
अलीगढ़। अलीगढ़ से सटे रोरावर क्षेत्र के गांव इब्राहिमपुर-भीमपुर में रविवार की रात को लगाई गई आंबेडकर की प्रतिमा को पुलिस द्वारा हटाने पर मंगलवार की शाम को बवाल हो गया। गुस्साई भीड़ ने पुलिस पर हमला कर दिया। पथराव में इलाका एसएचओ सहित 7 पुलिसकर्मी घायल हो गए। भीड़ ने पुलिस कर्मियों की छह बाइकें और एक स्कूटी फूंक दी, पुलिस के चार पहिया वाहनों में भी तोड़फोड़ कर दी।
भीड़ को तितर-बितर करने के लिए पुलिस ने आंसू गैस के गोले छोड़े। हवाई फायरिंग भी की। इस दौरान भगदड़ में एक महिला घायल हो गई। गांव में भारी पुलिस बल तैनात कर दिया गया है। एसएसपी समेत सभी आला अफसर मौके पर पहुंच गए हैं।
अलीगढ़ के भीमपुर-इब्राहिमपुर गांव में दो जातियों के बीच पिछले दस दिनों से तनातनी थी। यहां ग्राम समाज की जमीन के दो खाली प्लॉट हैं जिन पर एक पक्ष मंदिर का निर्माण कराना चाहता था तो दूसरा पक्ष आंबेडकर की प्रतिमा स्थापित करने पर अड़ा था। शिकायत के बाद पहुंची पुलिस ने मंदिर का निर्माण तो रुकवा दिया लेकिन आंबेडकर की प्रतिमा लगाए जाने की खबर अफसरों को नहीं हुई। रातों रात प्रतिमा स्थापित कर दी गई। अगर पुलिस ने उसी समय सावधानी बरती होती हो यह स्थिति पैदा ही नहीं होती।
दरअसल दस दिन पहले ग्राम समाज की भूमि पर मंदिर निर्माण के लिए नींव रखी गई थी। इस दौरान बड़ी संख्या में बघेल समाज के लोग मौजूद थे। इसी दौरान दूसरे समाज के लोगों ने थाना पुलिस को शिकायत कर दी कि गांव में ग्राम समाज की भूमि पर बिना प्रशासनिक अनुमति के मंदिर का निर्माण हो रहा है। पुलिस मौके पर पहुंची और मंदिर का निर्माण रुकवा दिया। पुलिस भी गांव से लौट आई। लेकिन यहां दूसरे प्लॉट पर आंबेडकर की प्रतिमा स्थापित कर दी गई। जब लोगों ने सुबह को देखा तो विरोध शुरू हो गया। पुलिस फिर पहुंची तो लेकिन भीड़ को देख प्रतिमा नहीं हटवा सकी। हालांकि अधिकारियों ने लोगों को समझाने की भरसक कोशिश की मगर कोई तैयार ही नहीं हुआ।
गांव भीमपुर इब्राहिमपुर लोध, बघेल, अनुसूचित वर्ग बहुल है। गोंडा रोड पर बसे इस गांव में ग्राम समाज की एक भूमि के टुकड़े पर करीब दस दिन पहले बघेल समाज के लोगों ने मंदिर का निर्माण शुरू कराया। उसके निर्माण में अनुसूचित वर्ग के मजदूर लगे थे। इन मजदूरों ने मंदिर निर्माण करते समय यह तर्क रखा कि जब आप लोग मंदिर बनवा रहे हो तो हम बगल की भूमि पर डा. आंबेडकर की प्रतिमा स्थापित करा लें। इस बात पर वहां तनातनी हुई और बात अनुसूचित वर्ग से ताल्लुक रखने वाले पूर्व प्रधान तक पहुंची। वहीं से विवाद की नींव रख गई। पूर्व प्रधान की अगुवाई में अनुसूचित वर्ग के लोगों ने ग्राम समाज की भूमि पर मंदिर निर्माण की शिकायत पुलिस प्रशासन से कर दी।
मंदिर निर्माण रुकवा दिया और खुद बगल की भूमि पर आंबेडकर प्रतिमा लगाने की कवायद शुरू कर दी। इसी कवायद के क्रम में 23 जनवरी को दिन में डायल-112 पर डा.आंबेकर प्रतिमा लगाने की शिकायत पहुंची। इस सूचना पर पुलिस आई। मगर बिना रोक-टोक के मौका मुआयना कर लौट गई। इसके बाद न हल्का दरोगा ने ध्यान दिया। न इलाका एसएचओ ने गंभीरता दिखाई और यहां डा.आंबेडकर प्रतिमा लगाने को बेसमेंट तक बन गया। खुफिया टीम भी सोती रही। दो रात पहले रात में प्रतिमा तक लगा दी गई।
