विदेशी प्रोमोटर क्यों बेच रहे हैं हिस्सेदारी, रिटेल निवेशक कैसे बचाएं डूबता पैसा?| Zee Business Hindi

शेयर बाजार में अगर आप मल्टीनेशनल कंपनियों (MNCs) के शेयरों में यह सोचकर पैसा लगाते हैं कि ये सबसे सुरक्षित हैं, तो आपको सावधान होने की जरूरत है. पिछले कुछ महीनों से बाजार में एक नया ट्रेंड देखने को मिल रहा है, जहां विदेशी प्रोमोटर अपनी ही भारतीय कंपनियों में अपनी हिस्सेदारी औने-पौने दामों पर बेचकर निकल रहे हैं. इसका सबसे बड़ा खामियाजा उन रिटेल निवेशकों को भुगतना पड़ रहा है, जो ऊंचे दामों पर शेयर खरीदकर फंस गए हैं.

यह पूरा मामला क्या है? विदेशी प्रोमोटर ऐसा क्यों कर रहे हैं? और सबसे महत्वपूर्ण, एक रिटेल निवेशक के तौर पर आपको इस जाल से कैसे बचना है? आइए, मार्केट गुरु अनिल सिंघवी के विश्लेषण के आधार पर इसे आसान भाषा में समझते हैं.

क्या हो रहा है बाजार में? विदेशी प्रोमोटरों की तगड़ी बिकवाली

पिछले कुछ समय में कई बड़ी MNCs के विदेशी प्रोमोटरों ने ऑफर फॉर सेल (OFS) और ब्लॉक डील के जरिए अपनी भारतीय कंपनियों में बड़ी हिस्सेदारी बेची है. चिंता की बात यह है कि यह बिकवाली बाजार भाव से 10%, 20% या 30-40% तक के भारी डिस्काउंट पर की गई है.












कंपनी प्रोमोटर ने कितना हिस्सा बेचा

बाजार भाव से कितना डिस्काउंट

Wendt (India) 37.50% 38%
Timex Group India 15%* 33.80%
Thomas Cook 8.5% (OFS) 21%
GE T&D 20% 18.40%
ZF Commercial 15% 18.70%
Timken India 6.6% (ब्लॉक डील) 10.20%
Whirlpool 24.7% (ब्लॉक डील) 7.50%

सिर्फ यही नहीं, Hyundai India के IPO में भी विदेशी प्रोमोटर ने अपनी 17.5% हिस्सेदारी बेची और शेयर इश्यू प्राइस के नीचे लिस्ट हुआ. Whirlpool के प्रोमोटर ने तो 2025 तक अपनी हिस्सेदारी 51% से घटाकर 20% करने का ऐलान भी कर दिया है, जिसके बाद से शेयर में भारी गिरावट आई है.

सबसे बड़ा सवाल: विदेशी प्रोमोटर ऐसा क्यों कर रहे हैं?

इसके पीछे कोई एक नहीं, बल्कि कई बड़े कारण हैं, जिन्हें समझना बेहद जरूरी है:

वैल्यूएशन का भारी अंतर: भारत में लिस्टेड MNC कंपनियों का वैल्यूएशन (PE Ratio) उनकी विदेशी पेरेंट कंपनी के मुकाबले कई गुना ज्यादा है. आसान भाषा में, भारतीय कंपनी अपनी कमाई के मुकाबले बहुत महंगी है. प्रोमोटरों को लगता है कि यह अपनी हिस्सेदारी बेचकर मुनाफा कमाने का सबसे सही समय है.










भारतीय कंपनी PE Ratio ग्लोबल पेरेंट/प्रतिस्पर्धी PE Ratio
Maruti Suzuki India 24.1 Suzuki Motors 4.7
Nestle India 75.2 Nestle SA 18.2
ABB India 59.5 ABB Switzerland 21.9
Linde India 88 Linde PLC 27
Schaeffler India 50 Schaeffler AG 3.8

पैसे की जरूरत: विदेशी पेरेंट कंपनियों को अपने ग्लोबल बिजनेस या अन्य जरूरतों के लिए पैसों की आवश्यकता हो सकती है, और भारतीय सब्सिडियरी में अपनी हिस्सेदारी बेचना उनके लिए पैसा जुटाने का एक आसान तरीका है.

जबरदस्त लिक्विडिटी: भारतीय शेयर बाजार में इस समय पैसों का फ्लो (लिक्विडिटी) बहुत ज्यादा है. इसलिए, विदेशी प्रोमोटरों के लिए बड़ी हिस्सेदारी बेचना और उसके लिए खरीदार ढूंढना बहुत आसान हो गया है.

बेहतर कॉरपोरेट गवर्नेंस का प्रीमियम: भारत में MNC कंपनियों को उनके अच्छे मैनेजमेंट और पारदर्शिता के लिए हमेशा से प्रीमियम वैल्यूएशन मिलता आया है. प्रोमोटर इसी प्रीमियम का फायदा उठाकर मोटी कमाई कर रहे हैं.

इस खेल का असली शिकार कौन? रिटेल निवेशक!

जब कोई प्रोमोटर भारी डिस्काउंट पर अपनी हिस्सेदारी बेचता है, तो उसका सीधा असर शेयर की कीमत पर पड़ता है और वह तेजी से गिरता है. इस खेल में सबसे ज्यादा नुकसान रिटेल निवेशकों का होता है:

ऊंचे दाम पर फंसना: रिटेल निवेशक MNC ब्रांड पर भरोसा करके ऊंचे दामों पर शेयर खरीदते हैं और बिकवाली की घोषणा के बाद शेयर गिरने से बुरी तरह फंस जाते हैं.

