Utpanna Ekadashi 2024 Katha in hindi margashirsha ekadashi vrat ke benefit

Utpanna Ekadashi 2024: मार्गशीर्ष माह विष्णु जी की अवतार श्रीकृष्ण को प्रिय है. महाभारत काल के दौरान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को एकादशी व्रत का महत्व बताया था, मान्यता है कि मार्गशीर्ष माह में आने वाली एकादशी का व्रत करने वालों को मोक्ष की प्राप्ति होती है.

भगवान श्रीकृष्ण के परम मित्र सुदामा ने भी इस व्रत को रखा था. इस व्रत के प्रभाव से उन्हें अनंत सुख की प्राप्ति हुई थी. आइए जानते हैं मार्गशीर्ष माह की उत्पन्ना एकादशी क्यों मनाई जाती है, कब रखा जाएगा व्रत, इसके लाभ क्या है.

उत्पन्ना एकादशी व्रत कब है (Utpanna Ekadashi 2024 Date)

उत्पन्ना एकादशी 26 नवंबर 2024 को है. मार्गशीर्ष माह की इस एकादशी से ही ग्यारस का व्रत शुरू हुआ था. इसी दिन देवी एकादशी विष्णु जी के शरीर से प्रकट हुई थी.

उत्पन्ना एकादशी व्रत कथा (Utpanna Ekadashi Katha)

सत्ययुग में मुर नामक एक भयानक राक्षस था. मुर अत्यन्त शक्तिशाली तथा वीभत्स्य था. मुर ने अपनी असाधारण शक्तियों से न केवल इन्द्रदेव को अपितु अनेक अन्य देवताओं को भी परास्त कर दिया तथा वह इन्द्रलोक पर शासन करने लगा. मुर के अत्याचारों का अन्त करने हेतु समस्त देवगण सहायता के लिये भगवान शिव के समीप गए. भगवान शिव ने उन्हें तीनों लोकों के स्वामी भगवान विष्णु के समक्ष उपस्थित होने का सुझाव दिया.

भगवान विष्णु देवताओं की सहायता करने के लिए राक्षस मुर को पराजित करने का निर्णय किया. भगवान विष्णु अन्य देवगणों सहित चन्द्रवती नामक नगरी पहुंचे. मुर दैत्य इस नगरी पर शासन करता था. एक ओर भगवान श्री हरी विष्णु थे तथा दूसरी ओर राक्षस मुर अपनी पूरी सेना के साथ युद्ध को आतुर था. पौराणिक कथा के अनुसार, भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र तथा दिव्य गदा से मुर की सम्पूर्ण सेना को नष्ट कर लेकिन भगवान विष्णु के समस्त अस्त्र-शस्त्र मुर राक्षस की शक्तियों के समक्ष अप्रभावी सिद्ध हुये. न तो उनका सुदर्शन चक्र एवं न ही उनकी गदा राक्षस मुर का शीश काटने तथा गर्दन तोड़ने में सक्षम थी.

भगवान विष्णु एवं मुर के मध्य दीर्घकाल तक अस्त्र-शस्त्रों से युद्ध होने के बाद मल्लयुद्ध आरम्भ हो गया. मल्लयुद्ध में अस्त्र-शस्त्रों का प्रयोग न करके शारीरिक बल से युद्ध किया जाता हैय मान्यताओं के अनुसार, भगवान विष्णु एवं मुर के मध्य 10,000 वर्षों तक युद्ध चलता रहा। इस युद्ध का कोई अन्त न होता देख भगवान विष्णु ने युद्ध पर विराम लगा दिया तथा बद्रिकाश्रम स्थित हेमवती गुफा में विश्राम करने चले गये.

राक्षस मुर भगवान विष्णु का पीछा करते हुये बद्रिकाश्रम तक पहुंच गया. दानव मुर ने भगवान विष्णु को शयन करते हुये पाया तथा यह विचार किया कि, यह भगवान विष्णु को मारने का एक उपयुक्त अवसर है. राक्षस मुर के अन्दर की ऐसी राक्षसी भावना का प्रतिकार करने हेतु, भगवान विष्णु के दिव्य शरीर से एक शक्तिशाली लड़की का प्राकट्य हुआ. वह कन्या गौरवशाली, शक्तिशाली थी तथा भगवान विष्णु की रक्षा हेतु समस्त प्रकार के अस्त्र-शस्त्रों से सुसज्जित थी. भगवान विष्णु की इस स्त्री शक्ति ने मुर को युद्ध में परास्त दिया तथा उसके वक्षस्थल पर अपना चरण रखकर, उसका शीश काटकर उसका वध कर दिया.

सभी देवगण उस कन्या की असाधारण शक्ति की प्रशन्सा करने लगे. जब भगवान विष्णु निद्रा से उठे, तो वह अपनी शक्ति से परिचित नहीं थे तथा उन्होंने लड़की से अपना परिचय देने का आग्रह किया.  कन्या ने अपना परिचय देते हुये स्वयं को भगवान विष्णु की शक्ति बताया जो भगवान विष्णु की योग माया से उत्पन्न हुयी थी. भगवान विष्णु उनकी स्त्री शक्ति से बेहद प्रसन्न हुये तथा उनसे इस महान कार्य लिये वरदान माँगने का आग्रह किया.

कन्या ने कहा, कृपया मुझे ऐसी शक्ति प्रदान करें, जिसके प्रभाव से मेरे निमित्त व्रत पालन करने वालों के समस्त प्रकार के पाप नष्ट हो जायें तथा उन्हें मोक्ष प्राप्त हो जाये. कृपया मुझे सभी तीर्थों में सर्वाधिक महत्वपूर्ण एवं सर्वोत्तम बनने का आशीष प्रदान करें.  मुझे ऐसा वरदान दें प्रभु कि, मैं अपने भक्तों को धर्म, धान्य तथा मोक्ष प्रदान करने में सक्षम हो जाऊँ”

भगवान विष्णु ने कन्या को वरदान दिया एवं कहा, “तुम्हारा जन्म एकादशी तिथि को हुआ है, अतः तुम समस्त लोकों में एकादशी के नाम से विख्यात होगी. सभी युगों में न केवल मनुष्यों द्वारा, अपितु देवताओं द्वारा भी तुम्हारी पूजा की जायेगी. एकादशी व्रत से अधिक मुझे अन्य किसी वस्तु से प्रसन्नता नहीं होगीय तुम्हारे भक्त” सभी प्रकार के सांसारिक सुखों का आनन्द भोगकर अन्त समय में मोक्ष गति को प्राप्त करेंगे.”

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