव का स्वामी बलवान और शुभ ग्रहों से दृष्ट हो.
युद्ध और विजय केवल शस्त्रों से नहीं, समय और शास्त्र के ज्ञान से संभव है. ज्योतिषीय युद्ध नीति आज भी सामरिक रणनीति में प्रयोग हो सकती है यदि उसे बुद्धि, धर्म और नीति के साथ जोड़ा जाए.
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