5 महीने में 14% से ज्यादा टूटा Nifty, एक्सपर्ट्स ने बताया क्या है इसके पीछे की प्रमुख वजहें| Zee Business Hindi

Stock Market Crash: घरेलू शेयर बाजार के मानक सूचकांकों में पिछले पांच महीनों में खासी गिरावट दर्ज की गई है. इस दौरान नेशनल स्टॉक एक्सचेंज (एनएसई) का निफ्टी अपने सर्वकालिक उच्चस्तर से 14 प्रतिशत से अधिक गिर चुका है जबकि बीएसई सेंसेक्स अपने रिकॉर्ड स्तर से 13.23 प्रतिशत नीचे आ चुका है. प्रमुख सूचकांकों में आई इस गिरावट के पीछे उच्च मूल्यांकन, विदेशी कोषों की लगातार निकासी, कंपनियों के निराशाजनक तिमाही नतीजे और बढ़ते वैश्विक व्यापार तनाव की अहम भूमिका रही है. 

5 महीने में 14 फीसदी गिरा शेयर

बीएसई का 30 शेयरों पर आधारित मानक सूचकांक सेंसेक्स पिछले साल 27 सितंबर को 85,978.25 के अपने रिकॉर्ड शिखर पर पहुंच गया था. उसी दिन निफ्टी ने भी 26,277.35 अंक के अपने सर्वकालिक उच्चस्तर को हासिल किया था. उसके बाद से घरेलू शेयर बाजारों में क्रमिक गिरावट का दौर शुरू हो गया और मानक सूचकांक लगातार नीचे आते गए. पिछले पांच महीनों में निफ्टी अपने सर्वकालिक उच्चस्तर से 3,729.8 अंक यानी 14.19 प्रतिशत गिर चुका है. वहीं सेंसेक्स अपने रिकॉर्ड शिखर से 11,376.13 अंक यानी 13.23 प्रतिशत नीचे है. 

अमेरिका से सहमा बाजार

मास्टर ट्रस्ट ग्रुप के निदेशक पुनीत सिंघानिया ने कहा, ‘‘इस स्तर की गिरावट आमतौर पर कई कारकों के एक साथ आने से होती है. कई बड़ी कंपनियों के तिमाही नतीजे उम्मीद से कमतर रहने के बाद निवेशकों की धारणा प्रभावित हुई. इसके अलावा अमेरिका में डोनाल्ड ट्रंप के राष्ट्रपति चुने जाने के बाद आयात शुल्क से जुड़ी धमकियां आने और भारत की धीमी होती आर्थिक वृद्धि ने भी भारतीय शेयर बाजार के लिए माहौल को खराब करने का काम किया.’’ 

सिंघानिया ने कहा कि सेंसेक्स में अपने उच्चस्तर से 13 प्रतिशत से ज्यादा की तीव्र गिरावट देखी गई, जो विदेशी संस्थागत निवेशकों (एफआईआई) के भारतीय बाजार से निकासी करने, नकारात्मक तकनीकी संकेतकों, कमजोर तिमाही नतीजों और वैश्विक आर्थिक चिंताओं के कारण हुई. उन्होंने कहा कि राष्ट्रपति ट्रंप की शुल्क घोषणाओं के साथ कमजोर अमेरिकी आर्थिक आंकड़ों और मुद्रास्फीति जोखिम ने भी बाजार की अनिश्चितताओं को बढ़ाने का काम किया. 

FII लगातार कर रहे हैं निकासी

सिंघानिया ने कहा कि एफआईआई लगातार भारतीय शेयर बाजार में अपनी हिस्सेदारी बेच रहे हैं. अकेले 2025 में ही अब तक विदेशी कोष एक लाख करोड़ रुपये से अधिक निकासी कर चुके हैं. 

उन्होंने कहा, ‘‘अमेरिकी डॉलर के मुकाबले रुपये में आई कमजोरी, वैश्विक अनिश्चितताओं और महंगे इक्विटी मूल्यांकन से बाजार में अनिश्चितता बढ़ी है. विदेशी संस्थागत निवेशक अपना पैसा अधिक आकर्षक मूल्यांकन वाले बाजारों जैसे चीन में लगा रहे हैं. इसका एक और कारक अमेरिकी राष्ट्रपति की व्यापार नीतियां और उभरते बाजारों पर उनका प्रभाव है.’’ 

मेहता इक्विटीज लिमिटेड के वरिष्ठ उपाध्यक्ष (शोध) प्रशांत तापसे ने कहा, ‘‘एफआईआई की भारत से बाहर निकलने की रणनीति पर रोक लगने के कोई भी संकेत नहीं दिख रहे हैं. इसकी वजह से बाजारों पर भारी दबाव बना हुआ है. दरअसल, अधिक मूल्यांकन के कारण निवेशक यहां अपने इक्विटी निवेश को घटा रहे हैं.’’ 

इस साल कितना टूटा बाजार?

इस साल अब तक सेंसेक्स में 3,536.89 अंक यानी 4.52 प्रतिशत की गिरावट आई है जबकि निफ्टी 1,097.25 अंक यानी 4.64 प्रतिशत का नुकसान उठा चुका है. 

एफआईआई की निकासी पर फॉरविस मजार्स इन इंडिया में साझेदार अखिल पुरी ने कहा, ‘‘अमेरिकी बॉन्ड का प्रतिफल बढ़ने, डॉलर में मजबूती, रुपये में कमजोरी और भारतीय शेयरों के बढ़े हुए मूल्यांकन ने विदेशी निवेशकों के बीच भारतीय शेयरों का आकर्षण घटा दिया है. इसकी वजह से विदेशी निवेशक यहां से निकासी कर रहे हैं.’’ 

पुरी ने कहा कि उपभोक्ता खंड, वाहन और निर्माण सामग्री सहित प्रमुख भारतीय क्षेत्रों की उम्मीद से खराब तिमाही रिपोर्ट से कंपनियों के मुनाफे पर संदेह पैदा हो रहा है. पुरी ने कहा कि बाजार पर मंडरा रहा एक बड़ा जोखिम वैश्विक व्यापार युद्ध की आशंका है. अमेरिका ने हाल ही में इस्पात और एल्युमीनियम आयात पर 25 प्रतिशत शुल्क लगाने की घोषणा की है जबकि अन्य वस्तुओं पर वह जवाबी शुल्क लगाने पर विचार कर रहा है.

सिंघानिया ने घरेलू शेयर बाजारों के लिए संभावनाओं के बारे में कहा, ‘‘अगर कंपनियों का लाभ बढ़ता है, वैश्विक अर्थव्यवस्था स्थिर होती है और भारत सरकार लाभकारी नीतियां लागू करती रहती है, तो स्थिति सुधर सकती है. हालांकि, अगर वैश्विक मुद्रास्फीति उच्च बनी रहती है, मंदी आती है या एफपीआई की निकासी जारी रहती है तो बाजार में और गिरावट भी आ सकती है.’’ 

जियोजीत फाइनेंशियल सर्विसेज के शोध प्रमुख विनोद नायर ने कहा, ‘‘बाजार में सतर्कता का माहौल बना हुआ है. कंपनियों के नतीजों में उल्लेखनीय सुधार न होने और आसान वैश्विक तरलता एवं स्थिर मुद्रा के साथ अनुकूल माहौल न होने तक निराशावादी धारणा बनी रह सकती है.’’

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