Sawan Shivratri 2024: मासिक शिवरात्रि हर महीने आती है लेकिन सावन महीने की चतुर्दशी को सावन (Sawan) शिवरात्रि के नाम से जाना जाता है. इस व्रत को करने से सुख-समृद्धि और अक्षय फलों की प्राप्ति होती. सावन में सोमवार के बाद शिवरात्रि सबसे बड़ा दिन माना जाता है.
इस साल सावन शिवरात्रि अगस्त माह में है, इसी दिन कांवड़ जल (Kanwar) चढ़ेगा. जानें सावन शिवरात्रि में कितने दिन शेष रह गए हैं. इस दिन कौन से काम करने से भोलेनाथ (Bholenath) का आशीर्वाद प्राप्त होता है.
सावन शिवरात्रि में कितने दिन शेष ? (Sawan Shivratri 2024 Date)
सावन शिवरात्रि 2 अगस्त 2024 को है. जुलाई का महीना अंत की ओर है. पूरे अगस्त में सावन का महीना रहेगा. इस पवित्र दिन पर भग्वान शिव की पूरे विधि विधान से पूजा अर्चना करें और लिंगाष्टकम स्तोत्र (Shiv lingastak) का पाठ करें. शिव चालीसा (Shiv chalisa) करें.
ऐसे पाएं शिव जी का आशीर्वाद (Sawan shivratri Upay)
भोग – सावन शिवरात्रि पर भगवान भोलेनाथ और माता पार्वती को खीर, हलवा, ठंडाई, मालपुआ, लस्सी, सफेद बर्फी, सूखा मावा, आदि का भोग लगा सकते हैं. दूध से बनी मिठाई शिव जी को अति प्रिय है.
ये पत्ते चढ़ाएं – मासिक शिवरात्रि की रात शिवलिंग पर शमी पत्र चढ़ाएं और ‘ॐ नमो भगवते रुद्राय नम:’ मंत्र का जाप करते रहें और साथ ही शिव तांडव स्तोत्र का पाठ करें. मान्यता है कि इससे भोलेनाथ बेहद प्रसन्न होते हैं. धन-संपत्ति की सारी समस्याएं दूर हो जाती है
ऐसे करें अभिषेक – मासिक शिवरात्रि के दिन प्रदोष काल में जल में काले तिल मिलाकर शिवजी का अभिषेक करें. इस दौरान महामृत्युंजय मंत्र का जाप करना है.
सावन शिवरात्रि पर करें ये पाठ (Sawan Shivratri Path)
ब्रह्ममुरारिसुरार्चितलिंगं निर्मलभासितशोभित लिंगम् ।
जन्मजदुःखविनाशकलिंगं तत्प्रणमामि सदाशिवलिंगम् ॥१॥
देवमुनिप्रवरार्चितलिंगं कामदहं करुणाकरलिंगम् ।
रावणदर्पविनाशन लिंगं तत्प्रणमामि सदाशिवलिंगम् ॥२॥
सर्वसुगंधिसुलेपितलिंगं बुद्धिविवर्धनकारणलिंगम् ।
सिद्धसुरासुरवंदितलिंगं तत्प्रणमामि सदाशिवलिंगम् ॥३॥
कनकमहामणिभूषितलिंगं फणिपतिवेष्टितशोभितलिंगम् ।
दक्षसुयज्ञविनाशनलिंगं तत्प्रणमामि सदाशिवलिंगम् ॥४॥
कुंकुमचंदनलेपितलिंगं पंकजहारसुशोभितलिंगम् ।
संचितपापविनाशन लिंगं तत्प्रणमामि सदाशिवलिंगम् ॥५॥
देवगाणार्चितसेवितलिंगं भावैर्भक्तिभिरेव च लिंगम् ।
दिनकरकोटिप्रभाकरलिंगं तत्प्रणमामि सदाशिवलिंगम् ॥६॥
अष्टदलोपरिवेष्ठित लिंगं सर्वसमुद्भवकारणलिंगम् ।
अष्टदरिद्रविनाशनलिंगं तत्प्रणमामि सदाशिवलिंगम् ॥७॥
सुरगुरुसुरवरपूजितलिंगं सुरवनपुष्पसदार्चितलिंगम् ।
परात्परं परमात्मकलिंगं तत्प्रणमामि सदाशिवलिंगम् ॥८॥
लिंगाष्टकमिदं पुण्यं यः पठेच्छिवसन्निधौ ।
शिवलोकमवाप्नोति शिवेन सह मोदते ॥९॥
इति श्रीलिंगाष्टकस्तोत्रं संपूर्णम् ॥
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