Chaiti Chhath 2025 Date Know Nahay Khay Kharna Puja Vidhi Muhurat

Chaiti Chhath 2025: चैती छठ और कार्तिक छठ साल के ये दो प्रमुख छठ पर्व हैं. छठ का त्योहार ऋतु परिवर्तन से संबंधित है, कार्तिक छठ में ठंड रहती है तो वहीं चैत्र छठ (चैती छठ) में गर्मी शुरू हो जाती है. छठ महापर्व में प्रत्यक्ष रूप से भगवान सूर्य की आराधना की जाती है.

छठ पूजा तो वैसे पूरे देश भर में मनाया जाता है, लेकिन विशेष कर बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश और बंगाल में इस पर्व को पुरे श्रद्धा और भक्ति के साथ मChhath Puja 2024नाया जाता है. चैती छठ इस साल 2025 में कब मनाई जाएगी, जानें नहाय खाय, खरना की तारीख मुहूर्त.

चैती छठ 2025

चैती छठ का पर्व 3 अप्रैल 2025 को मनाया जाएगा. इस व्रत में स्त्रियां 36 घंटे बिना अन्न जल ग्रहण किये उपवास पर रहती हैं.संतान प्राप्ति और उसकी खुशहाली के लिए चैती छठ बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है.

इस दिन भारत में उत्तर प्रदेश के मथुरा-वृन्दावन में यमुना छठ को भक्ति और उत्साह के साथ मनाया जाता है. 

इस दिन चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि 2 अप्रैल को रात 11 बजकर 49 मिनट पर शुरू होगी और अगले दिन 3 अप्रैल 2025 को रात 9 बजकर 41 मिनट पर समाप्त होगी.

नहाय खाय और खरना कब ?

चैती छठ नहाय खाय से शुरू हो जाता है, इस बार नहाय खाय 1 अप्रैल 2025 को है. इस दिन चावल, चने की दाल व कद्दू की सब्जी खाने की परंपरा है. चैत्र नवरात्रि में ये त्योहार आता है, नहाय खाय के दिन देवी के कूष्मांडा रूप की पूजा होती है.

खरना 2 अप्रैल 2025 को मनाया जाएगा. इस दिन व्रती शाम को एकांत में खीर खाते हैं और उसके बाद व्रत शुरू हो जाता है.  खरना के दिन कुमार कार्तिकेय की माता देवी स्कंद माता की पूजा होती है.

डूबते सूर्य को अर्घ्य 3 अप्रैल 2025 को दिया जाएगा वहीं उगते सूर्य को 4 अप्रैल को अर्घ्य देने के बाद व्रत का पारण होता है.

चैती छठ का महत्व

छठ महापर्व को लोक-आस्था का महापर्व कहा जाता है. इससे लोगों की श्रद्धा और आस्था जुड़ी है. इसलिए इसे महापर्व कहा जाता है. मान्यता है कि छठ व्रत करने से छठी मईया और भगवान भास्कर की कृपा से सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं.

छठ पर्व संतान, सुहाग और घर-परिवार के सदस्यों के अच्छे स्वास्थ्य, सुख और खुशहाली के लिए किया जाता है. छठ व्रत में पारंपरिक गीतों और ठेकुआ प्रसाद का भी विशेष महत्व होता है. छठ पूजा की शुरुआत सूर्य पुत्र कर्ण से मानी जाती है. मान्यता है कि सबसे पहले कर्ण ने ही पानी में घंटों खड़े रहकर सूर्य की उपासना की थी.

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