Mahashivratri 2025 Lord Shiv ashtamurti names significance of their eight statue

Mahashivratri 2025: महाशिवरात्रि समीप आ रही है और उसी के साथ शिव जी के बारे मे अधिक से अधिक जानकारी प्राप्त करने की लालसा प्रत्यक शिव भक्त में होती है, इसी कारण से आज से हम शिव प्रत्येक अवतार के बारे जानेंगे. अवतार के जानने से पहले हमें शिव जी की अष्टमूर्तियों के बारे मे जानना चाहिए.

यह संपूर्ण जग परमात्मा शिव की उन आठ मूर्तियों का स्वरूप ही है, उस मूर्ति समूह में व्याप्त होकर विश्व उसी प्रकार स्थित है, जैसे सूत्र में [पिरोयी हुई] मणियाँ.

शिव जी की अष्टमूर्तियां – शिव पुराण (शतरुद्र संहिता अध्याय क्रमांक २ अनुसार) शर्व, भव, रुद्र, उग्र, भीम, पशुपति, ईशान और महादेव-ये [शंकर जी की] आठ मूर्तियाँ विख्यात हैं.

भूमि, जल, अग्नि, पवन, आकाश, क्षेत्रज्ञ, सूर्य एवं चन्द्रमा- ये निश्चय ही शिव के शर्व आदि आठों रूपों से अधिष्ठित हैं.

  1. महेश्वर का विश्वम्भरात्मक [शर्व] रूप चराचर विश्व को धारण करता है-ऐसा ही शास्त्र का निश्चय है.
  2. समस्त संसार को जीवन देने वाला जल परमात्मा शिव का भव नामक रूप कहा जाता है.
  3. जगत के अंदर बाहर फैली समस्त ऊर्जा और गतिविधियों में स्थित अग्निमूर्ति को अत्यंत ओजस्वी मूर्ति कहा गया है जिसके स्वामी रुद्र हैं.
  4. जो प्राणियों के भीतर तथा बाहर गतिशील रहकर विश्व का भरण-पोषण करता है और स्वयं भी स्पन्दित होता रहता है सज्जनों द्वारा उसे उग्र स्वरूप परमात्मा शिव का उग्र रूप कहा जाता है.
  5. भीम स्वरूप शिव का सबको अवकाश देनेवाला, सर्वव्यापक तथा आकाशात्मक भीम नामक रूप कहा गया है, वह महाभूतों का भेदन करनेवाला है.
  6. जो सभी आत्माओं का अधिष्ठान, समस्त क्षेत्रों का निवास स्थान तथा पशुपाश को काटने वाला है, उसे पशुपतिका [पशुपति नामक] रूप जानना चाहिये.
  7. सूर्य नाम से जो विख्यात होकर सम्पूर्ण जगत्‌को प्रकाशित करता है और आकाश में भ्रमण करता है, वह महेश का ईशान नामक रूप है.
  8. जो अमृत के समान किरणों से युक्त होकर चन्द्ररूप से सारे संसार को आप्यायित करता है, महादेव शिवजी का वह रूप महादेव नाम से विख्यात है. उन परमात्मा शिव का आठवाँ रूप आत्मा है, जो अन्य सभी मूर्तियों की अपेक्षा सर्व व्यापक है इसलिये यह समस्त चराचर जगत् शिव का ही स्वरूप है.

जिस प्रकार वृक्ष की जड़ (मूल) को सींचने से उसकी शाखाएँ पुष्ट होती हैं, उसी प्रकार शिव का शरीरभूत संसार शिवार्चन से पुष्ट होता है. जिस प्रकार इस लोक में पुत्र, पौत्रादि के प्रसन्न होने पर पिता प्रफुल्लित हो जाता है, उसी प्रकार संसार के प्रसन्न होने से शिवजी प्रसन्न रहते हैं.

यदि किसी के द्वारा जिस किसी भी शरीरधारी को कष्ट दिया जाता है, तो मानो अष्टमूर्ति शिव का ही वह अनिष्ट किया गया है.

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