माधवी पुरी बुच ने आरोपों पर तोड़ी चुप्पी, कहा- SEBI चेयरपर्सन रहते हुए ICICI Bank के साथ कोई लेन-देन नहीं किया

SEBI चेयरपर्सन माधबी पुरी बुच ने आखिरकार आरोपों पर चुप्पी तोड़ दी है. SEBI चेयरपर्सन और उनके पति धवल बुच के नाम से स्टेटमेंट जारी किया गया है. हाल ही में सामने आए हिन्डेनबर्ग रिसर्च के आरोपों और व्यक्तिगत रूप से उठाए गए सवालों के जवाब में SEBI चेयरपर्सन ने व्यक्तिगत क्षमता में स्टेटमेंट जारी किया है. उन्होंने अपनी निष्ठा पर उठे सवालों और चलाए जा रहे ‘दुष्प्रचार’ का खंडन किया है. यह बयान हिन्डेनबर्ग के आरोपों के जवाब में आया है, जिसमें SEBI की कार्यशैली और बुच की व्यक्तिगत साख पर सवाल उठाए गए थे.

बुच ने अपने बयान में कहा, हमारे कार्यकाल के दौरान SEBI की साख और विश्वसनीयता पर बार-बार सवाल उठाए गए हैं. कुछ तत्व हमारे खिलाफ दुष्प्रचार अभियान चला रहे हैं, जो न केवल दुर्भावनापूर्ण हैं, बल्कि पूरी तरह से निराधार भी हैं. उन्होंने कहा कि उनके कार्यकाल में उन्होंने ICICI समूह की किसी भी कंपनी से कोई डील नहीं की है.

धवल बुच के कंसल्टिंग असाइनमेंट्स

स्टेटमेंट में कहा गया है कि धवल बुच IIT दिल्ली के ग्रेजुएट हैं और एक सम्मानित पेशेवर हैं, उन्होंने 35 साल तक हिंदुस्तान यूनिलीवर में अपनी सेवाएं दीं. उनके रिटायरमेंट के बाद उन्होंने महिंद्रा एंड महिंद्रा और पिडिलाइट जैसी कंपनियों के साथ कंसल्टिंग असाइनमेंट्स लिए, जो उनकी एक्सपर्टीज को देखकर दिए गए. आरोप था कि धवल बुच की नियुक्ति में SEBI चेयरपर्सन माधवी की भूमिका रही है. लेकिन, महिंद्रा एंड महिंद्रा और पिडिलाइट ने साफ किया कि धवल बुच को उनकी योग्यता पर नियुक्त किया गया और SEBI के किसी फैसले का इन कंपनियों पर कोई असर नहीं पड़ा.

रेंटल इनकम का मुद्दा

माधवी पुरी बुच और धवल बुच की प्रॉपर्टी से रेंटल इनकम को लेकर सवाल उठाए गए. इस पर उन्होंने सफाई दी कि यह प्रॉपर्टी सामान्य रूप से किराए पर दी गई थीं और आरोप लगाया गया  कि इसमें SEBI की भूमिका रही है, ये तथ्य आधारहीन और झूठे हैं. उन्होंने कहा कि यह रेंटल इनकम पूरी तरह से मार्केट रेट्स के अनुसार है और इसका SEBI की किसी भी जांच से कोई संबंध नहीं है.

ICICI बैंक के ESOPs से जुड़े आरोप

माधवी और धवल बुच पर आरोप लगाए गए कि उन्होंने ICICI बैंक से मिले स्टॉक ऑप्शन्स का गलत इस्तेमाल किया. ये आरोप पूरी तरह बेबुनियाद है. माधबी ICICI बैंक से रिटायर हुई थीं, जैसे कोई भी सीनियर अधिकारी होता है. माधबी को उनके कार्यकाल के दौरान ही ESOPs मिले थे. ICICI बैंक की पॉलिसी के मुताबिक, रिटायर हुए कर्मचारियों को ESOPs रखने का 10 साल तक वक्त दिया जाता है. वहीं, रिजाइन करने वाले कर्मचारियों के लिए यह अवधि 3 महीने का होता है. इसके अलावा, यह दावा किया गया कि उन्होंने SEBI में रहते हुए ICICI के मामलों को प्रभावित किया है, जबकि उन्होंने कहा कि उन्होंने SEBI चेयरपर्सन बनने के बाद ICICI की किसी भी फाइल को नहीं देखा है.

पारदर्शिता को लेकर उठे सवाल

माधबी बुच ने कहा कि SEBI में उनका पूरा कामकाज पारदर्शिता और उच्चतम मानकों के साथ हुआ है.  उन्होंने हमेशा SEBI की गाइडलाइन और डिस्क्लोजर का पालन किया है. इसके अलावा उन्होंने कभी भी अपने पति की कंसल्टिंग फर्म में हस्तक्षेप नहीं किया. उनकी तरफ से SEBI में दाखिल की गई सभी जानकारियां सार्वजनिक रिकॉर्ड में हैं.

क्या है मामला?

अमेरिकी फर्म हिन्डनबर्ग रिसर्च ने 11 अगस्त को पहली SEBI और माधवी पुरी बुच पर गंभीर आरोप लगाए थे. इसके बाद लगातार विपक्ष ने भी बार-बार उनपर लगे आरोपों की बारिश की. हिन्डनबर्ग ने SEBI के फैसलों और माधवी के पारिवारिक संबंधों को जोड़ते हुए कई आरोप लगाए थे, जिनमें सबसे प्रमुख आरोप धवल बुच के कंसल्टिंग असाइनमेंट्स और माधवी की SEBI चेयरपर्सन के रूप में भूमिका को लेकर था. हालांकि, माधवी और धवल ने इस पूरे मामले को षड्यंत्र करार दिया है और इसे उनके खिलाफ एक ‘मालिकस कैम्पेन’ (malicious campaign) बताया है.

हिन्डेनबर्ग के आरोप

SEBI चेयरपर्सन माधवी पुरी बुच पर हिन्डेनबर्ग रिसर्च ने हाल ही में गंभीर आरोप लगाए थे. हिन्डेनबर्ग ने दावा किया था कि बुच की एक प्राइवेट कंसल्टिंग कंपनी में 99% हिस्सेदारी है. SEBI में रहते हुए इन कंपनियों से उन्होंने पेमेंट रिसीव किए हैं. इन कंपनियों में महिंद्रा एंड महिंद्रा, ICICI बैंक, डॉ. रेड्डीज और पिडिलाइट जैसी बड़ी कंपनियां शामिल थीं. इस रिपोर्ट के बाद बुच की भूमिका और SEBI गाइडलाइन्स पर भी सवाल उठ गए थे.

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