कागजों में लखनऊ देश का पहला जीरो वेस्ट सिटी बना, हकीकत से कोसों दूर…, यूपी के नगर निगम भ्रष्टाचार के खेल में मस्त

लखनऊ। यूपी में स्वच्छ भारत मिशन केवल कागजों और आंकड़ों की बाजीगरी तक ही सीमित है। कूड़ा निस्तारण के नाम पर केवल भ्रष्टाचार ही किया जा रहा है। घरों से हजारों मीट्रिक टन प्रतिदिन निकलने वाले कूड़े को खाली तालाबों और नदियों में प्रवाहित कर दिया जाता है। ये भ्रष्टाचार का खेल पूरे प्रदेश में हो रहा है।

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एनजीटी ने भी उठा चुकी है सवाल

डाउन टू अर्थ की रिपोर्ट माने तो 20 जनवरी, 2025 को नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) में कचरा प्रबंधन पर सुनवाई के दौरान बेंच ने न केवल प्रयागराज नगर निगम की आलोचना की, बल्कि यह भी सवाल किया कि प्रयागराज में सालों से पड़ा दशकों पुराना कचरा (विरासत में पड़ा कचरा) अचानक कहां गायब हो गया? एमसी मेहता मामले पर एनजीटी की सुनवाई की अध्यक्षता चेयरपर्सन जस्टिस प्रकाश श्रीवास्तव ने की।

सुनवाई के दौरान नगर निगम के जवाबों से असंतुष्ट पीठ ने कहा कि छह महीने पहले मैंने प्रयागराज में लाखों टन कचरे के ढेर देखे थे। अचानक वह कहां चला गया? पीठ ने निगम के वकील से कहा कि आपने छह महीने में 14 लाख टन पुराने कचरे का निपटान करने का दावा किया है। अगर यह सच है, तो हमें बताएं कि इतने कम समय में इतनी बड़ी मात्रा में कचरे का प्रबंधन कैसे किया गया? दिल्ली में सालों से पड़े कचरे को साफ करने के लिए इस पद्धति को क्यों नहीं अपनाया गया?

यूपी की राजधानी लखनऊ शहर में गंदगी की भरमार लगी है। राजधानी लखनऊ के कई क्षेत्रों में एक-एक हफ्ते या 15 दिनों में कूड़ा उठाने के वाहन आते हैं, लेकिन नगर निगम के अफसरों की मिलीभगत से कूड़ा उठाने वाली कंपनी ईको ग्रीन की बल्ले-बल्ले है। अफसरों की मेहरबानी इन पर जारी है और बिना कूड़ा उठाए ही इन्हें 53.61 करोड़ का भुगतान किया जा रहा है। नगर निगम ने अपनी ही ऑडिट रिपोर्ट में इसका खुलासा किया है। अपनी ऑडिट रिपोर्ट में नगर निगम ने कहा कि, 50 प्रतिशत घरों से कूड़ा उठाया, लेकिन भुगतान किया गया है। मुख्य नगर लेखा परीक्षक ने नगर आयुक्त को भेजी रिपोर्ट में जिम्मेदार अफसरों, ईको से वसूली को कहा है। ऐसा पहली बार नहीं हो रहा है कि जब अफसरों की मिलीभगत से इस तरह का खेल हो रहा है। पहले भी इस तरह के मामले सामने आ चुके हैं।

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न कूड़ा उठा, न प्लांट में प्रोसेसिंग

प्रदेश के नगर विकास मंत्री एके शर्मा की तरफ से भी लगातार दावे किए जा रहे हैं लेकिन अफसरों की मिलीभगत के सामने ये सब खोखले साबित हो रहे हैं। राजधानी लखनऊ में एजेंसी घरों से कूड़ा उठा पाई, न ही प्लांट में प्रोसेसिंग की। प्लांट में कूड़ा का पहाड़ खड़ा हो गया तो बीती मई में निस्तारण के लिए प्रति टन 550 रुपए अतिरिक्त खर्च का प्रस्ताव बनाया, जबकि यह काम ईको ग्रीन को करना था। हालांकि, शर्तों के अनुपालन न करने से 600000 टन कचरा जमा हो गया। इसका 550 रुपए प्रति टन निस्तारण के लिए निगम पर 33 करोड़ भार पड़ा।

प्लांट में कूड़े की प्रोसेसिंग के नाम पर खेल

नगर निगम के अधिकारियों और कूड़े की प्रोसेसिंग के नाम पर खेल किया जा रहा है। कूड़ा निस्तारण प्लांट में कूड़े की प्रोसेसिंग ही नहीं हो पा रही है। इसके नाम पर सिर्फ लूट-खसोट मची है। कई जगहों पर कूड़े के निस्तारण के नाम पर उसमें आग लगा दी जा रही है तो कहीं कूड़े को गंगा जी में डाल दिया जा रहा है। शुक्रवार को राजधानी लखनऊ के नगर निगम के शिवरी स्थित कूड़ा प्लांट में आग लग गई। जानकारी के बाद नगर निगम ने अपने कई पानी के टैंकर और छोटी गाड़ियां रवाना की गई। करीब पांच घंटे की मशक्कत के बाद आग पर काबू पाया जा सका। कूड़ा निस्तारण प्लांट शिवरी में कई लाख मीट्रिक टन कचरा एकत्र है। आग लगने के बाद कई तरह के सवाल खड़े हो रहे हैं।

