Mahakumbh 2025: जैसे की हमें कुम्भ में देखने मिलता है की लगभग सभी संप्रदायों के संत कुम्भ में स्नान करने आते है, इन सभी संप्रदायों की उपासना पद्धति भिन्न भिन्न है लेकिन सनातन का कुम्भ मेला इन्हें एक मंच पर ले आता है, और इन सबको एक लाने का श्रेय भगवान आदि शंकराचार्य को जाता हैं.
कुम्भ पर्व (गीता प्रेस) अनुसार, जिस कुम्भ-पर्व का उल्लेख वेदों और पुराणों में मिलता है, उसकी प्राचीनता के सम्बन्ध में तो किसी को संदेह होने का अवसर ही नहीं है. किन्तु यह बात अवश्य विचारणीय है कि कुम्भ मेले का धार्मिक रूप में प्रसार करने का श्रीगणेश किसने किया ? इस विषय में बहुत अन्वेषण करने पर सिद्ध होता है कि कुम्भ-मेले को प्रवर्तित करने वाले आदि शंकराचार्य हैं.
ऐसा प्रतीत होता है कि उन्होंने कुम्भ-पर्व के प्रचार की व्यवस्था केवल धार्मिक संस्कृति को सुदृढ़ करने के लिये किया था. उन्हीं के आदर्शानुसार आज भी कुम्भ-पर्व के चारों सुप्रसिद्ध तीर्थों में सभी सम्प्रदायों मेंस के साधु-महात्मागण देश-काल-परिस्थिति के अनुरूप लोक- कल्याण की दृष्टि से धर्म का प्रचार करते हैं, जिससे समस्त मानव- समाजका कल्याण होता है.
भगवान आदि शंकराचार्य जी के कुम्भ-प्रवर्तक होने के कारण ही आज भी कुम्भ मेला मुख्यतः साधुओं का ही माना जाता है. वस्तुतः साधु- मण्डली ही कुम्भ का जीवन है. भगवान शंकराचार्य ने जिस महान् उद्देश्य की पूर्ति के लिये कुम्भ को प्रवर्तित किया था, आज उसमें जो आवश्यकता से अधिक कमी आ गयी है, वह किसी से छिपी नहीं है.
आज प्रत्येक गृहस्थ एवं साधु-महात्माओं को चाहिये कि पुनः भगवान शंकराचार्यजी के सदुद्देश्य की पूर्ति में मनसा, वाचा और कर्मणा प्रवृत्त होकर अपना और देश का कल्याण कर कुम्भ के महत्त्व को सुरक्षित रखें.
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