Navratri 2025: महाशक्ति की आराधना का पर्व है नवरात्रि. तीन हिंदू देवियों पार्वती, लक्ष्मी और सरस्वती के नौ विभिन्न स्वरूपों की उपासना के लिए निर्धारित हैं, जिन्हें नवदुर्गा के नाम से जाना जाता है.
पहले तीन दिन पार्वती के तीन स्वरूपों की अगले तीन दिन लक्ष्मी माता के स्वरूपों और आखिरी के तीन दिन सरस्वती माता के स्वरूपों की पूजा करते हैं. दुर्गा सप्तशती के अन्तर्गत देव-दानव युद्ध का विस्तृत वर्णन है.
इसमें देवी भगवती और मां पार्वती ने किस प्रकार से देवताओं के साम्राज्य को स्थापित करने के लिए तीनों लोकों में उत्पात मचाने वाले महादानवों से लोहा लिया है. यही कारण है कि आज सारे भारत में हर जगह दुर्गा यानी नवदुर्गाओं के मन्दिर स्थपित हैं.
इस बार नवरात्रि 9 नहीं 10 दिन की
पाल बालाजी ज्योतिष संस्थान जयपुर जोधपुर के निदेशक ज्योतिषाचार्य डा. अनीष व्यास ने बताया कि, शारदीय नवरात्रि पर्व अश्विनी शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा 22 सितंबर से 2 अक्टूबर तक मनाया जाएगा. इस बार तृतीया तिथि 24 और 25 सितंबर दो दिन होने के कारण नवरात्रि पर्व 10 दिनों तक मनाया जाएगा.
नवरात्रि पर्व की तिथि बढ़ना शुभ माना जाता है. आश्विन माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा 21 सितंबर की अर्ध रात्रि 1.24 बजे से लगेगी, जो कि दूसरे दिन 22 सितंबर की ब्रह्मवेला में प्रतिपदा तिथि तक रहेगी और इसी दिन ही शारदीय नवरात्रि पर्व की शुरूआत होगी.
नवरात्रि में दुर्गा सप्तशती का पाठ करें
ज्योतिषाचार्य डा. अनीष व्यास ने बताया कि, वर्ष में दो बार चैत्र नवरात्रि और शारदीय नवरात्रि में मां दुर्गा की विधि विधान से पूजा की जाती है. हालांकि कि गुप्त नवरात्रि भी आती है, लेकिन चैत्र नवरात्रि और शारदीय नवरात्रि की लोक मान्यता ज्यादा है.
साल में दो बार आश्विन और चैत्र मास में नौ दिन के लिए उत्तर से दक्षिण भारत में नवरात्र उत्सव का माहौल होता है. सम्पूर्ण दुर्गासप्तशती का अगर पाठ न भी कर सकें तो निम्नलिखित श्लोक का पाठ को पढ़ने से सम्पूर्ण दुर्गासप्तशती और नवदुर्गाओं के पूजन का फल प्राप्त हो जाता है.
वैसे तो दुर्गा के 108 नाम गिनाये जाते हैं लेकिन नवरात्रों में उनके स्थूल रूप को ध्यान में रखते हुए नौ दुर्गाओं की स्तुति और पूजा पाठ करने का गुप्त मंत्र ब्रहमा जी ने अपने पौत्र मार्कण्डेय ऋषि को दिया था.
इसको देवीकवच भी कहते हैं. देवीकवच का पूरा पाठ दुर्गा सप्तशती के 56 श्लोकों के अन्दर मिलता है. नौ दुर्गाओं के स्वरूप का वर्णन संक्षेप में ब्रहमा जी ने इस प्रकार से किया है.
ज्योतिषाचार्य डॉ अनीष व्यास ने बताया:
ज्योतिषाचार्य डॉ. अनीष व्यास ने बताया कि, उपरोक्त नौ दुर्गाओं ने देव दानव युद्ध में विशेष भूमिका निभाई है, इनकी सम्पूर्ण कथा देवी भागवत पुराण और मार्कण्डेय पुराण में लिखित है.
