Vivah 2025 Manglik Dosha and ashubh planet position in kundli obstacles in marriage

Vivah 2025: कुछ लोगों का विवाह उचित समय पर हो जाता है, तो वहीं कुछ लोगों के विवाह में अड़चन आती है, जिस कारण विवाह में देर हाता है. तो वहीं विवाह होने के बाद कुछ लोगों के वैवाहिक जीवन में परेशानी रहती. विवाह में देरी होने का क्या कारण है? क्या मांगलिक दोष खतरनाक है या कोई अन्य ग्रह वैवाहिक जीवन को प्रभावित करता है. इस विषय पर हम ज्योतिष के कुछ सूत्रों के माध्यम से चर्चा करेंगे.

ज्योतिष में सप्तम भाव जीवनसाथी का भाव माना जाता है. यहां से व्यक्ति का विवाह देखा जाता है. इसके साथ-साथ हम द्वितीय भाव को भी विवाह से जोड़ते हैं, क्योंकि द्वितीय भाव परिवार का है और जब व्यक्ति का विवाह होता है तो उसका परिवार बढ़ना शुरू होता है.

क्या होता है सप्तम भाव

सप्तम भाव से व्यक्ति के जीवनसाथी का विचार किया जाता है और वैवाहिक जीवन कैसा रहेगा यह भी इस भाव से विचार किया जाता है. सप्तम भाव में यदि कोई नीच ग्रह हो तथा किसी भी शुभ ग्रह की दृष्टि ना हो तो वैवाहिक जीवन खराब रहता है. इसके साथ-साथ यदि सप्तम भाव का स्वामी भी नीच अवस्था में हो अथवा पाप ग्रहों द्वारा कुपित हो तो ऐसी अवस्था में भी वैवाहिक सुख कम मिलता है. विवाह होकर टूट जाना या जीवनसाथी की असमय मृत्यु होना इस प्रकार के योग का फल होता है.

सप्तम भाव का कारक ग्रह

यदि किसी पुरुष की कुंडली का आंकलन करना हो तो उसमें वैवाहिक जीवन को हम शुक्र से भी देखते हैं, क्योंकि ज्योतिष में शुक्र स्त्री कारक ग्रह है और यह सप्तम भाव का भी कारक ग्रह है. यदि सप्तम भाव में ग्रह अच्छी अवस्था में हो मित्र अथवा उच्च राशि में हो और शुक्र भी मित्र राशि में या उच्च राशि में हो तो वैवाहिक जीवन बहुत मधुर बना रहता है. 

इसके विपरीत यदि शुक्र पीड़ित हो तो व्यक्ति के प्रेम संबंधों में सफलता नहीं रहती है. विवाह के लिए सप्तम भाव का आंकलन बहुत सावधानी से करना चाहिए. यदि सप्तम भाव में राहु अथवा केतु हो या शनि हो तो विवाह में विलंब का योग बनता है. यदि इन ग्रहों की स्थितियां बहुत अधिक खराब हो तथा द्वितीय भाव और सप्तम भाव कमजोर हो तो ऐसे में तलाक की परिस्थितियों भी उत्पन्न होती हैं. विशेष तौर पर यदि छठे भाव का स्वामी सप्तम भाव से संबंध बनाए तो उसमें अधिकतर मामलों में वैवाहिक जीवन में झगड़ा देखे गए हैं और जब यह झगड़ा चरम सीमा पर होते हैं तो अदालत में जा पहुंचते हैं.

इसी प्रकार हम द्वितीय भाव से भी विवाह का विचार करते हैं. द्वितीय भाव का कारक ग्रह बृहस्पति है तथा पुरुष हो या स्त्री हो दोनों की कुंडली में विवाह के लिए बृहस्पति की स्थिति शुभ होना आवश्यक है. अक्सर हम सुनते हैं कि स्त्री की कुंडली में बृहस्पति को पुरुष कारक ग्रह माना जाता है लेकिन बृहस्पति को विवाह कारक ग्रह माना जाना उचित है. क्योंकि इस जीव कारक अर्थात जीवन पैदा करने वाला ग्रह भी कहा गया है जब भी गोचर में बृहस्पति का संबंध सप्तम भाव या सप्तमेश अथवा द्वितीय भाव या द्वितीय के साथ बनता है तो लड़का लड़की दोनों विवाह की संभावनाएं उत्पन्न होने लगती है.

स्त्री की कुंडली के लिए मंगल को विवाह का कारक माना जाना उचित है, क्योंकि मंगल जोशीला पुरुष है और शुक्र सुंदरी स्त्री है. कुंडली चक्र में मंगल और शुक्र की राशियां आमने सामने रहती हैं और एक दूसरे के पूरक स्थानों के स्वामी हैं.