कानपुर नगर निगम गंगा जी में डाल रहा है कूड़ा

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बता दें कि, सॉलिड वेस्ट मैनेजमेन्ट के तहत ईकोस्टन इण्डिया प्रालि के खिलाफ भी कई शिकायतें की गईं हैं। इस कंपनी को कानपुर नगर निगम से डेढ़ वर्ष पूर्व कूड़े के निस्तारण का कार्य आवंटित हुआ था। लेकिन इस फर्म ने वेस्ट मैनेजमेंट का कार्य देख रहे इंजीनियर्स एवं स्टॉफ के साथ सांठगांठ करके नियमों की ठेंगा दिखाते हुए कूड़े को पवित्र गंगाजी में डाल दिया गया। यही नहीं अधिकारियों की मिलीभगत से करोड़ों रुपयों का पेमेंट भी उठा लिया गया। आज भी लिगेसी वेस्ट का प्रोसेसिंग का कार्य दे रखा है। इस कंपनी के द्वारा लखनऊ और प्रयागराज में भी अधिकारियों की मिलीभगत से भ्रष्टाचार किया गया है।

लखनऊ शहर की स्मार्ट सिटी की छवि को धूमिल कर रहे हैं सड़कों पर कूड़े के ढेर और भरी हुई नालियां

लखनऊ में स्वच्छ भारत मिशन केवल विज्ञापनों तक सीमित है। सड़कों पर कूड़े के ढेर और भरी हुई नालियां शहर की स्मार्ट सिटी की छवि को धूमिल कर रही हैं। बारिश के मौसम में गंदगी सड़कों और खाली स्थानों पर बिखरा होने के कारण मलेरिया सहित अन्य कई बीमारियां फैलने का खतरा बढ़ गया है। आम लोग गंदगी और बदबू के बीच जीने को मजबूर हैं।

मंत्री ए.के. शर्मा ने नगर निगम में प्रतिदिन उत्पन्न हो रहे 2000 मीट्रिक टन से अधिक कचरे का शत-प्रतिशत वैज्ञानिक तरीके से निस्तारण का किया दावा

बीते जून माह शहर को आधिकारिक रूप से जीरो वेस्ट सिटी घोषित कर दिया गया। शिवरी स्थित प्रोसेसिंग प्लांट का नगर विकास मंत्री ए.के. शर्मा ने 700 मीट्रिक टन क्षमता वाली नई फ्रेश वेस्ट यूनिट का उदघाटन किया। उन्होंने कहा कि इस नए प्लांट के शुरू होने से अब नगर निगम में प्रतिदिन उत्पन्न हो रहे 2000 मीट्रिक टन से अधिक कचरे का शत-प्रतिशत वैज्ञानिक तरीके से निस्तारण करने की क्षमता मिल गई है। यह नई यूनिट आधुनिक स्वदेशी तकनीक से लैस है, जो न सिर्फ कचरे को रिसाइक्लिंग व प्रोसेसिंग के जरिए पर्यावरण अनुकूल उत्पादों में परिवर्तित करती है, बल्कि शहर की स्वच्छता व्यवस्था को एक नया स्तर भी प्रदान करती है।

उन्होंने कहा कि ये मशीन प्रति दिन 700 मीट्रिक टन कचरे को प्रोसेस कर सकती है। इससे पहले शहर में दो प्रोसेसिंग यूनिट थीं जो मिलकर लगभग 1300 मीट्रिक टन कचरे का निस्तारण करती थीं। नई यूनिट के जुड़ने से अब कुल क्षमता 2000 मीट्रिक टन से अधिक हो गई है। इसका अर्थ है कि अब लखनऊ में प्रतिदिन घरों, बाजारों और व्यावसायिक स्थलों से निकलने वाले सभी प्रकार के कचरे का शत-प्रतिशत निस्तारण होगा। इससे न केवल लैंडफिल साइटों पर दबाव कम होगा, बल्कि पर्यावरणीय प्रदूषण में भी भारी गिरावट आएगगी, पर्यावरण को संरक्षण मिलेगा, बल्कि हजारों लोगों को रोजगार के अवसर भी प्राप्त होंगे।

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क्या है जीरो वेस्ट सिटी?

जीरो वेस्ट सिटी वह नगर होता है जहां उत्पन्न कचरे का शून्य प्रतिशत लैंडफिल में डाला जाता है। इसका तात्पर्य यह है कि शहर में उत्पन्न समस्त कचरे को या तो रिसाइकल किया जाता है या पुन: उपयोग में लाया जाता है या ऊर्जा उत्पादन में इस्तेमाल किया जाता है। लखनऊ देश का ऐसा पहला महानगर बन गया है जिसे यह उपलब्धि प्राप्त हुई है।

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