भारतीय शेयर बाजार में पिछले कुछ समय से विदेशी निवेशकों की लगातार बिकवाली देखी जा रही है। इसके बावजूद शेयर बाजार में अब तक कोई बड़ा क्रैश नहीं देखा गया है। जेफरीज के ग्लोबल इक्विटी स्ट्रैटेजी हेड और जाने-माने निवेशक क्रिस्टोफर वुड ने अब इसकी वजह बताई है। क्रिस्टोफर वुड का कहना है कि भारतीय शेयर बाजार को गिरने से सिर्फ यहां के म्यूचुअल फंडों ने बचाया हुआ है। वुड ने कहा कि अगर घरेलू म्यूचुअल फंड्स का मजबूत सपोर्ट नहीं होता तो इस साल अब तक भारतीय शेयर बाजार में 20 से 30 फीसदी तक की गिरावट आ चुकी होती।
जेफरीज के क्रिस्टोफर वुड ने बताया कि भारतीय शेयर बाजार में विदेशी निवेशकों की हिस्सेदारी घटकर 15 साल के निचले स्तर पर आ गई है। विदेशी निवेशकों ने भारत से जो निकासी की है, उसका एक बड़ा हिस्सा साउथ कोरिया और ताइवान के बाजारों में गया है, जहां AI (आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस) से जुड़ी कंपनियों में जबरदस्त तेजी देखने को मिल रही है।
ऐसे में घरेलू निवेशक जो SIP के जरिए म्यूचुअल फंड्स में पैसे लगा रहे हैं, उन्होंने ही भारतीय शेयर बाजार को गिरने से संभाला हुआ है। अगस्त में घरेलू संस्थागत निवेशकों (DIIs) ने लगातार 25वें महीने शेयर बाजार में शुद्ध खरीदारी की। मौजूदा वित्त वर्ष की शुरुआती पांच महीनों में ही घरेलू निवेशक शेयर बाजार में 37.6 अरब डॉलर का शुद्ध निवेश कर चुके हैं। जबकि विदेशी निवेशकों ने इसी दौरान 1.5 अरब डॉलर की बिकवाली की है। पिछले दो महीनों से उनकी बिकवाली और भी तेज हो गई है। जुलाई और अगस्त में FIIs ने करीब 6 अरब डॉलर की निकासी की थी।
लेकिन आखिर ये विदेशी निवेशक पैसे निकाल क्यों रहे हैं? वुड ने कहा कि भारतीय शेयर बाजार का ऊंचा वैल्यूएशन विदेशी निवेशकों को परेशान कर रहा है। इसी के चलते भारत का प्रदर्शन इस साल एशिया के बाकी शेयर बाजारों के मुकाबले कमजोर है। हालांकि वुड ने यह भी कहा कि यह एक ‘हेल्दी कंसॉलिडेशन’ है, जो 2025 के बाकी बचे महीनों में भी जारी रह सकता है। उन्होंने यह भी कहा कि अगर अमेरिका की ओर से भारत पर लगाए गए 50 फीसदी ट्रंप टैरिफ हटते हैं तो फिर भारतीय शेयर बाजार में एक जबरदस्त टैक्टिकल रैली देखने को मिल सकती है।
हालांकि उन्होंने यह भी माना कि भारत के ऊपर इतने ऊंचे टैरिफ लगाने का कोई कूटनीतिक लॉजिक नहीं है और यह पूरी तरह से ट्रंप की व्यक्तिगत नाराजगी लगती है क्योंकि भारत ने उन्हें पाकिस्तान के साथ हालिया संघर्षविराम का श्रेय नहीं दिया। इसके चलते भारत को रूस और चीन के करीब जाना पड़ा, जो अमेरिका के लिए भी अच्छा नहीं है। हालांकि क्रिस वुड ने यह भी कहा कि ट्रंप टैरिफ की एक बात अच्छी रही कि इसके चलते भारत को अपने इनडायरेक्ट टैक्स स्ट्रक्चर में सुधार के लिए तेजी से कदम बढ़ाने पड़े।
दिल्ली में आयोजित जेफरीज इन्वेस्टर फोरम के दौरान क्रिस वुड ने हमारे सहयोगी CNBC-TV18 से बातचीत की। वुड ने कहा कि अगर अगले साल भारत की नॉमिनल जीडीपी ग्रोथ तेज होती है तो शेयर बाजार के मोमेंटम को और सपोर्ट मिलेगा। इसके अलावा सरकार की ओर से ब्याज दरों में कटौती, जीएसटी सुधार और इनकम टैक्स स्लैब में राहत जैसे कदम भी आर्थिक गतिविधियों को तेज कर सकते हैं। अभी भारत की नॉमिनल जीडीपी 10 से 12 फीसदी की रफ्तार से बढ़ रही है और वित्त वर्ष 2026 की पहली तिमाही में यह 8.8 फीसदी रही, जो कि अनुमान से ज्यादा है।
क्रिस वुड ने कहा कि अगर भारत-अमेरिका के बीच टैरिफ का मसला सुलझता है तो विदेशी निवेशकों की वापसी जल्द हो सकती है। लेकिन अगर यह मुद्दा नहीं हल हुआ तो भी विदेशी निवेशक साल के अंत तक भारतीय बाजार में वापसी कर सकते हैं।
उन्होंने कहा कि अमेरिका और भारत के बीच समझौते होने की संभावना बनी हुई है, लेकिन यह भी साफ है कि भारत किसी भी हालत में अपने एग्रीकल्चर सेक्टर को पूरी तरह खोलने या रूस से तेल नहीं खरीदने जैसे शर्तों को नहीं मानेगा। लेकिन इसके अलावा कई ऐसे सेक्टर हैं, जहां दोनों देशों में समझौता हो सकता है। वुड ने आगाह किया कि सिर्फ इन चर्चाओं के आधार पर निवेशकों को शेयर बाजार में दांव लगाने से बचना चाहिए।
क्रिस वुड ने कहा कि वे अपने लॉन्ग-टर्म पोर्टफोलियो में भारत पर काफी हद तक ओवरवेट बने हुए हैं और टैक्टिकल फंड्स में भी उनकी भारत पर पोजिशन थोड़ी सी ओवरवेट है। वुड ने यह भी कहा कि भारतीय शेयर मार्केट की लंबी अवधि की संभावनाएं मजबूत हैं, इसलिए शॉर्ट-टर्म उतार-चढ़ाव से अधिक घबराने की जरूरत नहीं है।
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