Aghan Mahina: हिंदू धर्म में अगहन महीने को सबसे श्रेष्ठ माह कहा गया है, क्योंकि भगवान कृष्ण को सभी महीनों में से यह माह सबसे ज्यादा प्रिय है. मान्यता के अनुसार मार्गशीर्ष माह में पूजा-पाठ और जाप करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है.
मगर यह धार्मिक दृष्टि के साथ-साथ स्वास्थ्य के नज़रिये से भी बहुत जरूरी है. क्योंकि अगहन महीने में तामसिक भोजन नहीं किया जाता, जिसमें लहसुन, प्याज, जीरा, मसूर सहित अन्य चीजों को आयुर्वेद और धर्म के दोनों में ही वर्जित माना गया है.
जीरा की जगह करें इस मसाले का इस्तेमाल
वहीं बात करें जीरे की तो, यह एक ऐसा मसाला है, जिसे हर भारतीय के घर में इस्तेमाल किया जाता है. सनातन धर्म में भी जो लोग लहसुन और प्याज का सेवन नहीं करते, उनके यहां भी साल भर जीरा का तड़का लगता है. मगर अगहन मास में जीरा इस्तेमाल नहीं करना चाहिए. इसकी जगह हींग या काली मिर्च का उपयोग कर सकते हैं.
इस महीने में खानपान का विशेष महत्व
अगहन महीने में पूजा-पाठ, व्रत और सात्विक भोजन का खास महत्व है. इस महीने में खानपान पर ध्यान रखने से भी हमारा स्वास्थ्य सही रहता है.
बुंदेलखंड की एक कहावत के अनुसार, क्वांर करेला, कार्तिक दई, अगहन आंवला, पूष में मई. यह ठंड के महीने होते हैं, जिनमें इन चीजों को खाने से स्वास्थ्य को नुकसान होता है.
वैसे ही आयुर्वेद और पुराणों में भी अगहन माह में जीरा खाना वर्जित किया गया है.
जाने धार्मिक और आयुर्वेदिक कारण
अगहन का महीना शीत ऋतु का होता है और धर्म ग्रंथों और पुराणों के अनुसार इस महीने में जीरा खाने से व्यक्ति के शरीर की पाचन शक्ति अधिक सक्रिय हो जाती है. जिस वजह से गर्म तासीर वाली चीजें हमारे शरीर के संतुलन को बिगाड़ सकती है.
धार्मिक मान्यता के अनुसार, अगहन मास में जीरा का सेवन करने से मां लक्ष्मी के आशीर्वाद में रुकावटें आती हैं. वहीं भगवान विष्णु को सात्विक भोजन ही प्रिय है और जीरा को तामसिक गुणों वाला पदार्थ माना जाता है.
आयुर्वेद की माने तो जीरा का सेवन करने से व्यक्ति को सिरदर्द, स्किन के जुड़े रोग या पाचन जैसी दिक्कतें आ सकती हैं. जीरा पित्त दोष को भी बढ़ाता है. इससे शारीरिक के साथ-साथ मानसिक परेशानियां भी होती है, जो नींद को प्रभावित कर सकती हैं.
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