शिव पुराण में भी इन दुर्गाओं के उत्पन्न होने की कथा का वर्णन आता है कि, कैसे हिमालय राज की पुत्री पार्वती ने अपने भक्तों को सुरक्षित रखने के लिए तथा धरती आकाश पाताल में सुख शान्ति स्थापित करने के लिए दानवों राक्षसों और आतंक फैलाने वाले तत्वों को नष्ट करने की प्रतीज्ञा की ओर समस्त नवदुर्गाओं को विस्तारित करके उनके 108 रूप धारण करने से तीनों लोकों में दानव और राक्षस साम्राज्य का अन्त किया.
हर समस्या का समाधान हैं ये श्लोक
ज्योतिषाचार्य डॉ. अनीष व्यास ने बताया कि, नवरात्र में शक्ति साधना व कृपा प्राप्ति का सरल उपाय दुर्गा सप्तशती का पाठ है. नवरात्र के दिवस काल में संविधि मां के कलश स्थापना के साथ शतचंडी, नवचंडी, दुर्गा सप्तशती और देवी अथर्वशीर्ष का पाठ किया जाता है.
दुर्गा सप्तशती के पाठ के कई विधि विधान है. दुर्गा सप्तशती महर्षि वेदव्यास रचित मार्कण्डेय पुराण के सावर्णि मन्वतर के देवी महात्म्य के 700 श्लोक का एक भाग है. दुर्गा सप्तशती में अध्याय एक से तेरह तक तीन चरित्र विभाग हैं. इसमें 700 श्लोक हैं.
देवी का ध्यान मंत्रः देवी प्रपन्नार्तिहरे प्रसीद प्रसीद मातर्जगतोsखिलस्य .प्रसीद विश्वेतरि पाहि विश्वं त्वमीश्चरी देवी चराचरस्य.
देवी से प्रार्थना करें: शरणागत-दीनार्त-परित्राण-परायणे! सर्वस्यार्तिंहरे देवि! नारायणि! नमोऽस्तुते॥
सर्वकल्याण एवं शुभार्थ प्रभावशाली माना गया हैः सर्व मंगलं मांगल्ये शिवे सर्वाथ साधिके.शरण्येत्र्यंबके गौरी नारायणि नमोस्तुऽते॥
बाधा मुक्ति एवं धन-पुत्रादि प्राप्ति के लिएः सर्वाबाधा विनिर्मुक्तो धन-धान्य सुतान्वितः.मनुष्यों मत्प्रसादेन भवष्यति न संशय॥
सर्वबाधा शांति के लिएः सर्वाबाधा प्रशमनं त्रैलोक्यस्याखिलेश्वरि. एवमेव त्वया कार्यमस्मद्दैरिविनाशनम्.
विपत्ति नाश के लिएः शरणागतर्दनार्त परित्राण पारायणे.सर्व स्यार्ति हरे देवि नारायणि नमोऽतुते॥
मोक्ष प्राप्ति के लिएः त्वं वैष्णवी शक्तिरनन्तवीर्या.विश्वस्य बीजं परमासि माया.सम्मोहितं देवि समस्तमेतत्.त्वं वैप्रसन्ना भुवि मुक्त हेतु:.
शक्ति प्राप्ति के लिएः सृष्टिस्थितिविनाशानां शक्तिभूते सनातनि.गुणाश्रये गुणमये नारायणि नमोह्यस्तु ते.
रक्षा का मंत्रः शूलेन पाहि नो देवि पाहि खड्गेन चाम्बिके.घण्टास्वनेन न: पाहि चापज्यानि: स्वनेन च.
रोग नाश का मंत्रः रोगानशेषानपहंसि तुष्टा रुष्टा तु कामान सकलानभीष्टान्.त्वामाश्रितानां न विपन्नराणां त्वामाश्रिता हाश्रयतां प्रयान्ति.
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