child care tips effect of social media ban on children mental health

सोशल मीडिया बच्चों की मेंटल हेल्थ को बुरी तरह प्रभावित कर रहा है. इसकी वजह से उनमें कई तरह की समस्याएं जन्म ले सकती हैं. इसी को देखते हुए हाल ही में ऑस्ट्रेलिया (Australia) ने 16 साल से कम उम्र के बच्चों के लिए सोशल मीडिया पर रोक लगा दी है. दुनिया में पहली बार किसी देश इस तरह का एक्शन लिया है. जिसके बाद दुनियाभर में इसकी चर्चा शुरू हो गई है.

सोशल मीडिया बच्चों की मेंटल हेल्थ को बुरी तरह प्रभावित कर रहा है. इसकी वजह से उनमें कई तरह की समस्याएं जन्म ले सकती हैं. इसी को देखते हुए हाल ही में ऑस्ट्रेलिया (Australia) ने 16 साल से कम उम्र के बच्चों के लिए सोशल मीडिया पर रोक लगा दी है. दुनिया में पहली बार किसी देश इस तरह का एक्शन लिया है. जिसके बाद दुनियाभर में इसकी चर्चा शुरू हो गई है.

कुछ लोग बच्चों की मेंटल हेल्थ के लिए इस बैन को जरूरी मान रहा हैं, जबकि कुछ इसकी आलोचना कर रहे हैं. उनका मानना है कि ये कदम बच्चों की क्रिएटिविटी को दबा सकता है. ऐसे में आइए जानते हैं बच्चों के लिए सोशल मीडिया कितना जरूरी और कितना खतरनाक...

कुछ लोग बच्चों की मेंटल हेल्थ के लिए इस बैन को जरूरी मान रहा हैं, जबकि कुछ इसकी आलोचना कर रहे हैं. उनका मानना है कि ये कदम बच्चों की क्रिएटिविटी को दबा सकता है. ऐसे में आइए जानते हैं बच्चों के लिए सोशल मीडिया कितना जरूरी और कितना खतरनाक…

जामा साइकियाट्री में 2021  में पब्लिश एक रिपोर्ट के अनुसार, जो बच्चे हर दिन तीन घंटे से ज्यादा सोशल मीडिया पर रहते हैं, उनमें स्ट्रेस, डिप्रेशन की समस्या ज्यादा होती है. इतना ही नहीं इससे उनका कॉन्फिडेंस भी कम हो सकता है. यूके की रॉयल सोसाइटी फॉर पब्लिक हेल्थ (RSPH) की रिपोर्ट भी बताती है कि इंस्टाग्राम और स्नैपचैट जैसे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म खासकर छोटी  उम्र की लड़कियों में बॉडी इमेज को लेकर इंसिक्योरिटी बढ़ाती है. ऐसे में सोशल मीडिया पर रोक बच्चों की मेंटल हेल्थ के लिए बेहतर हो सकती है.

जामा साइकियाट्री में 2021 में पब्लिश एक रिपोर्ट के अनुसार, जो बच्चे हर दिन तीन घंटे से ज्यादा सोशल मीडिया पर रहते हैं, उनमें स्ट्रेस, डिप्रेशन की समस्या ज्यादा होती है. इतना ही नहीं इससे उनका कॉन्फिडेंस भी कम हो सकता है. यूके की रॉयल सोसाइटी फॉर पब्लिक हेल्थ (RSPH) की रिपोर्ट भी बताती है कि इंस्टाग्राम और स्नैपचैट जैसे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म खासकर छोटी उम्र की लड़कियों में बॉडी इमेज को लेकर इंसिक्योरिटी बढ़ाती है. ऐसे में सोशल मीडिया पर रोक बच्चों की मेंटल हेल्थ के लिए बेहतर हो सकती है.

सोशल मीडिया की आदत एक नशे की तरह है. अक्सर बच्चे इसे देखते हुए देर रात तक जागते हैं. इससे उनकी नींद प्रभावित  होती है. स्क्रीन से निकलने वाली ब्लू लाइट मेलाटोनिन प्रोडक्शन को ही रोक देती है, जो नींद को कंट्रोल करने वाला हार्मोन है.

सोशल मीडिया की आदत एक नशे की तरह है. अक्सर बच्चे इसे देखते हुए देर रात तक जागते हैं. इससे उनकी नींद प्रभावित होती है. स्क्रीन से निकलने वाली ब्लू लाइट मेलाटोनिन प्रोडक्शन को ही रोक देती है, जो नींद को कंट्रोल करने वाला हार्मोन है.

नेशनल स्लीप फाउंडेशन के मुताबिक, किशोरों को रोजाना 8-10 घंटे की नींद बेहद जरूरी है लेकिन देर रात तक फोन चलाने की वजह से कई बच्चे इसे पूरा नहीं कर पाते हैं. ऐसे में सोशल मीडिया पर बैन लगाकार बच्चों को एक हेल्दी रुटीन दिया जा सकता है.

नेशनल स्लीप फाउंडेशन के मुताबिक, किशोरों को रोजाना 8-10 घंटे की नींद बेहद जरूरी है लेकिन देर रात तक फोन चलाने की वजह से कई बच्चे इसे पूरा नहीं कर पाते हैं. ऐसे में सोशल मीडिया पर बैन लगाकार बच्चों को एक हेल्दी रुटीन दिया जा सकता है.

एक्सपर्ट्स का मानना है कि लंबे समय तक सोशल मीडिया पर रहने से लाइफस्टाइल स्लो हो सकती है. रील्स और फोन पर ज्यादा समय बिताने वाले बच्चे खुद को घर के अंदर ही कैद कर लेते हैं.इससे उनकी फिजिकल एक्टिविटीज कम होती है. WHO के मुताबिक, 5 से 17 साल के बच्चों को रोजाना एक घंटे की फिजिकल एक्टिविटी करनी चाहिए. सोशल मीडिया बच्चों के सामाजिक रिश्तों पर भी असर करता है.

एक्सपर्ट्स का मानना है कि लंबे समय तक सोशल मीडिया पर रहने से लाइफस्टाइल स्लो हो सकती है. रील्स और फोन पर ज्यादा समय बिताने वाले बच्चे खुद को घर के अंदर ही कैद कर लेते हैं.इससे उनकी फिजिकल एक्टिविटीज कम होती है. WHO के मुताबिक, 5 से 17 साल के बच्चों को रोजाना एक घंटे की फिजिकल एक्टिविटी करनी चाहिए. सोशल मीडिया बच्चों के सामाजिक रिश्तों पर भी असर करता है.

Published at : 02 Dec 2024 06:19 PM (IST)

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