Manoj Kumar:परफेक्ट शॉट के लिए दिलीप कुमार से भी कई रीटेक करवाते थे मनोज कुमार

manoj kumar :भारतीय सिनेमा के लीजेंड अभिनेता और निर्देशक मनोज कुमार ने आज 87 साल की उम्र में दुनिया को अलविदा कह दिया है. उनके करीबी रहे अभिनेता और निर्देशक धीरज कुमार ने मनोज कुमार से जुड़ी कई खास यादों को उर्मिला कोरी के साथ शेयर किया. बातचीत के प्रमुख अंश 

मनोज कुमार जी सही मायनों में लीजेंड

 मैं मनोज जी को प्यार से साहेब बुलाता था. वह मेरे लिए साहेब थे.मेरे बड़े भाई जैसे थे.मैंने उनके साथ क्रांति, रोटी कपड़ा और मकान के साथ-साथ  फिल्म शिरडी के साईबाबा में काम किया था.उनके जैसे लीजेंड ने मेरे निर्देशन में बनें सीरियल कहां गए वो लोग में बिना किसी पैसे के काम करना स्वीकारा था. वह उनका मेरे लिए प्यार और भाईचारा ही था. आज साहेब हमारे बीच नहीं रहे।  कौन कहता है कि इंसान खाली हाथ जाता है और खाली हाथ आता है.मुझे लगता है कि इंसान अपना भाग्य लेकर आता है और कर्म लेकर जाता है.साहेब कर्म लेकर गए हैं, जो उन्होंने अपने देश को  फिल्मों के द्वारा दिया। अपनी फिल्मों के माध्यम से उन्होंने ना सिर्फ देश बल्कि विदेश के लोगों का भी मनोरंजन किया।आज 15 अगस्त हो या 26 जनवरी हर गाना उनका ही बजता है.रंग दे बसंती चोला से लेकर मेरे देश की धरती सोना तक. 

बीमारी में भी सेन्स ऑफ़ ह्यूमर नहीं गया था 

साहेब पिछले कुछ सालों से लगातार बीमार चल रहे थे इसलिए मेरी पिछली कई मुलाकातें कोकिला बेन अस्पताल में ही हुई है. मैं उनको बोलता भी था कि कोकिला बेन कोई मंदिर है क्या कि जब देखो चले आते हैं, तब वह कहते थे कि अरे ये पंडित लोग हैं.इनको दक्षिणा देने आना पड़ता है. जब से वह बीमार रहने लगे थे.लोग कहते थे कि उनको कुछ याद नहीं रहता है, लेकिन मेरे साथ जो भी मुलाकातें हुई थी. उनमें वह पुरानी बातें ही याद करते थे. साहेब ,साधना जी और मेरी एक फिल्म थी अमानत। उसमें हम भाई बनें थे. वह फिल्म कभी रिलीज नहीं हुई थी. उस फिल्म की शूटिंग के दौरान मैं साइकिल चलाते हुए गिर पड़ा था. उनको याद था और मुझे उसको लेकर चिढ़ाते थे.

दिलीप साहब को भी रीटेक करवाते थे 

साहेब निर्देशक के तौर पर टास्क मास्टर थे. उनमें धैर्य था,लेकिन काम को वह परफेक्ट करवाने में यकीन करते थे. मुझे याद है फिल्म क्रांति की शूटिंग के दौरान कई बार वह शॉट लेने के बाद दिलीप साहब के पास जाते थे और उनके कानों में जाकर कहते थे कि युसूफ भाई एक और शॉट करते हैं. कई बार दिलीप साहब कहते भी थे कि अरे ठीक तो हुआ है,लेकिन साहेब कहते कि नहीं भाई एक और करते हैं और वह एक और शॉट लेते थे. हम सभी जानते हैं कि दिलीप कुमार को वह अभिनय में भगवान मानते थे लेकिन निर्देशन की कुर्सी पर वह फैन नहीं बल्कि निर्देशक होते थे.निर्देशक के तौर पर लम्बे सीन को एक टेक  में शूट करने का उनका कोई सानी नहीं था. वह इसके लिए एक्टर्स को रिहर्सल करवाते थे, जो सीन में मार्क है. उसी में एक्टर को उसमें भी खड़ा रहना पड़ता था और अपनी लाइन्स भूलनी नहीं होती थी.ये भी है कि एक सीन होने के बाद पैकअप।  ऐसा नहीं है कि लगातार शूट करना है.वह कमाल के राइटर भी थे. वह गीतों को भी खुद ही लिख लेते थे.गीतों को जिस तरह से वह पिक्चराइज करते थे. वह कमाल का होता था.कैमरा प्लेसमेंट, कैमरा मूवमेंट,ट्रॉली चलेगी या क्रेन ट्राली सब मनोज जी किया करते थे.मैं जो निर्देशक बना हुआ हूं.  उनकी सेट से सीख कर ही बना हूं .मेरी शूटिंग नहीं रहती थी तो भी उनके सेट पर पड़ा रहता था. हर दिन कुछ ना कुछ सीखने को मिलता था.

