Bhakti Marg: सांसों की माला में सिमरूं मैं पी का नाम…अपने मन की मैं जानु और पी के मन की राम

Bhakti Marg: सांसों की माला में सिमरूं मैं पी का नाम- यह सिर्फ एक भक्ति की पंक्ति नहीं, बल्कि संपूर्ण साधना का सार है. जब हाथों की माला छूट जाए और सांसें ही प्रभु का नाम जपने लगें, तब साधक उस प्रेम, पीड़ा और परम सत्य से जुड़ता है, जहां ईश्वर बाहर नहीं, भीतर बसते हैं. आइए आज इसी भक्ति के रहस्य से पर्दा उठाते हैं.

जब सांसें माला बन जाएं और भगवान हर श्वास में बस जाएं…
सांसों की माला में सिमरूं मैं पी का नाम… मीरा बाई की यह पंक्ति पहली बार सुनने पर सरल लगती है, लेकिन इसकी आत्मा में डूबने पर ये एहसास होता है कि यह पंक्ति भक्ति की चरम अवस्था, ध्यान की पराकाष्ठा और प्रेम की समाधि का संकेत है.

यह वो स्थिति है जहां साधना बाहरी नहीं रहती, बल्कि स्वयं का हिस्सा बन जाती है. जहां न मंदिर की जरूरत होती है, न माला की. वहां बस सांसें चलती हैं और हर श्वास में प्रभु का नाम गूंजता है.

माला से लेकर मर्म तक: साधना की यात्रा
चरण साधना की विधि अर्थ

  1. हाथ में माला जप की शुरुआत
  2. मन में माला ध्यान की परिपक्वता
  3. सांसों में माला अजपा जप, स्वयं से भी आगे
  4. अस्तित्व ही माला योग और भक्ति का मिलन

मीरा कहती हैं- अब माला की जगह सांसों ने ले ली है. यह संकेत है कि अब जप केवल क्रिया नहीं, बल्कि चेतना बन गया है.

‘पी’ कौन है? प्रेमी, परमात्मा या पूर्ण सत्य?
‘पी’ शब्द प्रतीक है उस प्रिय के लिए जो हर सांस में रचा-बसा है. वह कृष्ण भी हो सकता है, शिव भी, निराकार ब्रह्म भी — या कोई भी ऐसा जिसे आपने पूर्ण समर्पण से अपने अंदर बसा लिया हो.

नाम जपत मंगल दिसा दस हू, बिनु हरि नाम न उबरै कोऊ (तुलसीदास)

सांसों की साधना: जब ध्यान भी श्वास बन जाए
आज के समय में मेडिटेशन, माइंडफुलनेस और योग की बातें बहुत होती हैं. लेकिन मीरा की यह साधना उससे भी आगे है, यह अजपा जप की अवस्था है, जहां सांसें बिना प्रयास के खुद-ब-खुद ईश्वर का नाम लेती हैं.

यह वह स्थिति है जहां आप सोते हुए भी भगवान का स्मरण करते हैं, क्योंकि शरीर सोता है, लेकिन प्राणों की धारा सतत नाम-स्मरण करती रहती है.

इस एक पंक्ति में छुपे हैं ये 5 आध्यात्मिक रहस्य:

  1. साधना का सर्वोच्च रूप: जब साधक स्वयं साधना बन जाए.
  2. प्रेम की चरम स्थिति: जब ईश्वर सांसों में भी प्रियतम की तरह बस जाए.
  3. मौन जप की महिमा: बिना शब्दों के, हर सांस में नाम जप.
  4. मीरा की चेतना: एक महिला जिसने संसार नहीं, प्रभु को सांसों से जीया.
  5. ध्यान और भक्ति का संगम: यह पंक्ति योग और भक्ति दोनों का महासंगम है.

आज के दौर में इसकी प्रासंगिकता क्यों है?
भागती दुनिया में लोग ध्यान के लिए ऐप्स ढूंढते हैं, मन को शांत करने के लिए साउंड थेरेपी लेते हैं. लेकिन मीरा हमें बताती हैं…सांसों में ईश्वर बस जाएं, तो मन भी शांत हो जाता है और आत्मा भी. यह संदेश हर उस व्यक्ति के लिए है जो खुद से, ईश्वर से या प्रेम से जुड़ना चाहता है.

