शेयर बाजार (Stock Market) में निवेश करने से पहले हम अक्सर शेयर की कीमत, P/E Ratio, कंपनी के प्रॉफिट और डिविडेंड पर ध्यान देते हैं, लेकिन एक छोटी-सी चीज़ होती है जिसे कई निवेशक नजरअंदाज कर देते हैं वो है, Face Value यानी शेयर का मूल मूल्य.
यह कंपनी के वित्तीय ढांचे (Financial Framework) का एक बुनियादी हिस्सा है और डिविडेंड कैलकुलेशन में इसकी अहम भूमिका होती है. चलिए इस आर्टिकल में हम फेस वैल्यू का मतलब, डिविडेंड में इसका इस्तेमाल और निवेश के फैसले में इसकी अहमियत को आसान भाषा में समझते हैं.
फेस वैल्यू क्या है?
फेस वैल्यू (Face Value) किसी कंपनी के शेयर का नाममात्र मूल्य होता है, जो कंपनी अपने मेमोरेंडम ऑफ एसोसिएशन (MOA) में तय करती है. यह मूल्य शेयर के इश्यू के समय फिक्स होता है और आमतौर पर ₹1, ₹2, ₹5, ₹10 जैसे छोटे आंकड़ों में होता है.
उदाहरण से समझिए तो अगर किसी कंपनी ने अपने शेयर की फेस वैल्यू ₹10 तय की है, तो इसका मतलब है कि कंपनी ने रजिस्ट्रेशन के समय इस शेयर की बुक वैल्यू ₹10 मानी थी.
यह शेयर की मार्केट कीमत से अलग होता है, क्योंकि मार्केट प्राइस मांग और आपूर्ति, बिजनेस परफॉर्मेंस और बाजार भावनाओं के आधार पर बदलता रहता है.
फेस वैल्यू और डिविडेंड का रिश्ता
डिविडेंड की घोषणा अक्सर फेस वैल्यू के प्रतिशत के आधार पर होती है, न कि मार्केट प्राइस के आधार पर. उदाहरण से समझिए तो मान लीजिए कंपनी ने 50% डिविडेंड घोषित किया और शेयर की फेस वैल्यू ₹10 है. तो डिविडेंड होगा- ₹10 × 50% = ₹5 प्रति शेयर.
अगर उसी कंपनी की फेस वैल्यू ₹2 होती, तो 50% डिविडेंड का मतलब होता ₹1 प्रति शेयर. इसलिए, डिविडेंड प्रतिशत सुनकर यह समझना जरूरी है कि फेस वैल्यू कितनी है, तभी आपको असल कैश अमाउंट पता चलेगा जो आपको मिलेगा.
फेस वैल्यू क्यों बदलती है?
फेस वैल्यू आमतौर पर कंपनी बदलती नहीं है, लेकिन कुछ खास परिस्थितियों में यह बदल सकती है. जैसे- स्टॉक स्प्लिट (Stock Split). इसमें कंपनी एक शेयर को छोटे-छोटे हिस्सों में बांट देती है, जिससे फेस वैल्यू घट जाती है.
उदाहरण के तौर पर अगर ₹10 फेस वैल्यू वाले शेयर को 1:5 स्प्लिट किया गया हो तो स्टॉक की नई फेस वैल्यू ₹2 हो जाएगी और शेयरों की संख्या 5 गुना बढ़ जाएगी.
शेयर कंसॉलिडेशन में भी स्टॉक की फेस वैल्यू बदल जाती है. इसमें छोटे फेस वैल्यू के शेयरों को मिलाकर बड़े फेस वैल्यू वाले शेयर बना दिए जाते हैं. यानी ₹2 फेस वैल्यू के 5 शेयर मिलाकर ₹10 फेस वैल्यू का 1 शेयर.
फेस वैल्यू, मार्केट प्राइस और बुक वैल्यू का अंतर
फेस वैल्यू: कंपनी के इश्यू समय का नाममात्र मूल्य.
मार्केट प्राइस: शेयर की मौजूदा ट्रेडिंग कीमत.
बुक वैल्यू: कंपनी के नेट एसेट्स (Assets – Liabilities) को शेयरों की कुल संख्या से भाग देकर निकाला गया मूल्य.
निवेश करते समय फेस वैल्यू क्यों समझना जरूरी है?
डिविडेंड कैलकुलेशन के लिए
फेस वैल्यू जाने बिना डिविडेंड प्रतिशत का कोई मतलब नहीं है, क्योंकि असल कैश अमाउंट फेस वैल्यू पर आधारित होता है.
स्टॉक स्प्लिट के प्रभाव को समझने के लिए
स्प्लिट होने पर फेस वैल्यू बदलती है और शेयर की कीमत भी एडजस्ट हो जाती है.
बॉन्ड और प्रेफरेंस शेयर निवेश में
इन इंस्ट्रूमेंट्स में फेस वैल्यू के आधार पर ब्याज और रिडेम्प्शन वैल्यू तय होती है.
IPO निवेश में
IPO में फेस वैल्यू और प्रीमियम मिलाकर इश्यू प्राइस तय होता है.
फेस वैल्यू को लेकर आम गलतफहमियां
मिथ 1: ज्यादा फेस वैल्यू मतलब ज्यादा महंगा शेयर.
सच: फेस वैल्यू का शेयर के मार्केट प्राइस से सीधा संबंध नहीं होता.
मिथ 2: फेस वैल्यू बढ़ने से निवेशक को फायदा होता है.
सच: फेस वैल्यू बदलने से सीधे कैश गेन या लॉस नहीं होता, सिर्फ शेयर स्ट्रक्चर बदलता है.
आपके काम की बात
फेस वैल्यू भले ही शेयर की मार्केट कीमत तय करने में मुख्य भूमिका न निभाए, लेकिन डिविडेंड समझने, कॉर्पोरेट एक्शन के प्रभाव जानने और निवेश के कुछ खास फैसलों में इसकी अहमियत है. एक समझदार निवेशक हमेशा डिविडेंड प्रतिशत के साथ फेस वैल्यू चेक करता है ताकि उसे मिलने वाला असल रिटर्न साफ नजर आए.
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