Surya Grahan 2025: सूर्य ग्रहण मार्च कैलेंडर के अनुसार 29 मार्च को लग रहा है. सूर्य ग्रहण एक महत्वपूर्ण खगोलीय घटना है, जो पूरे विश्व में उत्सुकता और जिज्ञासा का विषय रहती है. इस्लाम में सूर्य ग्रहण को किस तरह देखा जाता है? क्या इसे किसी विशेष धार्मिक घटना से जोड़ा जाता है? इस्लाम में सूर्य ग्रहण की मान्यताओं, धार्मिक प्रथाओं और वैज्ञानिक दृष्टिकोण को यहां जानते हैं-
29 मार्च 2025 का सूर्य ग्रहण: कौन से मुस्लिम देशों में दिखेगा? (Surya Grahan 2025 Kab)
29 मार्च 2025 को होने वाला आंशिक सूर्य ग्रहण मुख्य रूप से यूरोप, उत्तरी अफ्रीका और उत्तरी रूस के कुछ हिस्सों में देखा जा सकेगा. हालांकि, यह ग्रहण अधिकांश मुस्लिम देशों में दिखाई नहीं देगा. विशेष रूप से, भारत, पाकिस्तान, श्रीलंका, नेपाल, अफगानिस्तान, बांग्लादेश, इंडोनेशिया, मलेशिया, फिजी, मॉरीशस और संयुक्त अरब अमीरात में यह खगोलीय घटना नहीं देखी जा सकेगी. वहीं, तुर्की, सऊदी अरब, मिस्र, मोरक्को और ट्यूनीशिया में यह आंशिक रूप से दिखाई दे सकता है.
इस्लाम में सूर्य ग्रहण: रहस्य या संदेश? (Surya Grahan in Islam)
इस्लाम में सूर्य और चंद्रमा को अल्लाह की महान कुदरत का हिस्सा माना गया है. कुरआन और हदीस में इसे प्राकृतिक घटना बताया गया है, जिसे किसी भी अशुभ संकेत या अपशकुन से जोड़कर नहीं देखा जाता. इस्लामी शिक्षाएं ग्रहण जैसी घटना को अल्लाह की शक्ति का एक प्रमाण मानती हैं और सूर्य ग्रहण के दौरान विशेष इबादत करने की हिदायत दी गई है.
कुरआन और हदीस में सूर्य ग्रहण का उल्लेख
इस्लामी मान्यताओं के अनुसार, पैगंबर मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) के जीवनकाल में एक बार सूर्य ग्रहण हुआ, जब उनके पुत्र इब्राहीम की मृत्यु हुई थी. कुछ लोगों ने इसे एक अलौकिक घटना समझा, लेकिन पैगंबर ने स्पष्ट किया:
“सूर्य और चंद्रमा पर किसी की मृत्यु या जीवन की वजह से ग्रहण नहीं लगता, बल्कि यह अल्लाह की निशानियों में से हैं. जब तुम इसे देखो, तो नमाज़ पढ़ो और अल्लाह से दुआ करो.” (बुखारी, मुस्लिम)
यह हदीस इस्लाम में सूर्य ग्रहण को वैज्ञानिक और आध्यात्मिक दृष्टिकोण से देखने की प्रेरणा देती है.
ग्रहण के समय इस्लामिक परंपराएं: क्या करें, क्या न करें?
इस्लाम में ग्रहण के दौरान कुछ विशेष इबादतें करने की परंपरा है, जिससे आध्यात्मिक शक्ति बढ़ाई जा सकती है.
- सलात-उल-कुसूफ़ (ग्रहण की विशेष नमाज़)- इस्लाम में ग्रहण के समय दो रकात की विशेष नमाज़ अदा करने का महत्व बताया गया है. इसे मस्जिद में जमात के साथ पढ़ना बेहतर माना जाता है.
- दुआ और इस्तिग़फ़ार (पश्चाताप)- इस समय अल्लाह से अपने गुनाहों की माफी मांगने और तौबा करने की हिदायत दी गई है. दुआ करना और अल्लाह की इबादत करना अधिक शुभ माना जाता है.
- सदक़ा (दान) करने की परंपरा- पैगंबर मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने ग्रहण के दौरान गरीबों को दान करने की सलाह दी थी. यह अल्लाह की रहमत और करुणा प्राप्त करने का एक जरिया है.
ग्रहण को लेकर समाज में कई धारणाएं प्रचलित हैं, जैसे:
- ग्रहण के दौरान भोजन न करना.
- गर्भवती महिलाओं को घर से बाहर न निकलने देना.
- ग्रहण को किसी दैवीय प्रकोप या बुरी आत्माओं से जोड़ना.
इस्लाम इन सभी धारणाओं को नकारता है और ग्रहण को एक वैज्ञानिक घटना मानता है.
वैज्ञानिक दृष्टिकोण: क्या इस्लाम विज्ञान को स्वीकार करता है?
इस्लाम विज्ञान को बढ़ावा देने वाला धर्म है. कुरआन में ब्रह्मांड और उसकी संरचना को लेकर कई संकेत दिए गए हैं. आज आधुनिक खगोल विज्ञान ‘ग्रहण’ की घटना को विस्तार से समझा चुका है. इस्लाम इस वैज्ञानिक दृष्टिकोण को स्वीकार करता है और इसे अल्लाह की कुदरत का प्रमाण मानता है.
इस्लाम में सूर्य ग्रहण को प्राकृतिक घटना माना गया है और इसे किसी अशुभता या अपशकुन से जोड़ने का खंडन किया गया है. इस्लामी शिक्षाएं इस समय विशेष नमाज़, दुआ और इबादत करने की सलाह देती हैं, ताकि व्यक्ति अपने आत्मिक उत्थान पर ध्यान केंद्रित कर सके. साथ ही, इस्लाम अंधविश्वास से बचने और वैज्ञानिक तथ्यों को अपनाने पर जोर देता है.
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