जब माला हाथ से छूटे, तो चिंता मत करना… सांसें तो चल रही हैं
सांसों की माला में सिमरूं मैं पी का नाम… यह केवल मीरा की नहीं, हर उस आत्मा की आवाज है जिसने प्रेम किया है, जिसने ईश्वर को जाना है, और जिसने सांसों को ही माला बना लिया है. इस पंक्ति में वह शक्ति है जो साधक को साधु बना सकती है, और सामान्य जीवन जीने वाले व्यक्ति को मन से सुंदर.

Lyrics-Sanson Ki Maala Pe Simrun Main

सांसो की माला पे सिमरूं मैं पी का नाम
अपने मन की मैं जानु और पी के मन की राम

दीन धरम सब छोड़ के मैं तो पी की धुन में खोयी
जित जाऊं गुण पी के गाऊं नाहि दूजा काम

प्रेम पीयाला जबसे पीया है जी का है ये हाल
चिंगारों पे नींद आ जाए कांटो पे आराम

प्रीतम तुमरे ही सब है अब अपना राज सुहाग
तुम नाही तो कछु नाही तुम मिले जागे भाग

आ पीया इन नैनन में जो पलक ढांप तोहे लूँ
ना मैं देखूँ गैर को ना तोहे देखन दूँ

ढांप लिया पलकों में तुझको बंद कर लिए नैन
तू मुझको मैं तुझको देखूं गैरों का क्या काम

जीवन का सिंगार है प्रीतम मांग का है सिन्दूर
प्रीतम की नज़रों से गिरके जीना है किस काम

प्रेम के रंग में ऐसी डूबी बन गया एक ही रूप
प्रेम की माला जपते जपते आप बनी मैं श्याम

प्रीतम का कछु दोष नहीं है वो तो है निर्दोष
अपने आप से बातें करके हो गयी मैं बदनाम

वो चातर है कामिनी वो है सुन्दर नार
जिस पगली ने कर लिया साजन का मन राम
नील गगन से भी परे सैंयाजी का गांव
दर्शन जल की कामना पथ रखियो हे राम

अब किस्मत के हाथ है इस बंधन की लाज
मैंने तो मन लिख दिया साँवरिया के नाम
जब से राधा श्याम के नैन हुए हैं चार
श्याम बने हैं राधिका राधा बन गयी श्याम

हाथ छुड़ावत जात हो निर्बल जानके मोहे
हिरदय में से जाओ तब मैं जानु तोहे
काजल डालूँ हो जाए किरकिरी ना रहे बह जाए
जिन नैनन में पी बसे वहाँ दूजा कौन समाए

सांसो की माला पे सिमरूं मैं पी का नाम
प्रेम के पथ पे चलते चलते हो गयी मैं बदनाम
सांसो की माला पे सिमरूं मैं पी का नाम
अपने मन की मैं जानु और पी के मन की राम

FAQ
Q. सांसों की माला में पी का नाम किसकी रचना है?
A. यह पंक्ति संत मीरा बाई की रचनाओं से जुड़ी मानी जाती है, लेकिन यह लोकभक्ति की धरोहर भी है.

Q. क्या सांसों में जपना सच में संभव है?
A. हां. यह ‘अजपा जप’ कहलाता है, एक उच्चतम साधना स्थिति जहां हर सांस स्वयं ईश्वर का नाम दोहराती है.

Q. क्या यह साधना आम व्यक्ति कर सकता है?
A. बिलकुल. अभ्यास, प्रेम और समर्पण से यह साधना हर कोई कर सकता है, भले वह गृहस्थ जीवन में हो.

Disclaimer: यहां मुहैया सूचना सिर्फ मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. यहां यह बताना जरूरी है कि ABPLive.com किसी भी तरह की मान्यता, जानकारी की पुष्टि नहीं करता है. किसी भी जानकारी या मान्यता को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह लें.

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