रविवार रात प्रतिमा लगने के बाद सोमवार सुबह से वहां विरोध के चलते सीओ-एसडीएम की अगुवाई में पुलिस टीम मौजूद रही। ग्रामीणों को समझाने मनाने का दौर चला। यह क्रम मंगलवार को भी दिन भर चला। मगर कोई यह नहीं भांप पाया कि अंदरखाने चिंगारी सुलग रही है।
मंगलवार को तो यहां सुबह से कई गांवों के ग्रामीणों की भीड़ मौजूद थी। सुबह से ही महिलाओं व बच्चों को आगे कर प्रतिमा को भीड़ घेरे हुए थी। पास के ही एक आश्रम के भंते भी मौजूद थे और इनमें अनुयायियों को पुलिस भांप नहीं पाई।
रविवार रात प्रतिमा लगने के बाद सोमवार को दिन भर के प्रयास में जब लोग नहीं माने तो रात में डेढ़ बजे भी प्रतिमा हटाने के प्रयास हुए। मगर भीड़ नहीं हटी। अब मंगलवार शाम को भी एडीएम सिटी व एसपी सिटी की अगुवाई में कई थानों का फोर्स मौजूद रहा। इस दौरान शाम होते ही ग्रामीणों ने वहां जेनरेटर लगाकर रोशनी कर ली। मगर पुलिस ने जेनरेटर बंद करा दिया। इस पर ग्रामीण भडक़ गए। बाद में जेनरेटर ग्रामीणों ने शुरू करा दिया।
इसी बीच पुलिस को लगा कि अब समझाने या वार्ता करने से काम नहीं बन रहा तो शाम सात बजे अचानक से पुलिस की एक टीम राजस्व टीम के साथ प्रतिमा स्थल पर भीड़ को तितर बितर करते हुए पहुंची। बस उन्होंने अचानक प्रतिमा उठाकर गाड़ी में डालकर दौड़ लगाई। इससे वहां भगदड़ मच गई। भंते और कुछ वहां मौजूद रह गए पुलिसकर्मियों से उलझने लगे। ज्यादातर अधिकारी गाडिय़ों की ओर रुख कर रहे थे। तभी उन पर पथराव शुरू कर दिया और गाडिय़ों को क्षतिग्रस्त कर दिया। साथ में खड़े दोपहिया वाहनों को तोडक़र आगजनी कर दी गई। साथ में घटनास्थल के सामने के बाजार की दुकानें बंद होने लगीं। मगर उनके बाहर रखे फर्नीचर को क्षतिग्रस्त कर दिया गया।
उठ रहे ये सवाल
जब दस दिन से ये विवाद चल रहा था तो फिर दो रात पहले रात में कैसे डा.आंबेडकर की प्रतिमा लगा दी गई। इससे पहले बेसमेंट तक कैसे बन गया। स्थानीय पुलिस व खुफिया टीमों ने अधिकारियों को अपडेट नहीं किया या फिर अपडेट मिलने के बाद भी अधिकारी प्रकरण को हल्के में लिए रहे। जब प्रतिमा लग गई तो जो काम मंगलवार देर शाम किया गया, उसे सोमवार सुबह ही भीड़ कम होने पर क्यों नहीं हटाया गया। दो दिन तक भीड़ बढऩे का इंतजार क्यों किया गया। कुछ इस तरह के सवाल इस प्रकरण में लापरवाही को लेकर उठ रहे हैं।
ये बिल्कुल स्पष्ट नियम है कि ग्राम समाज की भूमि पर इस तरह से किसी महापुरुष की या अन्य कोई प्रतिमा स्थापित नहीं कराई जा सकती। ये बात ग्रामीणों को व उनके नेतृत्वकर्ताओं को बार-बार समझाई गई। उसी क्रम में उन्हें लगातार बातचीत कर बताया गया। रहा सवाल निचले स्तर की लापरवाही का और समय से सूचनाएं न मिलने का तो इसकी जांच कराई जाएगी। जो भी जवाबदेह होंगे। उन पर कार्रवाई तय की जाएगी। -डा.संजीव रंजन, डीएम
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