क्या मांगलिक होना विवाह के लिए अशुभ है?

आमतौर पर जब भी विवाह की बात आती है तो मांगलिक का मुद्दा अवश्य देखा जाता है. ज्योतिष के सूत्रों में कहा गया है कि किसी जन्म कुंडली में लग्न चतुर्थ सप्तम अष्टम और द्वादश भाव में मंगल हो तो जातक मांगलिक होता है और कहीं-कहीं पर द्वितीय भाव में मंगल को भी मांगलिक कहा गया है. ऐसा कहा जाता है कि मांगलिक होने पर वैवाहिक जीवन में घर संकटों का सामना करना पड़ता है और नुकसान भी हो सकता है. इसलिए मंगल पूजा अर्क विवाह आदि जैसी विभिन्न पूजा विधियां संपन्न करके मांगलिक दोष को डाला जाता है.

मांगलिक होना नुकसानदायक नहीं

हर बार मांगलिक होना नुकसानदायक नहीं होता. यदि सप्तम भाव में चतुर्थ भाव में या लग्न में मंगल उच्च राशि का हो जाता है तो वह अपने आप में रोचक महापुरुष राजयोग बन जाता है जोकि वैवाहिक जीवन में इतनी अधिक कठिन परिस्थितियों नहीं देता. यदि लग्न में उच्च राशि का मंगल हो तो उसकी सप्तम भाव पर नीचे दृष्टि पड़ती है जोकि वैवाहिक जीवन में दिक्कत कर सकती है. यदि हम लग्न भाव में मांगलिक की स्थितियां देखते हैं तो 60 प्रकार के मंगल के फल हमें देखने को मिलते हैं जिनमें से कुछ मांगलिक शुभ और कुछ शुभ कहे जाएंगे.

आवश्यक नहीं है कि विवाह में हमेशा मंगल ही परेशानी करें कोई अन्य ग्रह सब संभव पर नीचे दृष्टि रखता है अथवा नीच अवस्था में होता है या सप्तम भाव का स्वामित्रिक भागों में होता है तो वैवाहिक जीवन में कड़ा संघर्ष देखने को मिलता है. जीवनसाथी का सुख भी कुछ कम मिलता है.

कुछ कुंडलियां ऐसे भी होते हैं जिनमें यदि सप्तम तथा द्वितीय भाव बिल्कुल ही कमजोर हो तथा उनके कारक ग्रह तथा स्वामी ग्रह भी खराब अवस्था में हो तथा राहु केतु और नीच शनि  के कारण संबंध बने तो अविवाहित रहने के योग भी बनते हैं.

करें ये उपाय (Upay for Vivah)

  • यदि जन्म कुंडली में ग्रह दशा आदि अनुकूल हो और विवाह आदि में किसी प्रकार का विलंब या रुकावट प्रतीत हो रही हो तो उन ग्रहों से संबंधित पूजा पाठ की सहायता से सकारात्मक ऊर्जा बढ़ाई जा सकती है. जो बाधाओं को बहुत कम कर देती है. 
  • पुरुषों को ऐसी अवस्था में दुर्गा सप्तशती के श्लोक का विधि पूर्वक जाप करना चाहिए.
    श्लोक -पत्नीं मनोरमां देहि मनोवृत्तानु सारिणीम्।
    तारिणींदुर्गसं सारसागरस्य कुलोद्भवाम्॥
    अर्थ- हे देवी, मुझे मन की इच्छा के अनुसार चलने वाली मनोहर पत्‍‌नी प्रदान करो, जो दुर्गम संसार सागर से तारने वाली तथा उत्तम कुल में उत्पन्न हुई हो.
  • स्त्रियों को यह जाप करना चाहिए-
    इस मंत्र को शिव पार्वती की पूजा कर के 108 बार रोज पढ़ा करना है-हे गौरी शंकरार्धांगी यथा त्वम् शंकरप्रिया तथा मम कुरु कल्याणी कंटकान्तम सुदुर्लभ्यम्
    अर्थ- देवी गौरी, भगवान शंकर की अर्धांगिनी चूंकि आप भगवान शिव की प्रिय हैं, कृपया मुझे इच्छित वर प्रदान करें.
  • शिवजी भगवान और पार्वती माता के विवाह वाला फोटो लगा कर मन्त्र जाप करना चाहिए.

किसी भी प्रकार से उपाय शुरू करने से पहले किसी ज्योतिष से कुंडली का विश्लेषण आवश्यक कराना चाहिए.  

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