‘कई बार ऐसा होता है, जब आपको पैसे कमाने के लिए तेजी से काम करना पड़ता है, लेकिन सही मौकों की तलाश करते समय आपको धैर्य रखने की जरूरत होती है।’ यह टिप हमारी नहीं बल्कि दिग्गज निवेशक वॉरेन बफे की है। अपनी कंपनी बर्कशायर हैथवे (Berkshire Hathaway) की सालाना शेयरहोल्डर मीटिंग में उन्होंने यह बात कही।
बफे के मुताबिक, “कई बार ऐसा होता है, जब आपको जल्दी से कदम उठाना होता है। वास्तव में, हमने बहुत सारा पैसा इसलिए कमाया क्योंकि हम दूसरों की तुलना में तेजी से कदम उठाने को तैयार हैं। यह धैर्य और कुछ करने की इच्छा का कॉम्बिनेशन है… अगर यह आपके सामने आता है… तो आप उन डील्स पर काम करने के बारे में धैर्य नहीं रखना चाहते, जो काम की हैं। और, आप उन लोगों के साथ बहुत धैर्य नहीं रखना चाहते, जो आपसे ऐसी बातें कर रहे हैं जो कभी नहीं होंगी।”
बर्कशायर हैथवे की टीम रखती है बहुत धैर्य
बफे ने कहा कि अजीत जैन और ग्रेग एबेल समेत बर्कशायर हैथवे की टीम सभी मौकों का मूल्यांकन करते वक्त बहुत धैर्य रखती है। साथ ही बफे ने इस बात पर जोर दिया कि धैर्य को कम करके नहीं आंका जाना चाहिए। बफे ने कहा, “मुझे लगता है कि यह अजीत और हमारे सभी मैनेजर्स के लिए भी लागू होता है, जब हम अवसरों की तलाश कर रहे होते हैं तो हम बहुत धैर्यवान होते हैं… लेकिन जब हम धैर्यवान होते हैं, तो कभी भी रीडिंग और काम के उस अमाउंट को कम नहीं आंकते हैं, जो क्विकली एक्ट करने के लिए तैयार होने के लिए किया जा रहा है। क्योंकि हम जानते हैं, चाहे वह इक्विटी हो, या प्राइवेट कंपनियां, जब अवसर खुद को प्रेजेंट करता है, तो हम एक्शन करने के लिए तैयार रहते हैं। धैर्य रखने का एक बड़ा हिस्सा, इसका इस्तेमाल तैयार रहने के लिए करना है।”
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कभी भी प्रोफेशनल इनवेस्टर्स या इंस्टीट्यूशंस की नहीं की तलाश
बफे ने आगे कहा कि इनवेस्टिंग बिजेनस का एक मजा लोगों का विश्वास है और फर्म ने पिछले 60-70 वर्षों से इस विश्वास का मजा लिया है। दिलचस्प बात यह है कि बफे ने यह भी कहा कि उन्होंने कभी भी प्रोफेशनल इनवेस्टर्स या इंस्टीट्यूशंस की तलाश नहीं की क्योंकि वह ऐसे लोगों को चाहते थे, जो जानते हों कि क्या करने की जरूरत है और उन्हें यह नहीं बताया जाना चाहिए कि क्या करना है।
उन्होंने कहा, “… हमने कभी भी अपनी पार्टनरशिप्स में शामिल होने के लिए प्रोफेशनल इनवेस्टर्स की तलाश नहीं की। मेरे पार्टनर्स में, मेरे पास एक भी इंस्टीट्यूशन नहीं था। मुझे कभी भी कोई इंस्टीट्यूशन नहीं चाहिए था। मुझे लोग चाहिए थे, और मैं ऐसे लोगों को नहीं चाहता था जो इधर-उधर बैठे हों, हर तीन महीने में लोग उनके पास आएं और उन्हें बताएं कि वे यहां क्या चाहते हैं और इस तरह की सारी चीजें करें। यही हमें मिला, और इसीलिए आज हमारे पास यह समूह है। यह सब काम कर गया।”
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