dilli-door-ast-real-story-nizamuddin-vs-tughlaq-history | हनोज दिल्ली दूर अस्त, एक वाक्य जो सुल्तान की मौत बना!

कई ऐसे मुहावरे और कहावतें हैं जो केवल शब्द नहीं, बल्कि इतिहास की कहानियां और चेतावनियां हैं. ऐसा ही एक मुहावरा है, ‘हनोज दिल्ली दूर अस्त’. देखने में यह केवल एक वाक्य लगता है, लेकिन इसके पीछे छुपी कहानी सत्ता, अहंकार और आध्यात्मिक शक्ति की टकराहट की वो दास्तान है, जिसे जानकर आप हैरान रह जाएंगे.

‘हनोज दिल्ली दूर अस्त’ का क्या मतलब है?
यह एक फारसी भाषा का मुहावरा है, जिसका शाब्दिक अर्थ है, ‘अभी दिल्ली दूर है’. यह कहावत तब बोली जाती है जब कोई व्यक्ति जल्दबाज़ी में किसी बड़े लक्ष्य या जीत की बात करता है, जबकि हकीकत में वह अभी बहुत दूर है. यह एक तरह की चेतावनी है कि अभी बहुत कुछ शेष है, और परिणाम की गारंटी नहीं दी जा सकती.

इतिहास में कब और कैसे बना ये मुहावरा अमर?
इस मुहावरे की जड़ें 13वीं सदी के दिल्ली सल्तनत के दौर से जुड़ी हैं. बात उस समय की है जब गयासुद्दीन तुगलक बंगाल से विजय प्राप्त कर दिल्ली लौट रहा था. उस समय दिल्ली में रहने वाले महान सूफी संत हजरत निजामुद्दीन औलिया से उसका वैचारिक टकराव हो गया था. उसे लगता था कि हजरत निजामुद्दीन औलिया की लोकप्रियता उससे ज्यादा है, इस कारण गयासुद्दीन तुगलक उन्हें पसंद नहीं करता था.

गयासुद्दीन तुगलक ने कहा था कि ‘दिल्ली पहुंचकर निजामुद्दीन को सबक सिखाऊंगा.’ जब ये बात संत तक पहुंची, तो उन्होंने मुस्कुराते हुए बस इतना कहा-

‘हनोज दिल्ली दूर अस्त.’

यानी, अभी वो दिल्ली पहुंचा कहाँ है!

और फिर हुआ चमत्कार जैसा अंत…

इतिहासकारों के अनुसार, जब गयासुद्दीन तुगलक दिल्ली से कुछ ही दूरी पर था, तो तुगलकाबाद में एक स्वागत मंच गिर गया और वह उसमें दबकर मारा गया. संत का कथन जैसे एक भविष्यवाणी बन गया. लोग कहते हैं कि यह सिर्फ एक इत्तेफाक नहीं था, बल्कि आध्यात्मिक चेतावनी की ताकत थी.

लोगों ने कहा, यह निजामुद्दीन औलिया की चेतावनी नहीं, बल्कि एक दुआ थी, जो सत्ता के घमंड के आगे आ खड़ी हुई. यह घटना भारतीय इतिहास की उन चुनिंदा घटनाओं में से एक बन गई जहां शब्दों ने शक्ति को परास्त किया.

कहावत के तौर पर ये एक शालीन, लेकिन गहरा व्यंग्य भी नजर आता है, एक संकेत भी, कि अभी मंजिल इतनी आसान नहीं. आज की दुनिया में जहां लोग सफलता की ऊंचाइयों की कल्पना रातों-रात कर लेते हैं, यह कहावत एक वास्तविकता की खुरदरी जमीन पर पैर रखने की याद दिलाती है.

‘हनोज दिल्ली दूर अस्त’ केवल एक कहावत नहीं, बल्कि इतिहास की वो मिसाल है जो बताती है कि भाषा के छोटे से वाक्य भी बड़े तूफानों का इशारा कर सकते हैं. सत्ता, शक्ति और आध्यात्मिकता के इस टकराव में एक वाक्य आज भी जिंदा है, और सिखाता है, अहंकार से पहले विनम्रता चुनो, क्योंकि मंजिल अभी दूर हो सकती है.

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