Mahakumbh Timur Lang encountered Naga Sadhus in Haridwar Kumbh Mela history in hindi

कुंभ चल रहा है था. वैशाखी का पर्व था. दिल्ली में तैमूर के कत्लेआम से पूरी तरह से बेखबर लाखों श्रद्धालु हरिद्वार कुंभ मेला में गंगा स्नान कर रहे थे. गुनगुनी धूप के बीच साधुओं की टोलियां गंगा स्नान कर लौट रहीं थी. महिलाएं भजन गा रही थीं. बुजुर्ग नदी के किनारे बैठकर ध्यान लगा रहे थे. छोटे बच्चे रेत में अटखेलियां कर रहे थे. कुछ बच्चे अपने पिता के कंधे पर बैठकर कुंभ मेले को निहार रहे थे. कुंभ के मेले में भक्ति चरम पर थी. निरंजनी, जूना और पंचाग्नि अखाड़े की पताका आसमान में लहरा रही थी. स्नान के बाद साधु इन आखड़ों में माथे पर चंदन तिलक लगा रहे थे….जटाओं को बांध रहे थे. ब्रह्मांण में देव गुरु बृहस्पति कुंभ राशि में गोचर कर रहे थे. ग्रहों के राजा सूर्य, मेष राशि में प्रवेश कर चुके थे. कुंभ मेला पूरे सवाब पर था. समूचा मेला सनातन धर्म में डूबा हुआ था. किसी को अंदेशा भी नहीं था कि दिल्ली में खून की होली खेलकर लौट रहा तैमूर उनकी तरफ तेजी चला आ रहा था.

तैमूर बड़ा जुल्मी था. उसके हृदय में करुणा नहीं थी. जब उसकी तलवार उठती तो रक्त से सराबोर होने के बाद ही वापिस म्यान में जाती थी. म्यान से जब भी उसकी तलवार बाहर आती तो बड़े पैमाने पर कत्लेआम करती. वो मौत बनकर अपने शत्रुओं पर झपटता था. तैमूर लंग की आत्मकथा ‘तुजुक-ए-तैमूरी’ से भारत पर हमले और यहां के कत्लेआम के बारे में चौकाने वाली जानकारी मिलती है.

कुंभ में तैमूर लंग का सामना जब नागा साधुओं से हुआ...

हिंदुस्तान में जिस तरह से उसने कत्लेआम किया, उससे लगता है कि उसके दिल में हिंदुओं के लिए कितनी नफरत थी. कत्लेआम करते हुए उसकी तलवार किसी पर रहम नहीं करती थी. महिला, बच्चे और बूढ़े…उसकी तलवार किसी को नहीं छोड़ती थी. यही कारण है कि तैमूर इतिहास का सबसे क्रूरतम आक्रांता माना जाता है.

सर डेविड प्राइस अपनी किताब ‘मेमॉएर्स ऑफ़ द प्रिंसिपल इवेंट्स ऑफ़ मोहमडन हिस्ट्री’ में तैमूर की क्रूरता के बारे में बताते हैं. वे लिखते हैं कि- ‘तैमूर की सेना पलक झपकते ही लाशों के ढ़ेर लगाने में परांगत थी. दिल्ली में तैमूर करीब 15 दिन तक रहा और यहां रह रहे लोगों के सिर पर मौत बनकर नाचता रहा.’ तैमूर के बारे में कहा जाता है कि भारत में वो करीब तीन महीने तक रहा और इस दौरान उसने लगभग 30 हजार हिंदुओं का कत्ल किया, जिसमें महिलाएं और बच्चे भी शामिल थे. दिल्ली में रक्तपात और लूटपाट करने के बाद तैमूर ने सेना को मेरठ की तरफ कूच करने का आदेश दिया.

मेरठ से पहले तैमूर की सेना ‘लोनी’ के पास रुकी. यहां उसने एक लाख के करीब हिंदुओं को बंदी बनाया और कत्लेआम किया. उसके बाद वो हरिद्वार की तरफ बढ़ा. सन् 1398, उस समय यहां पर कुंभ का मेला लगा था. कुंभ स्नान के बाद मेले में आए लोग दोपहर का भोजन ग्रहण कर रहे थे. अखाड़ों के तंबुओं में साधु-संत और श्रद्धालु सुस्ता रहे थे. कुछ नींद में थे तो कुछ सामूहिक रुप से भजन कीर्तन में व्यस्त थे. उधर तैमूर तीसरे पहर की नमाज अदा कर जैसे ही उठता है, उसका एक मुखबिर उसके कानों में कुछ बुदबुदता है. तैमूर अपनी आत्मकथा ‘तुजक-ए-तैमूर’ या ‘मलफूजात-ए-तैमूर’ में एक जगह लिखता है, ‘मुझे मेरे खुफिया लोगों ने खबर दी कि यहां से दो कोस की दूरी पर कुटिला घाटी में काफी संख्या में हिंदू लोग अपनी पत्‍‌नी और बच्चों के साथ जमा हैं, उनके साथ काफी धन-दौलत एवं पशु हैं, तो यह खबर सुनकर मैं की नमाज अदा कर अमीर सुलेमान के साथ दर्रा-ए-कुटिला की ओर रवाना हुआ’. पुरातत्ववेत्ता कनिंघम ‘कु-पि-ला’ को ‘कोह-पैरी’ यानि ‘पहाड़ की पैड़ी’ या ‘हरि की पैड़ी’ का उल्लेख मानते हैं. इतिहास से पता चलता है कि हरिद्वार में तैमूर ने कुंभ के दौरान भयंकर कत्लेआम किया था.

कुंभ में तैमूर लंग का सामना जब नागा साधुओं से हुआ...

कुंभ में निहत्थे हिंदुओं की हत्या कर तैमूर ने जमकर लूटपाट की. मंदिरों को तोड़ा, मूर्तियों को खंडित किया. इस कृत्य से नागा साधु क्रोधित हो गए. कुंभ में लाशों को ढ़ेर और बच्चों और महिलाओं की चीखें सुनकर नागा साधुओं ने शस्त्र उठा लिए. भगवान शिव के भक्त कहलाने वाले नागा संतों ने तैमूर से जमकर लोहा लिया. बताते हैं कि हरिद्वार के पास ज्वालापुरी में तैमूर के साथ भयंकर युद्ध हुआ. तैमूर को नागा साधुओं के बारे में कोई जानकारी नहीं थी. शरीर पर भभूत, हाथों में चिमटा, फरसा और कुल्हाड़ी के साथ नागा साधुओं के तीव्र गुस्से से तैमूर भयभीत हो गया. ये प्रदर्शन और रोष उसकी कल्पना से परे था. कुंभ में तैमूर को ऐसे अनुभव हुए जिससे वो बुरी तरह से डर गया. एक मंदिर पर जब उसने आक्रमण किया तो मूर्ति से सांप-बिच्छुओं का झुंड निकल आया जिससे तैमूर की सेना में भगदड़ मच गई. नागा साधुओं ने तैमूर को वापिस लौटने के लिए विवश कर दिया.

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