म्यूचुअल फंड्स को नुकसान: इन कंपनियों में म्यूचुअल फंड्स (MFs) का भी बड़ा निवेश होता है. जब शेयर गिरता है, तो MF की NAV भी गिरती है, जिसका नुकसान भी अंततः हम जैसे रिटेल निवेशकों को ही होता है.

मार्केट गुरु का ‘एडिटर्स टेक’: क्या है इसका समाधान?

अनिल सिंघवी और बाजार के एक्सपर्ट्स का मानना है कि रिटेल निवेशकों को इस तरह के नुकसान से बचाने के लिए नियमों में बदलाव की सख्त जरूरत है.

स्ट्रैटेजिक बिक्री में दिक्कत नहीं: अगर कोई विदेशी प्रोमोटर अपनी हिस्सेदारी किसी दूसरी कंपनी (स्ट्रैटेजिक पार्टनर) को ऊंचे भाव पर बेचता है, तो उसमें कोई समस्या नहीं है. क्योंकि ऐसी डील के बाद अक्सर रिटेल निवेशकों के लिए एक ओपन ऑफर भी आता है, जिससे उन्हें भी फायदा होता है.

समस्या है ओपन मार्केट में बिकवाली: असली समस्या तब है जब प्रोमोटर खुले बाजार में ब्लॉक डील या OFS के जरिए भारी डिस्काउंट पर माल बेचकर निकल जाते हैं.

मांग क्या है?

बिकवाली की सीमा तय हो: विदेशी प्रोमोटरों को खुले बाजार में एक लिमिट से ज्यादा हिस्सेदारी बेचने की इजाजत नहीं होनी चाहिए.

डिस्काउंट पर लगाम लगे: OFS या ब्लॉक डील बाजार भाव से कितना नीचे हो सकती है, इस पर भी एक सीमा (कैप) लगनी चाहिए.

एक बेहतरीन उदाहरण: Akzo Nobel-JSW Paints डील

हाल ही में हुई यह डील दिखाती है कि प्रोमोटर की बिकवाली कैसे होनी चाहिए. Akzo Nobel के विदेशी प्रोमोटर्स ने JSW Paints को 18% डिस्काउंट पर हिस्सा बेचा, लेकिन JSW Paints ने रिटेल निवेशकों के लिए डील प्राइस से भी 8% प्रीमियम पर ओपन ऑफर दिया. इससे रिटेल निवेशकों को नुकसान नहीं, बल्कि फायदा हुआ.

पोर्टफोलियो में विदेशी कंपनी का शेयर है तो क्या करें? अनिल सिंघवी की सलाह

अगर आपके पोर्टफोलियो में किसी ऐसी विदेशी कंपनी का शेयर है जो बहुत महंगे वैल्यूएशन (जैसे 60, 70, 80 या 100 के PE मल्टीपल) पर ट्रेड कर रहा है, तो आपको बहुत सतर्क रहना होगा. अनिल सिंघवी ने कहा कि जैसे ही आपको लगे कि इस कंपनी में आगे चलकर प्रोमोटर अपनी हिस्सेदारी बेच सकते हैं, तो ज्यादा लालच न करें और तुरंत उस शेयर से एग्जिट कर लीजिए.

निष्कर्ष

विदेशी प्रोमोटरों द्वारा अपनी हिस्सेदारी बेचना बाजार का एक हिस्सा है, लेकिन जब यह भारी डिस्काउंट पर और बिना रिटेल निवेशकों के हितों का ध्यान रखे किया जाए, तो यह एक खतरनाक ट्रेंड बन जाता है. एक निवेशक के तौर पर आपको सिर्फ कंपनी के नाम पर नहीं, बल्कि उसके वैल्यूएशन पर भी ध्यान देना होगा. बहुत महंगे MNC शेयरों से दूरी बनाना और सही समय पर मुनाफावसूली करना ही इस तरह के नुकसान से बचने का सबसे अच्छा तरीका है.

अक्सर पूछे जाने वाले सवाल (FAQs)

Q1. विदेशी प्रोमोटर अपनी हिस्सेदारी क्यों बेच रहे हैं?

A: क्योंकि भारतीय कंपनियों का वैल्यूएशन उनकी विदेशी पेरेंट कंपनी से बहुत ज्यादा है और वे इस मौके का फायदा उठाकर मुनाफा कमा रहे हैं.

Q2. इस बिकवाली से रिटेल निवेशक को क्या नुकसान है?

A: बिकवाली की खबर से शेयर का भाव गिर जाता है, जिससे ऊंचे दाम पर खरीदने वाले रिटेल निवेशक फंस जाते हैं.

Q3. क्या मुझे सभी MNC शेयरों को बेच देना चाहिए?

A: नहीं, लेकिन जो शेयर बहुत महंगे (High PE Ratio) हैं और जहां प्रोमोटर के बेचने का खतरा है, वहां सावधान रहना और एग्जिट करना बेहतर है.

Q4. OFS और ब्लॉक डील क्या होती है?

A: ये बड़ी मात्रा में शेयरों को बेचने के तरीके हैं, जो अक्सर मौजूदा बाजार भाव से कुछ डिस्काउंट पर किए जाते हैं.

Q5. इस समस्या का सही समाधान क्या है?

A: SEBI को विदेशी प्रोमोटरों द्वारा खुले बाजार में हिस्सेदारी बेचने और डिस्काउंट की सीमा पर सख्त नियम बनाने चाहिए.

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