Pishach Mukti Kund: मोक्ष की नगरी काशी, जहां मृत्यु भी उत्सव मानी जाती है, वहां एक ऐसा रहस्यमय स्थल है जिसे पिशाच मोचन कुंड कहा जाता है. यह कोई साधारण जलकुंड नहीं, बल्कि आत्माओं के उद्धार का केंद्र है. कहा जाता है कि जो आत्माएं अकाल मृत्यु का शिकार होती है या जो अधूरी इच्छाओं के साथ इस संसार से जाती हैं, वे भटकती रहती हैं.
“नैनं छिन्दन्ति शस्त्राणि…” गीता में श्रीकृष्ण बताते हैं कि आत्मा अजर है, अमर है. लेकिन अकाल मृत्यु होने वाले इंसान की आत्मा सालों भटकती रहती है. बाबा श्री काशी विश्वनाथ के त्रिशूल पर टिकी नगरी में भटकती आत्मा को भी मोक्ष मिल जाता है. जी हां! गरुण पुराण के काशी खंड में पिशाच मोचन कुंड का उल्लेख मिलता है, जहां पितरों को प्रेत बाधा और अकाल मृत्यु से मुक्ति मिलती है. यहां पर आत्माओं का उधार भी चुकाया जाता है.
त्रिपिंडी श्राद्ध क्या होता है?
बता दें, मोक्षनगरी काशी देश का इकलौता शहर है, जहां अकाल मृत्यु और अतृप्त आत्माओं की शांति के लिए त्रिपिंडी श्राद्ध किया जाता है. मान्यता है कि यहां पर आत्माओं का उधार भी चुकाया जाता है. पीपल के पेड़ पर सिक्का रखकर पितरों का उधार चुकाया जाता है.
पिशाच मोचन कुंड के बारे में जानकारी देने से पहले काशी के ज्योतिषाचार्य, यज्ञाचार्य एवं वैदिक कर्मकांडी पं. रत्नेश त्रिपाठी ने बताया कि त्रिपिंडी श्राद्ध क्या होता है? उन्होंने बताया, ” पिछली तीन पीढ़ियों के पूर्वजों का पिंडदान करने को त्रिपिंडी श्राद्ध या पिंडदान कहते हैं. इस पूजन में ब्रह्मा, विष्णु और शिव की प्रतिमाओं की प्राण प्रतिष्ठा करके पूजन किया जाता है. मान्यता है कि पूर्वज की असंतुष्ट आत्मा आने वाली पीढ़ियों के सुख में बाधा डालती है. ऐसे में इन आत्माओं को शांत करने के लिए त्रिपिंडी श्राद्ध किया जाता है.”
कुंड का नाम कैसे पड़ा?
पिशाच मोचन कुंड के बारे में विस्तार से जानकारी देते हुए रत्नेश त्रिपाठी ने बताया, “गरुण पुराण के काशीखंड में वर्णित है कि पवित्र गंगा नदी के धरती आगमन से पहले ही पिशाच मोचन कुंड का अस्तित्व था. कुंड के पास पीपल का एक पुराना वृक्ष है और इसी पर भटकती आत्माओं को बैठाया जाता है. उनका ऋण उतारने के लिए वृक्ष पर सिक्का भी बांधा जाता है. इस कर्म से पितरों के सभी उधार उतर जाते हैं और वे बाधाओं से मुक्त होकर मोक्ष की प्राप्ति कर लेते हैं.”
पं. रत्नेश त्रिपाठी ने आगे बताया, “किसी व्यक्ति की अकाल या असामयिक मृत्यु हो जाती है तो उसकी आत्मा भटकती रहती है. ऐसे में उन आत्माओं को मोक्ष पिशाच मोचन कुंड दिलाता है. कुंड का नाम कैसे पड़ा? इसके पीछे भी कथा है. पिशाच मोचन कुंड का नाम पिशाच नाम के व्यक्ति से पड़ा था, जिसने कई पाप किए थे. हालांकि, इसी जगह पर उसे मोक्ष मिला था. जिनके घर में अकाल मृत्यु होती है, उनके परिजन यहां पर विशेष पूजन, तर्पण करते हैं.”
काशी के निवासी और पुजारी ज्ञानेश्वर पाण्डेय ने बताया, “पिशाच मोचन कुंड को ‘काशी का विमल तीर्थ’ भी कहते हैं, जो अति प्राचीन है. इस कुंड का वर्णन न केवल गरुड़ पुराण बल्कि स्कंद पुराण समेत कई शास्त्रों में मिलता है. पितृपक्ष में यहां दुनिया के कोने-कोने से लोग पहुंचते हैं और अपने पितरों की आत्मा की शांति के लिए विशेष पूजन और तर्पण करते हैं.”
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