Russia-Ukraine Conflict: अक्सर बड़े सपने लेकर हम बड़े शहर या दूसरे देश जाते हैं, लेकिन कभी-कभी हकीकत इतनी दर्दनाक हो जाती है कि सपनों का अस्तित्व ही नहीं रहता है। ऐसे ही कुछ उत्तर प्रदेश के दो युवकों के साथ हुआ, जो कमाने के लिए रूस गए, लेकिन जब लौटे तो सपने के साथ वो भी टूट चुके थे। हम राकेश और ब्रजेश यादव की बात कर रहे हैं, जो घरों की रंगाई-पुताई करके अपना गुजारा करते थे। इससे उनके परिवार का गुजारा मुश्किल से चल पाता था, लेकिन तभी उन्हें एक ऐसा ऑफर मिला, जिसे वे ठुकरा नहीं सके।
नौकरी के लिए गए थे रूस
राकेश और ब्रजेश को रूस में सुरक्षा गार्ड की नौकरी के लिए हर महीने 2 लाख रुपये का वादा किया गया। उन्होंने सोचा कि ये वेतन उनके जीवन को बदल देगा। ऐसे में उन्होंने नौकरी को हां कह दी, लेकिन रूस ने उनके जीवन को बदल दिया। उनके साथ जो हुआ, उसका दर्द वे जीवन भर नहीं भूल पाएंगे।
उत्तर प्रदेश के आजमगढ़ के राकेश (29) और पड़ोसी मऊ के ब्रजेश (30) पिछले साल सितंबर में घर लौटे थे। वे घर छोड़ने के करीब आठ महीने बाद, उस लड़ाई के जख्मों को लेकर वापस आए, जिसे उन्हें लड़ने के लिए मजबूर किया गया था। इसके कारण वे शारीरिक ही नहीं, मानसिक रूप से जीवन भर के लिए जख्मी हो गए थे।
बताई आपबीती
टीओआई से बात करते हुए राकेश ने बताया कि रूसी धरती पर उतरने के बाद, हमारी तुरंत फिजिकल फिटनेस की जांच की गई और फिर मॉडर्न हथियारों के साथ 15 दिनों की युद्ध ट्रेनिंग के लिए अज्ञात स्थानों पर भेज दिया गया। बाद में हमें सीमा पर अलग-अलग स्थानों पर यूक्रेनी सैनिकों के खिलाफ लड़ने के लिए सैन्य ट्रकों में ले जाया गया। उन्होंने कई महीने अस्पताल में बिताए।
इसी बीच पीएम मोदी के हस्तक्षेप से राकेश और ब्रजेश को वापस घर आने का मौका मिला। फिलहाल दोनों इस बात से खुश हैं कि वे जीवित हैं और अपने परिवार के साथ हैं, लेकिन युद्ध और धोखे का सदमा उन्हें अभी भी सताता है। इसमें तीन भारतीय एजेंटों का भी हाथ था, जिन्होंने उन्हें रूसी सेना के लिए काम करने के लिए धोखा दिया और उनकी ज्यादातर कमाई हड़प ली।
एजेंट ने दिया धोखा
राकेश ने बताया कि हम 17 जनवरी, 2024 को रूस पहुंचे और हमारे एजेंट सुमित और दुष्यंत ने एक रूसी नागरिक की मदद से हमारे नाम से बैंक खाते खोले और हर किसी को 7 लाख रुपये भेजे। यह एक अच्छी शुरुआत लग रही थी, लेकिन बाद में एजेंटों ने हमारे बैंक डिटेल और डेबिट कार्ड ले लिए थे। बाद में, कुछ रूसी सैनिकों ने बताया कि उन्हें सेना के साथ लड़ने के लिए उनके एजेंटों द्वारा ‘बेचा’ गया था।
शुरू में, हमें ट्रकों पर हथियार और गोला-बारूद लोड करने, बंकरों की सफाई करने और खाना पकाने जैसे काम सौंपे गए थे। लेकिन एक बार जब रूसियों को युद्ध के मैदान में भारी नुकसान हुआ, तो हमें हथियार उठाने के लिए मजबूर होना पड़ा।
राकेश ने आगे बताया, मुझे रूस-यूक्रेन सीमा से 10 किमी दूर सुदझा में लड़ने के लिए भेजा गया था। रूसी सैन्य कमांडर को बचाने के मिशन में लगे रहने के दौरान वह ड्रोन हमले में घायल हो गया था। मुझे विनोद यादव (मऊ), धीरेंद्र कुमार, अरविंद कुमार, योगेंद्र यादव और आजमगढ़ के कन्हैया यादव सहित अन्य घायल सैनिकों के साथ चेचन-कंट्रोल अस्पताल ले जाया गया। जहां कन्हैया की घावों के कारण मृत्यु हो गई, जबकि जो ठीक हो गए उन्हें वापस लड़ने के लिए भेज दिया गया। इसी बीच राकेश ने बाद में मास्को में दूतावास से संपर्क किया और ब्रजेश से भी संपर्क किया। ब्रजेश ने कहा कि मैंने पहले मलेशिया और दुबई में चार साल तक काम किया था, लेकिन यह एक बुरा सपना था।
यह भी पढ़ें – Uber और Ola के बाद Zepto पर भी लगे भेदभाव के आरोप; iPhone और Android पर अलग-अलग प्राइस
Current Version
Jan 27, 2025 22:22
Edited By
Ankita Pandey
Read More at hindi.news24online.com