भारतीय शेयर बाजार में इतिहास रच गया है. 22 साल में पहली बार, देश के घरेलू संस्थागत निवेशकों (DIIs) ने विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों (FPIs) को पीछे छोड़ दिया है. NSE में लिस्टेड कंपनियों में अब DIIs का हिस्सा FPIs से ज़्यादा हो गया है, जो भारतीय पूंजी बाजार की दिशा में बड़े बदलाव के तौर पर देखा जा सकता है.
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