Jamiat Ulema-e-Hind president Arshad Madani over holistic nationalism 

Arshad Madani: जमीयत उलेमा-ए-हिंद के अध्यक्ष अरशद मदनी ने समग्र राष्ट्रवाद को लेकर बयान दिया. उन्होंने कहा कि मजहब हिंदू, मुस्लिम या सिख चाहे कुछ भी हो, लेकिन हर हिंदुस्तानी की कौम एक है. मदनी ने कहा कि आज सांप्रदायिक लोग उस समग्र राष्ट्रवाद को बांटना और खत्म करना चाहते हैं. हम नफरत और बांटने की सियासत को पनपने देने वाले नहीं हैं. जो लोग हिंदू, मुसलमान और दलित को अलग-अलग कौम बताते हैं, ये मुल्क की तबाही की बुनियाद है. 

मौलाना अरशद मदनी ने X पर अपने भाषण का वीडियो शेयर कर लिखा, “जमीयत उलेमा-ए-हिंद ने समग्र राष्ट्रवाद के लिए काम किया है यानी भारत एक विविध राष्ट्र है, जिसमें कई तरह की जातियां, संस्कृतियां, जनजातियां, समुदाय और धर्मों के लोग रहते हैं, लेकिन वह सब अपनी विशिष्ट धार्मिक परंपराओं को कायम रखते हुए एकजुट भारतीय राष्ट्र के सदस्य हैं, उनके दरमियान कोई भेद भाव नहीं, लेकिन आज सांप्रदायिक लोग उस समग्र राष्ट्रवाद को बांटना और खत्म करना चाहते हैं!” 

मुसलमान यहां 1300 साल से हैं: मदनी 

अरशद मदनी ने भारत में मुसलमानों के इतिहास को बताते हुए कहा, “मुसलमान इस मुल्क में 100-200 साल से नहीं हैं. सबसे पहले पहली सदी में केरल में इस्लाम पहुंचा. उसके बाद सिंध के अंदर पहुंचा. मुहम्मद बिन कासिम वहां आए. दूसरी सदी में यहां इस्लाम पनपने लगा. मुसलमान यहां 1300-1400 साल से रहता है. गांव दर गांव रहता है. ये समग्र राष्ट्रवाद है. आज जिस नफरत की सियासत को जन्म दिया जा रहा है. सियासत को बुनियाद बनाकर काम किया जा रहा है. ये हिंदुस्तान नहीं है. 144 साल से हिंदुस्तान की तारीख नहीं है. अगर ऐसा होता तो मुसलमान और इस्लाम खत्म हो जाते.” 

मदनी ने 1757 का किया जिक्र 

वीडियो में मौलाना मदनी ने 1757 के समय के  हिंदुस्तान का जिक्र करते हुए कहा कि 1757 में जब हिंदुस्तान की सरहदें अलग-अलग नहीं थीं. हिंदुस्तान फैला हुआ था. बांग्लादेश, श्रीलंका, पाकिस्तान और अफगानिस्तान मिलाकर सब एक मुल्क था. उस समय पूरे हिंदुस्तान की आबादी चार करोड़ थी. उस समय समग्र राष्ट्रवाद था. हर गांव में भाई-भाई की तरह रहते थे. अब ऐसा लगता है कि जैसे जलजला आ गया है. उसे आग लगाना चाहते हैं.

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