रोटी, कपड़ा और मकान में मुझे डबल पैसा दिया गया था

 जब साहेब ने फिल्म  रोटी ,कपड़ा और मकान ऑफर की तो उन्होंने  कहा कि तुमको ये करना है.मैंने उनसे कहा कि हां साहब मेरे लिए बहुत सौभाग्य की बात होगी, लेकिन आपसे गुजारिश रहेगी कि आप एक्टर के तौर पर मेरा कॉन्ट्रैक्ट मत कीजिएगा, बल्कि मुझे हर महीने पेमेंट दे दिया कीजिएगा. संघर्ष कर रहा था तो पैसे की बहुत जरूरत होती थी. साहब इस बात को  जानते थे. वह राजी भी हो गए. उन्हें धीमे स्वर में बोलने कि आदत थी।  उन्होंने कहा  कि अच्छा ठीक है.पता लगा की फिल्म खत्म हो गई और मेरा महीना चला जा रहा है. उस वक्त मेरा नियम था कि जिस संडे अगर मैं किसी फिल्म की शूटिंग नहीं कर रहा होता था,तो मैं साहब के घर जरूर जाता था. उस दिन उन्होंने मुझसे कहा कि बेटा फिल्म बन गई रिलीज भी हो गयी, लेकिन तेरा मीटर अभी भी चालू है. तू तो डबल पैसा लेकर चला गया. मैंने मुस्कुराते हुए कहा कि बड़े भाई से छोटे भाई को ज्यादा ही मिलना चाहिए.वह दौर मेरे संघर्ष का दौर था.इस बात को  साहब जानते थे.मैं बताना चाहूंगा कि इस घटना के बाद भी दो-तीन महीने तक मुझे पैसे मिलते रहे थे.

शादी में भी पैसों से की मदद 

मेरे एकदम घर जैसे सम्बन्ध उनसे और उनके परिवार से थे.मेरी फ़िल्मी करियर ही नहीं मेरी शादी में भी उन्होंने योगदान दिया था। उस ज़माने में पैसे की कमी थोड़ी थी ही और शादी में खर्चे तो होने ही थे. उन्होंने कहा कि धीरज बहुत फैनफेयर से शादी कर रहा है. मैंने कहा कि साहेब पंजाबी तो ऐसी ही शादियां करते हैं. जितेंद्र भी आएंगे, दिलीप कुमार साहब भी आएंगे और राजेंद्र कुमार भी. मेरी शादी में भी उन्होंने पैसों से मदद की थी. पूरी फॅमिली आयी थी. साहेब , शशि भाभी, उनका छोटा भाई पिंकू और बच्चे भी.

 पराठे के शौक़ीन थे

 वह फूडी होते थे. खासकर पंजाबी खाने बहुत पसंद थे. मेरी मां के हाथ के पराठे उन्हें बहुत पसंद थे. जब भी उन्हें मालूम पड़ता था कि मुंबई मेरी माताजी आयी हुई हैं, वह मुझसे कहते थे कि आलू और गोभी के पराठे बनवाकर ले आना. एकदम पंजाबी स्टाइल और साथ में अचार भी ले आना. मैं बोलता कि मक्खन भी लेता आऊंगा तो हँसते हुए बोलते वो मैं अरेंज कर लूंगा. खाने के बाद हम सिगरेट पिया करते थे. 555 ब्रांड की सिगरेट हमदोनो ही पीते थे. संघर्ष का मेरा दौर था  तो कई बार अगर मेरे डब्बे से सिगरेट निकालकर हम पी लेते थे, लेकिन जाते हुए वह अपने डिब्बे से दो सिगरेट मेरी जेब में रख देते थे. बोलते थे देख सूद समेत वापस दे रहा हूं. वह उनका प्यार और अपनापन था.

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