HNI की हालत अली बाबा चालिस चोर की कहानी जैसी, प्रॉपरायटरी एल्गो ट्रेडिंग में हवा बदल सकती है

आपने अली बाबा चालिस चोर की कहानी सुनी होगी। अली के भाई अमीरो के उस गुफा में फंस जाते हैं, क्योंकि गुफा से बाहर निकलने का जादुई मंत्र वह भूल जाते हैं। कई अमीर निवेशक (HNI) जिन्होंने बड़े समूहों की छोटी कंपनियों के शेयरों में निवेश किया था, आज उनकी हालत अली के भाई जैसी है। कई शेयरों की मौजूदा कीमत उनकी खरीद कीमत से ज्यादा है। लेकिन वे शेयर तब तक नहीं बेच सकते जब तक ग्रुप लीडर से उन्हें इजाजत नहीं मिल जाती। ऐसे कई ग्रुप हैं और हर ग्रुप की प्रॉफिट बुक करने के अलग-अलग नियम हैं।

ग्रुप लीडर के खिलाफ नहीं जा सकते एचएनआई

कुछ ग्रुप लीडर्स ने स्मॉलकैप और माइक्रोकैप स्टॉक्स में बेयरिश मूड को देखते हुए अपने फॉलोअर्स को शेयर बेचने से मना किया है। फॉलोअर्स ग्रुप लीडर के खिलाफ नहीं जा सकते क्योंकि उनकी पहुंच रजिस्टर ऑफ शेयरहोल्डर्स तक है और शेयरे बेचे जाने पर उन्हें इसका पता चल जाएगा। इससे उन्हें WhatsApp Group से बाहर होना पड़ेगा, जिस पर इनवेस्टमेंट के लिए स्टॉक टिप्स बताए जाते हैं। कुछ दूसरे ग्रुप लीडर्स एग्जिट लोड लगाते हैं। उनके फॉलोअर्स शेयर बेच सकते हैं, लेकिन उन्हें प्रॉफिट का 40-60 फीसदी हिस्सा देना होगा। तभी उन्हें ग्रुप में स्टॉक टिप्स मिलती रहेगी।

Zomato पर भरोसा लेकिन मुनफावसूली पर नजर

Zomato ने भले ही शुद्ध शाकाहरी और नॉन-वेज फ्लीट को लेकर अपना रुख बदल लिया है। लेकिन इसके शेयरों में तेजी जारी है। इसकी बड़ी वजह यह है कि कई संस्थागत ब्रोकर्स देर से ही सही लेकिन वे इस स्टॉक को लेकर बुलिश हैं। उधर, जोमैटो के शेयरों में सबसे पहले निवेश करने वाले कुछ इनवेस्टर्स ने अपनी हिस्सेदारी घटाई है। इनमें दिवंगत राकेश झुनझुनवाला के क्लोज सर्किल से जुड़े कुछ लोग भी हैं। हालांकि, उनका भरोसा जोमैटो पर बना हुआ है। लेकिन, वे मुनाफावूसली को अभी ठीक समझ रहे।

फार्मा कंपनियों की चिंता

राजनीतिक दलों को इलेक्टोरल बॉन्ड्स के जरिए पैसे देने में कुछ फार्मा कंपनियां शामिल हैं। बताया जा रहा है कि इन फार्मा कंपनियों की चिंता की वजह अनब्रांडेड जेनरिक दवाओं पर सरकार का फोकस है। अब तक फार्मा कंपनियां यह दलील देती रही हैं कि अनब्रांडेड जेनेरिक्स के बड़े मार्केट माने जाने वाले अमेरिका, यूके, ऑस्ट्रेलिया और साऊथ अफ्रीका दुनिया में सबसे महंगी दवाओं वाले मार्केट्स में शामिल हैं। इसके अलावा उनकी यह भी दलील है कि दवाओं की क्वालिटी पर खराब असर पड़ेगा क्योंकि कमजोर मैन्युफैक्चरिंग प्रोसेस वाली कंपनियां आसानी से बड़ी कंपनियों को टक्कर देने लगेंगी। लेकिन, इसमें कोई संदेह नहीं कि अगर सरकार अपने प्लान पर फोकस बनाए रखती है तो फार्मा कंपनियों के मार्जिन पर असर पड़ेगा।

प्रॉपरायटरी एल्गो ट्रेडिंग में बदल सकती है हवा

ऐसा लगता है कि हवा प्रॉपरायटरी एल्गो ट्रेडिंग फर्मों के खिलाफ बह रही है। ऐसी कई प्रॉपरायटरी फर्में हैं जो पार्टनरशिप मॉडल पर काम करती रही हैं। इसमें वे ऑप्शंस ट्रेडर्स को पैसे देती हैं और इसके एवज में प्रॉफिट में कुछ हिस्सा लेती हैं। इस पर डायरेक्टोरेट जनरल ऑफ गुड्स एंड सर्विसेज टैक्स इंटेलिजेंस की टेढ़ी नजर पड़ी है। उसक मानना है कि मॉडल सर्विस के दायरे में आता है और इस पर जीएसटी लगेगा। लेकिन, मार्केट रेगुलेटर के लिए बड़ी चिंता यह चर्चा है कि एक बड़ी प्रॉपरायटरी एल्गो ट्रेडिंग फर्म के साथ इस पार्टनरशिप मॉडल में कुछ बड़े ऑप्शन ट्रेडर्स को करोड़ों रुपये का लॉस हुआ है। बाजार के जानकारों का कहना है कि इससे ऑप्शन सेगमेंट पर असर दिख सकता है।

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